Bhabhut Singh: कौन हैं राजा भभूत सिंह? जिनके सम्मान में पचमढ़ी में होगी मोहन कैबिनेट की बैठक

Bhabhut Singh: 3 जून को मोहन कैबिनेट की बैठक नर्मदापुरम के पचमढ़ी में आयोजित की जाएगी. ये मीटिंग राजा भभूत सिंह की स्मृति होगी. इस मीटिंग में कई प्रस्तावों पर मुहर लगेगी. सीएम यहां 21 करोड़ 39 लाख के 6 विकास कार्यों का भूमिपूजन भी करेंगे.
king bhabhut singh

राजा भभूत सिंह

Bhabhut Singh: 3 जून को सीएम मोहन यादव कैबिनेट की बैठक नर्मदापुरम के पचमढ़ी में होने वाली है. यह कैबिनेट बैठक अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध लड़ने वाले गोंड शासक भभूत सिंह की स्मृति में समर्पित होगी. इस मीटिंग में कई प्रस्तावों पर मुहर लगेगी. पचमढ़ी में एमपी टूरिज्म विभाग के 12 करोड़ 49 लाख रुपये के 5 विकास कार्यों का लोकार्पण करेंगे. सीएम यहां 21 करोड़ 39 लाख के 6 विकास कार्यों का भूमिपूजन भी करेंगे.

सीताबर्डी के युद्ध में अंग्रेजों को चटाई धूल

पचमढ़ी जागीर के स्वामी ठाकुर अजीत सिंह जी के वंश में हर्राकोट राईखेड़ी शाखा के जागीरदार परिवार में राजा भभूत सिंह ने जन्म लिया था. पचमढ़ी में महादेव की चौरागढ़ पहाड़ियों में राजा भभूत सिंह के दादा जी ठाकुर मोहन सिंह ने साल 1819-20 में अंग्रेजों के विरुद्ध नागपुर के पराक्रमी पेशवा अप्पा साहेब भोंसले के कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग किया था. नागपुर के सीताबर्डी के युध्द में पेशवा अप्पा साहिब को अंग्रेजों ने अपमानजनक संधि के लिए विवश कर दिया था परंतु अप्पा साहिब बहुत दिनों तक शांत नहीं बैठे.

सतपुड़ा में क्रांति की अलख जगाई

भभूत सिंह कई दिनों तक महादेव की पहाड़ियों मे रहकर गुप्त रूप से अंग्रेजों के खिलाफ आदिवासी समुदाय को संगठित किया. इसी समय अप्पा साहिब का साथ दिया, भभूत सिंह ने अपने दादा जी से प्रेरित होकर 1857 की सशस्त्र क्रांति का सूत्रपात सतपुड़ा की गोद में कर दिया था. वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तात्याटोपे के आह्वान पर देश की आजादी की मशाल लेकर सतपुड़ा की सुरम्य वादियों में निकल पड़े थे.

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अंग्रेजों की आंख में धूल झोंकते हुए अक्टूबर 1858 के अंतिम सप्ताह में तात्याटोपे ने ऋषि शांडिल्य की पौराणिक तपोभूमि सांडिया के पास नर्मदा नदी पार की और महुआखेड़ा फतेहपुर के राजगोंड राजा ठाकुर किशोर सिंह ने अंग्रेजों की चिंता ना कर तात्या टोपे का पुरजोर स्वागत सत्कार किया. दोनों ने मिलकर आजादी की लड़ाई की योजना बनाई. पचमढ़ी में सतपुड़ा की गोद में तात्या टोपे अपनी फौज के साथ भभूत सिंह से मिलकर आठ दिनों तक पड़ाव डाले आगे की तैयारी करते रहे.

सतपुड़ा का शिवाजी कहा जाता है

भभूत सिंह का आदिवासी समाज पर बहुत अधिक प्रभाव था. एक बार सोहागपुर से थानेदार हर्राकोट आया और उसने जागीरदार से मुर्गियों की मांग की भभूत सिंह ने इसे अपमानजनक माना और अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया. इसके बाद इस क्षेत्र में भभूत सिंह ने अंग्रेजों को चैन से बैठने नहीं दिया. फतेहपुर और शोभापुर के राजाओं का साथ मिलने पर भभूत सिंह की ताकत और अधिक हो गई थी. भभूत सिंह का रण कौशल शिवाजी की तरह था. शिवाजी की तरह भभूत सिंह पहाड़ी मार्ग के चप्पे-चप्पे से वाकिफ थे. वहीं अंग्रेज इस क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियों से परिचित नहीं थे. इन्हीं खूबियों के कारण उन्हें सतपुड़ा का शिवाजी कहा जाता है.

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अंग्रेजों की टुकड़ी को किया पराजित

देनवा घाटी में अंग्रेजी मिलिटरी सेना और मद्रास इन्फेंटरी की टुकड़ी के साथ भभूत सिंह का युद्ध हुआ तो अंग्रेजी सेना बुरी तरह पराजित हो गई. अंग्रेज अधिकारी एलियट की 1865 की सेटलमेंट रिपोर्ट में भभूत सिंह के अंग्रेजों के खिलाफ पूरी ताकत से किये गये इस विद्रोह का उल्लेख मिलता है. एलियट लिखते हैं कि भभूत सिंह को पकड़ने के लिए ही मद्रास इन्फेंटरी को बुलाना पड़ा था. भभूत सिंह अपनी सेना के साथ साल 1860 तक लगातार अंग्रेजों से सशस्त्र संघर्ष करते रहे. अंग्रेज पराजित होते रहे. दो साल के अथक प्रयासों के बाद अंग्रेजों ने भभूत सिंह को गिरफ्तार कर कैद कर लिया. साल 1860 में जबलपुर में मौत की सजा सुना कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया.

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