‘खाता ना बही, जो वक्फ कहे वही सही…’, राज्यसभा में गरजीं कविता पाटीदार, बोलीं- वक्फ की संपत्ति डबल हुई लेकिन आय नहीं बढ़ी

वक्फ बिल पर बोलीं राज्यसभा सांसद कविता पाटीदार- वक्फ की संपत्ति बढ़ी लेकिन आय घटी
Waqf Amendment Bill: गुरुवार यानी 3 अप्रैल को राज्यसभा से वक्फ संशोधन बिल (Waqf Amendment Bill) पास हो गया. इस दौरान सदन में चर्चा हुई. मध्य प्रदेश से राज्यसभा सांसद कविता पाटीदार (Rajya Sabha MP Kavita Patidar) ने बिल को लेकर विपक्ष पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि विपक्ष तुष्टीकरण की राजनीति कर रहा है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वक्फ की संपत्ति डबल हुई लेकिन आय कम हुई है.
‘वक्फ संपत्ति से 9.2 करोड़ रुपये आय’
राज्यसभा सांसद कविता पाटीदार ने कहा कि मंत्रीजी (अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू) ने भी कहा है कि इस देश में सबसे ज्यादा संपत्ति वक्फ बोर्ड के पास है. करीब 9 लाख एकड़ में फैली हुई है. 2006 में आई सच्चर समिति की रिपोर्ट में ये बताया गया था कि यदि इस प्रॉपर्टी का उचित प्रबंधन होता तो इससे 12 हजार लाख की आय होती. पहले इनकी आय 164 करोड़ बताई गई थी. अब संपत्ति डबल हो गई है लेकिन आय इन्होंने 9.2 करोड़ बताई है. यानी संपत्ति डबल हो गई और आय कम हो गई. इस कुप्रबंधन को रोकने का काम इस बिल के माध्यम से किया जा रहा है.
उन्होंने आगे कहा कि मैं मध्य प्रदेश की रहने वाली हूं. प्रदेश में 15008 वक्फ संपत्तियां हैं. इससे उनकी ना के बराबर इनकम है. पैसा जाता कहां है. उस पैसे से उत्थान हो सके और कल्याण हो सके इसलिए ऐसे बिल लाना जरूरी है.
ये भी पढ़ें: सरकार ने पार की अग्निपरीक्षा, दोनों सदनों में पास हुआ बिल, राष्ट्रपति के मुहर के बाद बनेगा कानून
‘विपक्ष की तुष्टीकरण की राजनीति कर रहा’
विपक्ष पर निशाना साधते हुए कविता पाटीदार ने कहा कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दल इस बिल का समर्थन इसलिए नहीं कर रहे क्योंकि तुष्टीकरण की राजनीति और वोट बैंक की राजनीति के चलते इन्होंने कभी नहीं चाहा कि सुधार हो. अंधेर नगरी और चौपट राजा के नाम पर इन्होंने आंख मीचने का काम किया. ये कैसा कानून है जो लोगों की जमीन छीन ले. गांव के गांव पर कब्जा कर ले. ये कैसा कानून था जिसकी अपील नहीं की जा सकती थी. कोर्ट में नहीं जा सकते थे. संविधान से ऊपर कानून को मान लिया था. इन्होंने तो मान लिया कि खाता ना बही, जो वक्फ कहे वही सही, इसी प्रकार की बात इनकी चलती रही. अब कुप्रबंधन की नहीं सुप्रबंधन की बात होगी.