Girijatmaj Ganpati: इसी जगह हुआ था भगवान गणेश का जन्म, भगवान शिव ने काटा था बालक गणेश का सर
गिरिजात्मज गणपति (फाइल फोटो)
Girijatmaj Ganapati Mandir: गणेशोत्सव बहुत धूमधाम से चल रहा है और सब जगह अलग-अलग रूपों में गणेश जी की पूजा की जा रही है. इसलिए इस पावन अवसर पर हम रोज आपके लिए ला रहे हैं गणपति बप्पा के अष्टविनायक स्वरूपों की कहानियां. आज हम आपको बताएंगे गणेश जी के छठवें स्वरूप गिरिजात्मज के मंदिर की कहानी.
पांडवों ने की थी भगवान गणेश की मूर्ति की खोज
गिरिजात्मज का अर्थ होता है, गिरिजा यानि (पार्वती) का आत्मज यानी (पुत्र). गिरिजात्मज गणपति मंदिर महाराष्ट्र में लेण्याद्रि पर्वत पर कुकड़ी नदी के पास एक बड़ी गुफा में स्थित है. लेण्याद्री का अर्थ है गुफाओं वाला पर्वत. इसे जीरापुर और लेखन पर्वत भी कहा जाता है.
एक प्राचीन कहानी के अनुसार, जब पांडव अपने तेरहवें वर्ष के दौरान अज्ञातवास में थे, तो उन्होंने गणपति की इस मूर्ति को खोजा था और एक रात में इन गुफाओं को तराश दिया था. पूर्व से पश्चिम तक फैली यहाँ कुल 28 गुफाएं हैं. गणेश मंदिर सातवीं अधूरी गुफा में है, जहां से मंदिर का और पूरी पहाड़ियों का अद्भुत नजारा दिखाई देता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार ये पहाड़ियां कभी माता पार्वती का निवास स्थान हुआ करती थीं.
ऐसे प्रकट हुए भगवान गणेश
मान्यता के अनुसार, जब भगवान शिव ने अपने पुत्र कार्तिकेय को दक्षिण भारत में प्रवास के लिए भेज दिया तो पार्वती माता बहुत अकेला महसूस करने लगी थी और उन्हें एक पुत्र प्राप्त करने की इच्छा हुई. इसलिए देवी पार्वती ने इस गुफा में पुत्र प्राप्ति के लिए बारह वर्षों तक तपस्या की और लंबी तपस्या के बाद उन्होंने अपने शरीर की मैल से एक मूर्ति का निर्माण किया. माता ने अपनी तपस्या के बल पर उसमें प्राण फूंके और इस प्रकार भगवान गणेश उनके पुत्र के रूप में प्रकट हुए.
देवी पार्वती ने यहाँ पर 15 वर्षों तक निवास किया था. यहां पर काफी जल कुंड भी हुआ करते थे. जहां माता पार्वती स्नान किया करती थीं. मान्यताओं के अनुसार, यही वो स्थान है, जहां शिव जी माता पार्वती से मिलने पहुंचे थे और बाल गणेश ने उनका रास्ता रोका था. जिसके बाद शिव जी ने क्रोध में आकर गणेश का सिर काट दिया था. आज भी वो कुंड इसी स्थान पर देखा जा सकता है.
सूर्य की किरणों से हमेशा प्रकाशित रहता है ये मंदिर
इस गुफा में मंदिर का निर्माण इस तरह से किया गया है कि दिन के दौरान यह हमेशा सूर्य की किरणों से प्रकाशित रहता है. मंदिर का सभामंडप 60 फीट चौड़ा है. ये मंदिर दक्षिण मुख है – इसे दक्षिण की ओर मुख करके तथा एक ही चट्टान को तराश कर बनाया गया है. मंदिर का सभामंडप 53 फीट लंबा और ऊंचा है, लेकिन इसे सहारा देने के लिए एक भी स्तंभ नहीं है. सभामंडप में ध्यान के लिए 18 छोटे कमरे हैं, जिनके भीतर गिरिजात्मज की मूर्ति है.
मूर्ति स्वयं उत्तराभिमुख है, अर्थात उत्तर की ओर मुख करके. यहां की मूर्ति कोई आम मूर्ति नहीं है, बल्कि चट्टान को तराश कर बनाया गया भित्ति चित्र है. मूर्ति का सिर बाईं ओर मुड़ा हुआ है. मंदिर के सामने दो पानी की टंकियां हैं. इसी तरह, 21वीं और पहली गुफा में भी एक पानी की टंकी है. इन तालाबों की खासियत यह है कि इनमें साल भर पानी रहता है. इसके अलावा, पानी साफ और प्राकृतिक रूप से ताजा है.
आज तक कोई नहीं ढूंढ पाया मूर्ति का मुख
यहां गणपति की जो मूर्ति है वो बहुत ही सरल है. इसके विषय में कहा जाता है की मूर्ति में जो गणपति की पीठ की छवि है और उनका मुख गुफा के दूसरी तरफ है. हालांकि मराठा साम्राज्य के कई पेशवाओं महाराजाओं ने गणपति का दुरी तरफ मुख ढूंढ़ने की कोशिश की लेकिन कोई भी सफल नहीं हुआ.
यहां की गुफा नंबर 7 में स्थापित गणेश मूर्ति के बारे में ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं होती लेकिन भगवान गणेश वाली गुफा को सबसे प्राचीन बताया जाता है. इस गुफा को छोड़कर बाकी अन्य गुफाएं हिनायन बौद्ध धर्म से संबंध रखती हैं. इन गुफाओं में बने ज्यादातर कमरे बौद्ध भिक्षुओं द्वारा साधना स्थल के रूप में उपयोग किए जाते थे. प्रत्येक गुफा को उनकी अपनी संख्या प्राप्त है, जो आकार और डिजाइन में एक जैसी ही प्रतीत होती हैं.
पुरातत्व विभाग कर रहा मंदिर का संरक्षण
ऐतिहासिक महत्व और प्राचीन होने कारण अब ये पूरा स्थान भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है. अब यहां सैलानियों को आने की भी इजाजत दे दी गई है. गुफा में प्रवेश करने के लिए हर पर्यटक का टिकट लेना अनिवार्य है. यहां की प्राचीन गुफाएं देखने में काफी सुंदर हैं, आसपास का मनोरम दृश्य इस गुफा को और अद्भुत बनाने का काम करता है.