“खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी…” कविता सुनते ही याद आ जाती हैं सुभद्रा कुमारी चौहान, आज है पुण्यतिथि
‘चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी.’
सन् 1857 की क्रांति की नायिका झांसी की रानी का जब भी जिक्र होता है तो वीर रस की यह कविता याद आ ही जाती है, “बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी.” हम सबने अपने बचपन में यकीनन ही एक बार तो इस कविता को जरूर सुना होगा. इस मशहूर कविता को लिखने वाली सुभद्रा कुमारी चौहान की आज पुण्यतिथि है. 16 अगस्त 1904 में नागपंचमी के दिन इलाहाबाद के पास निहालपुर के जमींदार परिवार में जन्मी सुभद्रा कुमारी चौहान ने आज ही के दिन 15 फरवरी 1948 को बसंत पंचमी के दिन दुनिया को अलविदा कह दिया था.
मात्र 9 साल की उम्र में लिख दी पहली कविता
सुभद्रा कुमारी चौहान ने मात्र 9 साल की उम्र में ही अपनी पहली कविता ‘नीम’ की रचना की थी. इस कविता को पत्रिका ‘मर्यादा’ में जगह दी गई, जिसके बाद वह अपने स्कूल में मशहूर हो गईं. सुभद्रा कुमारी चौहान स्कूल में प्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा की जूनियर थीं. कुमारी चौहान किसी कारणवश केवल नौवीं क्लास तक ही पढ़ाई कर पाईं, लेकिन कविता लिखने का शौक उनको बचपन से ही था और उसको उन्होंने कभी नहीं छोड़ा और आगे लिखती रहीं.
उनकी कविताओं में कभी भी इस बात का आभास नहीं हुआ कि उन्होंने केवल कक्षा नौवीं तक ही पढ़ाई की है. बाद में उन्होंने कहानियां लिखना भी शुरू कर दिया और यह काम उन्होंने कुछ पैसा कमाने के लिए किया था क्योंकि उस समय कविताओं के कोई पैसे नहीं मिलते थे.
असहयोग आंदोलन में दिया योगदान
सुभद्रा कुमारी चौहान ने शुरुआत से ही स्वतंत्रता आंदोलन में आगे बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया, जिसके चलते कई बार वो जेल भी गईं. सन् 1919 में मध्य प्रदेश, खंडवा के लक्ष्मण सिंह के साथ कुमारी सुभद्रा कुमारी चौहान का विवाह हुआ.उनके पति एक नाटककार थे, और उन्होंने अपनी पत्नी के शौक का समर्थन किया और इसका सहयोग भी किया. पति लक्ष्मण सिंह पहले से ही स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल थे, फिर महात्मा गांधी के आह्वान पर दोनो पति पत्नी गांधी जी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए.
रचनाओं में नारियों की स्वाधीनता की झलक
सुभद्रा कुमारी चौहान का जीवन भी उनके साहित्य की तरह काफी सरल और स्पष्ट है. उनकी रचनाओं में राष्ट्रीय आंदोलन की चेतना, स्त्रियों की स्वाधीनता और जातियों का उत्थान समाहित है. कुल मिलाकर कुमारी चौहान का हिंदी साहित्य में एक विशेष योगदान है. आज पूरा देश उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर स्वतंत्रता आंदोलन में दिए उनके योगदान को याद कर, उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दे रहा है.