MP में क्यों 27% OBC रिजर्वेशन को लेकर मचा है बवाल? सुप्रीम कोर्ट हुआ सख्त तो कांग्रेस को मिला ‘मौका’

MP News: मध्य प्रदेश में एक लंबे समय से OBC वर्ग के लिए 27% आरक्षण को लेकर बवाल मचा हुआ है. कानून बनने के बाद इसे अब तक नौकरियों में लागू नहीं किया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सख्ती बरती तो अब कांग्रेस को एक बार फिर सरकार को घेरने का मौका मिल गया है. जानें पूरा मामला-
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OBC रिजर्वेशन

MP News: मध्य प्रदेश में OBC वर्ग के लिए 27% रिजर्वेशन लागू नहीं होने पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के खिलाफ सख्ती दिखाई है. राज्य में यह मुद्दा लंबे समय से कानूनी और राजनीतिक विवाद का केंद्र रहा है. यह विवाद 2019 में शुरू हुआ जब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने ओबीसी आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% करने का फैसला किया. इस निर्णय को लेकर कई कानूनी चुनौतियां सामने आईं, जिसके चलते मामला हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। साथ ही, यह मुद्दा राजनीतिक दलों के बीच तीखी बयानबाजी और आरोप-प्रत्यारोप का कारण भी बना.

आखिर विवाद क्या है?

मध्य प्रदेश में OBC समुदाय की आबादी 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 50.09% है, जो राज्य की कुल आबादी का बड़ा हिस्सा है. मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर OBC को 27% आरक्षण की सलाह दी गई थी, लेकिन मध्य प्रदेश में लंबे समय तक OBCको केवल 14% आरक्षण ही मिलता रहा. साल 2019 में तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने मध्य प्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2019 पारित कर ओबीसी आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% किया. इस फैसले से राज्य में कुल आरक्षण (SC: 16%, ST: 20%, OBC: 27%, और EWS: 10%) 63% हो गया, जो सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा साहनी मामले (1992) में निर्धारित 50% आरक्षण की सीमा से अधिक है. इस वजह से यह कानून विवादों में घिर गया.

जानें कानूनी पहलू

सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार (1992) मामले में यह स्पष्ट किया था कि आरक्षण की कुल सीमा 50% से अधिक नहीं होनी चाहिए, सिवाय विशेष परिस्थितियों के. मध्य प्रदेश में 27% OBC आरक्षण लागू करने से कुल आरक्षण 63% हो गया, जिसे कई याचिकाकर्ताओं ने असंवैधानिक करार दिया. याचिकाकर्ताओं, जैसे यूथ फॉर इक्वेलिटी ने तर्क दिया कि यह संविधान के समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) और सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करता है.

हाई कोर्ट में चुनौती

  • 2019 में OBC आरक्षण बढ़ाने के फैसले के खिलाफ मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गईं. इनमें आशिता दुबे और यूथ फॉर इक्वेलिटी जैसी याचिकाओं ने 27% आरक्षण को चुनौती दी. हाई कोर्ट ने 19 मार्च 2019 को एक अंतरिम आदेश में 13% अतिरिक्त आरक्षण पर रोक लगा दी थी, जिसके कारण भर्तियों में केवल 14% OBC आरक्षण लागू रहा.
  • 4 अगस्त 2023 को हाई कोर्ट ने 87:13 फॉर्मूले का आदेश दिया, जिसमें 87% पदों पर भर्ती सामान्य प्रक्रिया से और 13% पदों को होल्ड पर रखने का निर्देश दिया गया, ताकि अंतिम फैसले के बाद स्थिति स्पष्ट हो। इस फॉर्मूले ने भर्ती प्रक्रिया को और जटिल कर दिया, जिससे हजारों उम्मीदवार प्रभावित हुए.

सुप्रीम कोर्ट कैसे पहुंचा पूरा मामला?

2024 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले से जुड़ी 85 से अधिक याचिकाओं को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट से अपने पास स्थानांतरित कर लिया. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगा कि जब 27% आरक्षण पर कोई स्पष्ट रोक नहीं है, तो इसे लागू क्यों नहीं किया जा रहा. 25 जून 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार के रवैये पर नाराजगी जताई और पूछा कि 14 अगस्त 2019 को पारित कानून को लागू करने में देरी क्यों हो रही है. कोर्ट ने 4 जुलाई 2025 को अगली सुनवाई निर्धारित की, जो निर्णायक मानी जा रही है.

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि 2019 के अंतरिम आदेश (हाई कोर्ट का) का हवाला देकर सरकार 27% आरक्षण लागू न करने का बहाना नहीं बना सकती, क्योंकि यह आदेश विधायी कानून पर लागू नहीं होता.

हाई कोर्ट का फैसला

28 जनवरी 2025 को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने यूथ फॉर इक्वेलिटी की याचिका खारिज कर दी, जिसमें 27% OBC आरक्षण को चुनौती दी गई थी. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 27% आरक्षण पर कोई न्यायिक रोक नहीं है और सरकार इसे लागू कर सकती है. इस फैसले ने 87:13 फॉर्मूले को भी समाप्त कर दिया, जिससे 5500 से अधिक पदों पर भर्ती का रास्ता साफ हुआ. हालांकि, कुछ याचिकाएं अभी भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं, जिसके कारण अंतिम स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाई है.

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कानूनी तर्क और विशेषज्ञों की राय

OBC के पक्ष में वकील रामेश्वर सिंह ठाकुर और वरुण ठाकुर ने तर्क दिया कि 27% आरक्षण पर कोई स्थाई रोक नहीं है और सरकार जानबूझकर इसे लागू नहीं कर रही. उनका कहना है कि यह संविधान के अनुच्छेद 15(4) और 16(4) का उल्लंघन है, जो सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को आरक्षण का अधिकार देता है. दूसरी ओर, याचिकाकर्ताओं का कहना है कि 50% से अधिक आरक्षण संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करता है और सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों के साथ भेदभाव करता है.

राजनीतिक टीका-टिप्पणी

27% OBC आरक्षण का मुद्दा मध्य प्रदेश में राजनीतिक दलों के लिए एक प्रमुख हथियार बन गया है, खासकर क्योंकि OBC समुदाय राज्य की आबादी का बड़ा हिस्सा है. दोनों प्रमुख दल, कांग्रेस और बीजेपी, इस मुद्दे पर एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं.

जीतू पटवारी ने मोहन सरकार पर साधा निशाना

MP कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने BJP की नीति और नीयत पर सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार को एक निश्चित तारीख तय कर 27% आरक्षण लागू करना चाहिए. कांग्रेस का आरोप है कि BJP ‘OBC विरोधी’ है और इस मुद्दे पर केवल दिखावटी समर्थन दे रही है. सुप्रीम कोर्ट की सख्ती को लेकर जीतू पटवारी ने ट्वीट किया- ‘OBC आरक्षण पर BJP सरकार का झूठ फिर देश के सामने है! माननीय उच्चतम न्यायालय ने बहुत स्पष्ट तौर पर कहा है कि मप्र में 27% OBC आरक्षण पर प्रतिबंध नहीं है! मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार ने ही वर्ष 2019 में OBC आरक्षण 14% से बढ़ाकर 27% किया था! इसके बावजूद BJP दुर्भावना के कारण निर्णय नहीं ले रही है! मुख्यमंत्री जी, OBC के इस अधिकार के लिए हम हर मुमकिन कदम उठाएंगे! सड़क से सदन तक निर्णायक संघर्ष के जरिए सत्य और न्याय को जीत दिलवाएंगे!’

राहुल गांधी-कमलनाथ ने घेरा

प्रदेश में 27% OBC आरक्षण को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रदेश के पूर्व CM कमलनाथ भी कई बार प्रदेश सरकार को जमकर घेरते आए हैं.

BJP का पलटवार

BJP सरकार और मुख्यमंत्री मोहन यादव कहते आए हैं कि वे 27% OBC आरक्षण के प्रति प्रतिबद्ध हैं और सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे को जल्द सुलझाने के लिए कदम उठा रहे हैं. BJP का आरोप है कि कमलनाथ सरकार ने 27% आरक्षण की घोषणा तो की थी, लेकिन इसे लागू करने के लिए गजट अधिसूचना जारी नहीं की, जिसके कारण यह कानूनी रूप से कमजोर रहा. BJP ने यह भी आरोप रहा कि कांग्रेस इस मुद्दे का राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश कर रही है.

सामाजिक संगठनों की प्रतिक्रिया

OBC एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन जैसे संगठनों ने सरकार पर संवैधानिक संकट पैदा करने और OBC उम्मीदवारों के अधिकारों का हनन करने का आरोप लगाते रहे हैं. उनकी मांग है कि सरकार छत्तीसगढ़ की तरह अंतिम निर्णय के अधीन भर्तियां शुरू करे.

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वर्तमान व्यवस्था से अभ्यर्थी परेशान

87:13 फॉर्मूले और कोर्ट के अंतरिम आदेशों के कारण हजारों सरकारी नौकरियों की भर्तियां रुकी हुई हैं. इससे OBC और सामान्य वर्ग दोनों के उम्मीदवार प्रभावित हुए हैं, जिससे असंतोष बढ़ा है। कई अभ्यर्थी ऐसे हैं जो इस व्यवस्था का शिकार हैं और नौकरी का इंतजार कर रहे हैं.

वर्तमान स्थिति

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 28 जनवरी 2025 को 27% OBC आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी, जिससे इसकी राह साफ हुई. वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने 25 जून 2025 को सरकार से जवाब मांगा कि 27% आरक्षण लागू क्यों नहीं किया जा रहा और अब अगली सुनवाई 4 जुलाई 2025 को होगी.

मध्य प्रदेश में 27% ओबीसी आरक्षण का विवाद कानूनी और राजनीतिक दोनों दृष्टिकोण से जटिल है. कानूनी रूप से, सुप्रीम कोर्ट की 50% आरक्षण सीमा और हाई कोर्ट के अंतरिम आदेशों ने इसकी राह में बाधाएं खड़ी की हैं. राजनीतिक रूप से, यह मुद्दा कांग्रेस और बीजेपी के बीच वोट बैंक की लड़ाई बन गया है, जिसमें दोनों दल एक-दूसरे पर ढिलाई और षड्यंत्र का आरोप लगा रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट का आगामी फैसला इस मामले में निर्णायक होगा, जो न केवल मध्यप्रदेश बल्कि अन्य राज्यों में भी आरक्षण नीतियों को प्रभावित कर सकता है. उम्मीदवारों और OBC समुदाय की नजर अब 4 जुलाई 2025 की सुनवाई पर टिकी है.

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