MP News: उज्जैन का प्रसिद्ध चिंतामन गणेश मंदिर, भगवान राम ने की थी स्थापना, इच्छामन और सिद्धिविनायक तीनों स्वरूप में हैं स्थापित
MP News: उज्जैन को बाबा महाकाल की नगरी के लिए जाना जाता है. देश-विदेश से लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं. उज्जैन के बारे में ऐसा कहा जाता है कि एक बैलगाड़ी में अनाज भरा जाए और एक-एक मुट्ठी हर मंदिर में दान दिया जाए तो बैलगाड़ी खाली हो जाएगी लेकिन मंदिर खत्म नहीं होंगे. उज्जैन में कई सारे मंदिरों में से एक प्रसिद्ध श्री चिंतामन गणेश मंदिर है.
उज्जैन शहर से करीब 8 किलोमीटर दूर स्थित ये मंदिर अनोखा है. इस मंदिर का संबंध त्रैतायुग से है. ऐसा कहा जाता है कि यहां भगवान श्री राम, लक्ष्मण और माता सीता ने पूजा-अर्चना की थी. चिंतामन गणेश मंदिर की कई सारी खासियत है आइए जानते हैं.
चिंतामन, इच्छामन और सिद्धिविनायक तीनों एक साथ विराजमान हैं
श्री चिंतामन गणेश मंदिर में भगवान गणेश अपने तीन स्वरूप में स्थापित हैं. ये तीन स्वरूप चिंतामन, इच्छामन और सिद्धिविनायक हैं. ऐसी मान्यता है कि जब भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता यहां आए थे. उन्होंने उस समय तीन स्वरूप में भगवान गणेश की स्थापना की थी. भगवान श्री राम ने चिंतामन गणेश, लक्ष्मण जी ने इच्छामन और माता सीता ने सिद्धिविनायक गणेश की स्थापना की थी. भगवान गणेश के तीनों स्वरूपों की स्थापना के बाद श्री राम, लक्ष्मण और माता सीता ने पूजा-अर्चना की थी.
चिंतामन का अर्थ चिंता को हरने वाला या दूर करने वाला, इच्छामन यानी इच्छा को पूरा करने वाला और सिद्धिविनायक यानी सिद्धि को दिलाने या सफलता दिलाने वाला. इस मंदिर में भगवान गणेश इन तीनों स्वरूप में विराजमान हैं.
कहा जाता है कि इस मंदिर का अस्तित्व सतयुग से है
इस मंदिर के बारे में कई सारी कहानियां प्रचलित हैं. कई लोग मानते हैं कि इस मंदिर की स्थापना सतयुग में की गई थी. जो मान्यता सबसे ज्यादा सामान्य हैं वो ये है कि इस मंदिर की स्थापना भगवान राम, लक्ष्मण और सीता ने की थी. विद्वानों का मानना है कि पिता दशरथ का पिंडदान करने के लिए भगवान श्री राम, लक्ष्मण और सीता उज्जैन आए थे. शिप्रा नदी के किनारे राम घाट पर पिंडदान किया था.
पिंडदान करने के बाद लौटते समय माता सीता को प्यास लगी थी. लक्ष्मण ने अपने तीर को धरती पर मारा. वहां से पानी की धारा निकल आई उस धारा से माता सीता ने प्यास बुझाई. तीर वाली जगह पर आज बावड़ी है जो मंदिर परिसर में ही है. इस घटना के बाद यहां तीनों ने भगवान गणेश की स्थापना करके पूजा की. आज इसी बावड़ी के पानी का उपयोग मंदिर में पूजा के लिए किया जाता है.
मंदिर की संरचना परमार काल की है
चिंतामन गणेश मंदिर को आज हम जिस अवस्था में देख रहे हैं. इस अवस्था में ये परमार काल के राजाओं की देन है. परमार काल के राजाओं ने इस मंदिर को बनवाया था. बाद में इस मंदिर का देवी अहिल्याबाई होलकर ने जीर्णोद्धार करवाया था. मंदिर के खंभों पर आज भी हम परमार काल की झलक देख सकते हैं.
चैत्र महीने की जात्रा का है विशेष महत्व
हिंदू कैलेंडर के पहले महीने यानी चैत्र में जात्रा का आयोजन किया जाता है. किसान इस जात्रा का आयोजन करते हैं. चैत्र महीने के हर बुधवार को इस जात्रा का आयोजन किया जाता है. चैत्र के महीने तक गेहूं और चने जैसी रबी की फसल पक जाती है. इसी फसल का कुछ हिस्सा किसान मंदिर में दान करने के लिए आते हैं. मंदिर के आसपास के गांव से किसान ढोल-नगाड़े, गाते हुए मंदिर आते हैं. फसल दान करते हैं और भगवान गणेश की पूजा करते हैं.
चैत्र महीने में जब तक जात्रा का आयोजन किया जाता है मंदिर को विशेष रूप से सजाया जाता है. चिंतामन गणेश मंदिर में अलग-अलग उत्सव मनाए जाते हैं. पहले इस जात्रा में केवल किसान शामिल होते थे अब आम लोग भी इस जात्रा में शामिल होते हैं.
तिल चतुर्थी पर होते हैं विशेष आयोजन
सभी जानते हैं कि भगवान गणेश को मोदक और लड्डू बहुत पसंद हैं. भगवान की एक और पसंदीदा चीज है तिल. हिंदू कैलेंडर के माघ महीने में तिल चतुर्थी मनाई जाती है. इस दिन भगवान को तिल से बने लड्डू और दूसरी चीज अर्पित की जाती है. तिल चतुर्थी को तिलवा चौथ के नाम से भी जाना जाता है. इस मौके पर विशेष आयोजन किए जाते हैं.
गणेशोत्सव पर विशेष आयोजन किए जाते हैं
गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक 10 दिनों में विशेष आयोजन किए जाते हैं. भगवान गणेश का अलग-अलग दिन विशेष रूप से श्रृंगार किया जाता है. पूरे 10 दिन मंदिर में चहल-पहल और रौनक रहती है. दूर-दूर से श्रद्धालु मंदिर में आते हैं.
श्रद्धालुओं की पूरी होती है मनोकामना
देश-दुनिया से यहां श्रद्धालु आते हैं. दर्शन करते हैं और मन्नत मांगते हैं. यहां मंदिर की दीवार पर आप उल्टा स्वास्तिक बना हुआ देखेंगे. यहां मनोकामना पूरी करने के लिए मंदिर की दीवार पर उल्टा स्वास्तिक बनाया जाता है. मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालु धन्यवाद देने आते हैं.