Ganesh Chaturthi 2025: छत्तीसगढ़ के ढोलकल पर्वत पर 3300 फीट की ऊंचाई पर विराजते हैं भगवान गणेश, जानिए क्या है पौराणिक गाथा

Ganesh Chaturthi 2025: दंतेवाड़ा जिले की ढोलकल पहाड़ी पर विराजमान भगवान गणेश की दुर्लभ प्रतिमा धार्मिक आस्था, इतिहास और रोमांच का अनूठा संगम है. करीब 3,300 फीट ऊंचाई पर स्थित यह स्थल आज भी लोगों के लिए रहस्य और आकर्षण का केंद्र है.
Lord Ganesha

ढोलकल पर्वत पर विराजमान भगवान गणेश

Ganesh Chaturthi 2025: छत्तीसगढ़ का बस्तर क्षेत्र प्राकृतिक खूबसूरती और संस्कृति का खजाना माना जाता है. इसी क्षेत्र की दंतेवाड़ा जिले की बैलाडीला श्रृंखला की एक ऊंची पहाड़ी है ढोलकल. समुद्र तल से लगभग 3300 फीट ऊंची इस चोटी पर भगवान गणेश की 11वीं सदी की काले ग्रेनाइट पत्थर से बनी प्रतिमा स्थापित है. यह प्रतिमा करीब पांच फीट ऊंची और ढाई फीट चौड़ी है. इसे छिंदक नागवंशी राजाओं ने स्थापित कराया था. सबसे खास बात यह है कि घने जंगल और कठिन पहाड़ी मार्ग के बीच यह मूर्ति आज भी पूरी तरह सुरक्षित है.

परशुराम-गणेश युद्ध और फरसपाल का नाम

स्थानीय लोककथाओं के अनुसार, ढोलकल की यह प्रतिमा भगवान गणेश और परशुराम के बीच हुए एक पौराणिक युद्ध से जुड़ी है. कथा के मुताबिक, परशुराम जब भगवान शिव से मिलने पहुंचे, तो गणेश जी ने उन्हें रोक दिया. इससे क्रोधित होकर परशुराम ने फरसे से गणेश पर वार किया और उनका एक दांत टूट गया. तभी से उन्हें एकदंत कहा जाने लगा. कहा जाता है कि इसी घटना की स्मृति में यहां प्रतिमा स्थापित की गई और पहाड़ी के नीचे बसे गांव का नाम फरसपाल पड़ा, जो परशुराम के फरसे से जुड़ा हुआ है.

कठिन यात्रा और रोमांचक अनुभव

ढोलकल प्रतिमा तक पहुंचना आसान नहीं है. दंतेवाड़ा से लगभग 18 किलोमीटर दूर फरसपाल से होकर लोग यहां तक आते हैं. वहां से जामपारा गांव तक वाहन ले जा सकते हैं. इसके बाद करीब तीन घंटे की पैदल यात्रा करनी पड़ती है, जिसमें जंगलों और पगडंडियों से होकर गुजरना होता है. बारिश के मौसम में पहाड़ी नाले रास्ता रोक देते हैं. अभी तक सरकार की ओर से यहां सड़क या पर्यटन की कोई खास सुविधा विकसित नहीं की गई है. लोग ग्रामीण युवकों की मदद से ही यहां तक पहुंच पाते हैं. नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण विकास कार्यों में भी रुकावट आती रही है, लेकिन धीरे-धीरे हालात बदल रहे हैं.

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प्रतिमा की विशेषताएं और पुरातात्विक महत्व

गणेश जी की यह प्रतिमा कई मायनों में अनोखी है. करीब 500 किलो वजन की यह मूर्ति एक ही पत्थर से तराशी गई है. इसे ढोलक के आकार में गढ़ा गया है, इसी से इस पर्वत का नाम ढोलकल पड़ा. गणेश जी यहां ललितासन मुद्रा में विराजमान हैं और उनकी प्रतिमा के नक्काशीदार हिस्सों में कई खास प्रतीक उकेरे गए हैं. पेट पर सर्प की आकृति और जनेऊ की जगह हथकड़ी जैसी संरचना इसे विशिष्ट बनाती है. विशेषज्ञ मानते हैं कि ये प्रतीक नागवंशी शासन के प्रभाव और कला शैली को दर्शाते हैं.

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