MP News: अंधविश्वास ने ली 5 महीने के मासूस की जान, बीमार बच्चे को गर्म लोहे से दागा, हुई मौत

MP News: शहडोल में अंधविश्वास के चलते पांच महीने के मासूस को दागने से मौत हो गई है.
Death

बच्चे की मौत (प्रतिकात्मक)

MP News: मध्य प्रदेश के शहडोल में अंधविश्वास ने पांच महीने के मासूस की मौत हो गई है. परिवार में चली आ रही परंपरा के चलते पांच महीने की बच्चे को गर्म सलाखों से दागा गया था. जिसके बाद उसकी अस्पताल में मौत हो गई है.

दरअसल, शहडोल के पठरा गांव के रहने वाले रामदास कोल के बेटे ऋषभ की तबीयत खराब हुई तो उसके परिजन नजदीकी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लेकर पहुंचे थे. जहां जांच में सामने आया है कि बच्चे को बीमारियों से बचाने के लिए गांव में गर्म लोहे से दागा गया था.

बच्चे को थी ये बीमारी

डॉक्टर्स को शरीर पर दागने के निशान मिले थे. जिससे अंदाजा लगाया गया है कि बच्चे की तबीयत बिगड़ने के पहले परिजनों ने उसे गर्म लोहे से दागा था. जब उसकी हालत और बिगड़ गई तो परिजन उसे स्वास्थ्य केंद्र लेकर पहुंचे. वहां भी आराम नहीं हुआ तो जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन बच्चे की हालत और बिगड़ने के कारण उसको मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया.

जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई है. डॉक्टरों का कहना है कि बच्चे को सेप्टीसीमिया हो गया था. सेप्टीसीमिया में इम्यून सिस्टम काफी कमजोर हो जाता है और ये खून में बड़े पैमाने पर एक खास तरह का केमिकल रिलीज करता है. यह केमिकल बॉडी में सूजन बढ़ाने का काम करता है, जिससे मल्टी ऑर्गन फेलियर का खतरा बढ़ जाता है.

29 दिसंबर को भी हुई थी मौत

शहडोल के आदिवासी लोगों के बीच में दागने की प्रथा अभी भी लगातार चली आ रही है. इससे पहले दिसंबर में भी शहडोल में 45 दिन के मासूम की दागने से मौत हो गई. बच्चे को दागने के बाद 21 दिसंबर को जिला अस्पताल में भर्ती किया था. जहां 29 दिसंबर को उसने दम तोड़ दिया.

ये भी पढ़ें: MP News: IAS नरहरि के नाम से अश्लील चैट वायरल, खुद ही दर्ज कराई शिकायत

31 दिसंबर को भी अनुपपुर से बच्ची को दागने का मामला सामने आया था. जहां बच्ची को गर्म हंसिया की नोंक से 51 बार दागा गया था. बच्ची की हालत गंभीर होने पर उसको मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया. जहां उसकी मौत हो गई थी.

21 बार गर्म लोहे से दागा गया

पिछले साल शुरुआती दिसंबर में भी 5 महीने के मासूम को शहडोल में 21 बार गर्म सलाखों से इसलिए दागा गया था, क्योंकि परिवार को अंधविश्वास था कि निमोनिया और सांस लेने में होने वाली तकलीफ कम हो जाएगी. मगर ऐसा नहीं हुआ बल्कि बच्चे की मौत हो गई.

ज़रूर पढ़ें