MP News: पड़ोसी तक नहीं जानते भारत के इस गोल्डन हीरो को, जिसने आज़ाद भारत को पहला Olympic Gold दिलवाया

MP News: किशनलाल के पोते नीलेश ने बताया की पार्टीशन के समय में जो खिलाड़ी मेरे दादा जी के साथ थे, वे पाकिस्तान चले गए. जो अनुभवी खिलाड़ी थे, वे सभी पाकिस्तान चले गए और केवल दो लोग रह गए, उनमें से एक मेरे दादा जी थे.
Kishanlal won the first Olympic gold medal for independent India.

आजाद भारत के लिए पहला ओलंपिक गोल्ड मेडल किशनलाल ने जीता था.

MP News: अभी पेरिस में ओलंपिक गेम्स चल रहे हैं. भारतीय हॉकी टीम ने ब्रॉन्ज मेडल भी जीता है, पर आज़ाद भारत का पहला ओलंपिक गोल्ड मेडल लाने वाले पद्म श्री किशनलाल जी कितनों को याद हैं? किशनलाल जी 1948 के लंदन ओलंपिक्स में भारतीय हॉकी टीम के कप्तान थे. यह वह दौर था जब भारत कुछ समय पहले ही ब्रिटिश राज से आज़ाद हुआ था और आज़ाद होते ही 1948 के ओलंपिक्स का हिस्सा बना. भारतीय टीम ने इंग्लैंड को उसी की धरती पर 4-0 से हराकर आज़ाद भारत का पहला ओलंपिक गोल्ड मेडल जीता.

इंदौर के महू में रहता है किशनलाल का परिवार

साल 1980 में किशनलाल जी का निधन हो गया, लेकिन आज तक उनके नाम पर न कोई स्मारक है और न ही कोई सड़क. यहां तक कि जर्मन सरकार ने किशनलाल जी के नाम पर एक सड़क का नाम रखा है क्योंकि उन्होंने जर्मन टीम को कोच किया था.

उनका परिवार आज भी इंदौर के महू में गुमनामी में रहता है. जब विस्तार न्यूज़ ने आस-पास के लोगों से बात की, तो उन्होंने भी किशनलाल जी और उनके बेटे राजन के बारे में कुछ नहीं सुना था.

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परिवार जनों ने सुनाई अनसुनी कहानियां

वहीं किशनलाल की बहू ने विस्तार न्यूज से बातचीत करते हुए बताया की “मेरे ससुर ने 1948 में भारत को गोल्ड मेडल दिलाया. मेरे परिवार में 2 बेटे और 2 बेटियां हैं, और हमारी एक दुकान है जो 10 साल से है. हमारा घर पुश्तैनी है. मेरे पति ट्यूशन पढ़ाते हैं, उसी से हमारा रोज़गार चलता है.

किशनलाल के पोते नीलेश ने बताया की पार्टीशन के समय में जो खिलाड़ी मेरे दादा जी के साथ थे, वे पाकिस्तान चले गए. जो अनुभवी खिलाड़ी थे, वे सभी पाकिस्तान चले गए और केवल दो लोग रह गए, उनमें से एक मेरे दादा जी थे. मेरे दादा जी ने इंग्लैंड की धरती पर अंग्रेजों को 4-0 से हराया था. जब 1948 में मेरे दादा जी ग्राउंड में खेलने गए तो अंग्रेजों ने उन्हें गाली दी और कहा कि ये काले क्या हमें हराएंगे? और फिर जब हमारा भारत जीता, तो ग्राउंड पर ही मेरे दादा जी बहुत रोए थे. जर्मन सरकार ने उन्हें नागरिकता भी ऑफर की थी, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया था.

किशनलाल के बेटे राजन ने अपने पिता की यादों को साझा करते हुए बताया कि जब मेरे पिताजी खेलने गए, तो टीम के पास फंड नहीं था. कुछ राजाओं ने मदद की. मेरे पिताजी ने बताया था कि जब भारतीय टीम मैदान में खेलने गई थी, तो अंग्रेज़ों ने हमारे खिलाड़ी को अपशब्द बोले थे और कहा था कि ये तो हमारे ग़ुलाम रह चुके हैं, ये क्या जीतेंगे? 1948 में पहली बार पूरे विश्व के सामने भारतीय टीम ने राष्ट्रगान गाया और हमारा भारत का ध्वज फहराया.

किशनलाल जी हमारे देश का गौरव हैं और क्यों न हो! आखिरकार, आज़ाद भारत का पहला ओलंपिक गोल्ड इन्होंने ही भारत लाया था.

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