MP News: न खुद जीती न जीतने दिया… ग्वालियर-चंबल अंचल में बसपा ने ऐसे तोड़ा कांग्रेस का सपना

ग्वालियर-चंबल अंचल की सियासत हमेशा से ही कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच घूमती रही है, लेकिन कुछ साल ऐसे भी आए जब बहुजन समाज पार्टी का इस अंचल में खासा प्रभाव देखने को मिला.

बीएसपी सुप्रीमो मायावती

MP News: ग्वालियर-चंबल अंचल की चार लोकसभा सीटों पर कांग्रेस को सबसे ज्यादा उम्मीद थी कि वह कम से कम तीन सीटें जीत रही है, लेकिन बहुजन समाज पार्टी ने कांग्रेस का सपना तोड़ दिया. भले ही बीएसपी ज्यादा वोट हासिल न कर पाई हो, लेकिन कांग्रेस को इसका नुकसान जरूर उठाना पड़ा है. यहां से बसपा भले ही खुद नही जीत पाई, लेकिन कांग्रेस का खेल बिगाड़ने में कामयाब रही है.

ग्वालियर-चंबल अंचल की सियासत हमेशा से ही कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच घूमती रही है, लेकिन कुछ साल ऐसे भी आए जब बहुजन समाज पार्टी का इस अंचल में खासा प्रभाव देखने को मिला. अंचल में बीएसपी का प्रभाव कम ज्यादा होता रहा है. कई बार तो ऐसे मौके भी आए जब बीजेपी और कांग्रेस के रूठे हुए नेता बीएसपी के टिकट पर विधायक तक बन गए हैं. इसी उम्मीद के साथ मुरैना भिंड और ग्वालियर लोकसभा सीटों पर कांग्रेस से नाराज नेता बीएसपी के टिकट पर लड़े. उन्होंने चुनाव तो इस उम्मीद से लड़ा था कि वह जीत जायें, लेकिन कांग्रेस को हराने में जरूर कामयाब रहे.

मुरैना

सबसे पहले मुरैना लोकसभा सीट की बात करें तो यहां से रमेश गर्ग पहले कांग्रेस से टिकट मांग रहे थे, लेकिन जब उनकी बात नहीं बनी तो वह बहुजन समाज पार्टी से टिकट ले आए. बीएसपी के रमेश गर्ग को मुरैना लोकसभा में 1,79,669 वोट मिले जबकि इस सीट पर कांग्रेस के सत्यपाल सिंह सिकरवार 52,530 वोटों से चुनाव हार गए. यानी बहुजन समाज पार्टी कांग्रेस की हार के अंतर से लगभग तीन गुना ज्यादा वोट ले गई. हालांकि मुरैना लोकसभा में बीएसपी ने बीजेपी का भी नुकसान किया है लेकिन चर्चा यह हो रही है कि अगर बीएसपी नहीं होती तो कांग्रेस मुरैना जीतती.

भिंड

इसके बाद बात भिंड लोकसभा सीट की. यहां से देवाशीष जरारिया 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे, लेकिन जीत नहीं पाए. इस बार उन्होंने फिर कांग्रेस का टिकट मांगा लेकिन नहीं मिला तो बीएसपी से चुनाव मैदान में कूद गए. भिंड लोकसभा सीट पर कांग्रेस के फूलसिंह बरैया को 4 लाख 72 हजार 225 वोट मिले. जबकि बहुजन समाज पार्टी के के देवाशीष जरिया को 20465 वोट मिले. फूल सिंह बरैया 64,840 वोटों से चुनाव हार गए यानी बीएसपी के वोटों ने एक तो कांग्रेस की हवा खराब की और दूसरा नुकसान भी.

ग्वालियर

अब बात प्रदेश की सबसे हाई प्रोफाइल सीट ग्वालियर लोकसभा की. इस सीट पर भी कल्याण सिंह कंसाना कांग्रेस से टिकट मांग रहे थे क्योंकि वह लंबे समय से कांग्रेस से जुड़े रहे. जब कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया तो वह बहुजन समाज पार्टी से चुनाव मैदान में उतर गए. ग्वालियर लोकसभा सीट कांग्रेस 70,210 वोटों से हार गई जबकि बीएसपी के उम्मीदवार को यहां 33,465 वोट मिले. यानी कांग्रेस अगर बहुजन समाज पार्टी को साधने में सफल हो जाती तो ग्वालियर-चंबल अंचल के परिणाम कुछ और ही देखने को मिलते. ग्वालियर-चंबल अंचल में कांग्रेस बीएसपी से नुकसान की बात कर रही है. कांग्रेस का कहना है कि निश्चित रूप से ग्वालियर-चंबल अंचल में मुरैना और भिंड लोकसभा सीट पर बसपा ने कांग्रेस को नुकसान किया है, लेकिन देखने में आ रहा है कि हर बार के चुनाव में बसपा का जनाधार लगातार घटता जा रहा है क्योंकि वह सिर्फ अब वोट कटाऊ पार्टी रह गई है. वहीं,  बीजेपी का कहना है कि बसपा का कोई जनाधार नहीं है. जाति और समाज की राजनीति जो पार्टियां करती हैं ऐसी पार्टियों को लोकतांत्रिक व्यवस्था में शुभ नहीं मानना चाहिए.

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