कौन हैं जंगम साधु; जो हाथ में नहीं लेते भिक्षा, महाकुंभ में जुटे इन साधुओं का भगवान शिव से जुड़ा है इतिहास
कौन हैं जंगम साधु
Maha Kumbh 2025: तीर्थराज नगरी प्रयागराज में जब से महाकुंभ शुरू हुआ है, तब से अलग-अलग रंग देखने को मिल रहे हैं. ऐसा ही एक अनोखा रंग है जोगी जंगम साधु के जत्थे का. महाकुंभ में हाथों में ढफली, मंजीरा, ढोलक आदि लिए भजन-कीर्तन करते ये साधु सबका ध्यान अपनी ओर खींच रहे हैं. ये साधु मधुर गीत गाते हैं और भगवान शिव की जांघ से पैदा होने का अपना इतिहास बताते हैं.
कैसे होती है जोगी जंगम साधु की पहचान
सिर पर मोरपंख, शिव का नाम, बिंदी और कानों में पार्वती के कुंडल विराजे जोगी जंगम साधु होते हैं. हाथों में ढफली, मंजीरा, ढोलक आदि लिए अखाड़ों में साधुओं का एक जत्था निरंतर भजन-कीर्तन करते हुए पहुंचता है. इन साधुओं के भजन-कीर्तन मनोरंजन के लिए नहीं होते. वे कल्पवास में बैठे साधुओं से भिक्षा मांगने के लिए होते हैं. जोगी जंगम साधु बहुत मधुर गीत गाते हैं. साथ में यह साधु नृत्य भी करते हैं.
क्या है इतिहास
धार्मिक मान्यता है कि पार्वती से शादी के बाद जब शिव ने भगवान विष्णु और ब्रह्मा को दान देना चाहा, तो उन्होंने दान लेने से मना कर दिया. इससे नाराज होकर भगवान शिव ने क्रोध में अपनी जांघ पीट दी. इससे साधुओं का एक संप्रदाय पैदा हुआ. इसका नाम पड़ा- जंगम साधु अर्थात जांघ से जन्मा साधु. यह साधु साधु-संतों से ही भिक्षा मांगते हैं.
अखाड़ों के पास जाकर सुनाते हैं शिव कथा और गीत
यही जंगम साधु आज भी संन्यासी अखाड़ों के पास जाकर शिव कथा और गीत सुनाते हैं. उनसे मिले दान से अपनी जीविका चलाते हैं. ये ‘भेंट’ को हाथ से नहीं लेते. बल्कि अपनी घंटी को उलट कर उसमें दक्षिणा लेते हैं क्योंकि इनका मानना है कि घंटी उनके लिए मंदिर है और उसमें शिवलिंग है.
उत्तर भारत में तो जंगम साधुओं की संख्या लगभग 3000 है. महाकुंभ पहुंचे जंगम साधु अपनी वेशभूषा और आचरण को लेकर चर्चा में रहते हैं.