Pitru Paksha 2025: 122 साल बाद अनोखा संयोग, चंद्र ग्रहण के साथ शुरू होगा पितृपक्ष, जानें तर्पण की पूरी विधि

Chandra Grahan 2025: Pitru Paksha 2025 Rules: 122 साल बाद ऐसा मौका आया है, जब पितृपक्ष की शुरुआत 7 सितंबर को चंद्र ग्रहण के साथ होगी और इसका समापन 21 सितंबर को सूर्य ग्रहण के साथ होगा.
Pitru Paksha Kab Se Hai

पितृ पक्ष की तिथि

Pitru Paksha 2025 Rules: हिंदू धर्म में पितरों की आत्मा की शांति के लिए समर्पित पितृपक्ष इस बार एक दुर्लभ खगोलीय संयोग के साथ शुरू होने जा रहा है. 122 साल बाद ऐसा मौका आया है, जब पितृपक्ष की शुरुआत 7 सितंबर को चंद्र ग्रहण के साथ होगी और इसका समापन 21 सितंबर को सूर्य ग्रहण के साथ होगा. यह संयोग ज्योतिषीय और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है.

पितृपक्ष और चंद्र ग्रहण का दुर्लभ संयोग

पितृपक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है, हर साल भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन अमावस्या तक 16 दिनों तक चलता है. इस दौरान लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान जैसे अनुष्ठान करते हैं. इस बार, 7 सितंबर को भाद्रपद पूर्णिमा के दिन पूर्ण चंद्र ग्रहण के साथ पितृपक्ष की शुरुआत होगी. वहीं, इसका समापन 21 सितंबर को सूर्य ग्रहण के साथ होगा. ज्योतिषियों के मुताबिक, ऐसा संयोग 122 साल बाद बन रहा है, जो इसे विशेष और दुर्लभ बनाता है.

चंद्र ग्रहण का समय

7 सितंबर को होने वाला चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई देगा. यह पूर्ण चंद्र ग्रहण रात 9:57 बजे शुरू होगा और 8 सितंबर की रात 1:26 बजे समाप्त होगा, जिसकी कुल अवधि 3 घंटे 28 मिनट होगी. इस दौरान चंद्रमा पृथ्वी की छाया में पूरी तरह ढक जाएगा, जिससे यह लाल रंग का दिखाई दे सकता है, जिसे ‘ब्लड मून’ भी कहा जाता है. यह ग्रहण भारत के अलावा एशिया, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, अमेरिका और न्यूजीलैंड में भी दिखाई देगा.

हालांकि, सूर्य ग्रहण (21 सितंबर 2025) भारत में दिखाई नहीं देगा. यह ग्रहण न्यूजीलैंड, फिजी, अंटार्कटिका और ऑस्ट्रेलिया के दक्षिणी हिस्सों में नजर आएगा.

सूतक काल और इसका प्रभाव

चंद्र ग्रहण के दौरान सूतक काल का विशेष महत्व होता है. सूतक काल 7 सितंबर को दोपहर 12:57 बजे से शुरू होगा और ग्रहण समाप्त होने के साथ खत्म होगा. इस दौरान श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे कर्मकांड वर्जित माने जाते हैं. इसलिए, जिन लोगों का श्राद्ध पूर्णिमा तिथि पर है, उन्हें दोपहर 12:57 बजे से पहले अपने सभी पितृ कार्य पूर्ण कर लेने चाहिए.

हालांकि, यह एक पूर्ण चंद्र ग्रहण है, लेकिन कुछ ज्योतिषियों का मानना है कि इसका पितृपक्ष के नियमों पर कोई विशेष नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा. फिर भी, ग्रहण के समय भोजन बनाना, खाना या शुभ कार्य करना वर्जित माना जाता है.

पितरों का तर्पण: कब करें?

पितृपक्ष के दौरान तर्पण का विशेष महत्व है. यह कार्य पितरों की आत्मा की शांति और पितृ दोष से मुक्ति के लिए किया जाता है. निम्नलिखित बिंदुओं में तर्पण का समय और नियम बताए गए हैं:

समय: तर्पण दोपहर के बाद करना शुभ माना जाता है. विशेष रूप से कुतुप मुहूर्त (दोपहर 11:30 से 12:30 बजे) और रौहिण मुहूर्त (दोपहर 12:30 से 1:30 बजे) को तर्पण के लिए उत्तम माना जाता है. यदि पूर्णिमा तिथि पर श्राद्ध है, तो ग्रहण से पहले दोपहर 12:57 बजे तक तर्पण पूरा कर लें.

स्थान: तर्पण के लिए गंगा, यमुना या नर्मदा जैसी पवित्र नदी का किनारा आदर्श होता है. यदि यह संभव न हो, तो घर पर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके तर्पण करें.

पितरों का तर्पण: कैसे करें?

पितरों का तर्पण करने की विधि निम्नलिखित है:

तैयारी:

स्नान करके स्वच्छ सफेद वस्त्र धारण करें.
यदि जनेऊ पहनते हैं, तो इसे दाहिने कंधे पर रखें.
एक लोटे में जल लेकर उसमें काले तिल और चावल मिलाएं.

मुख्य प्रक्रिया:

दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठें.
दोनों हाथों में कुश की अंगूठी पहनें.
अंजलि में जल, तिल और चावल लेकर तीन बार ‘ॐ पितृभ्य: नम:’ मंत्र का जाप करें.
अपने गोत्र और पितरों का नाम लेते हुए जल को धीरे-धीरे भूमि पर अर्पित करें.

अतिरिक्त अनुष्ठान:

तर्पण के बाद पितरों के नाम पर दान करें, जैसे गरीबों को भोजन, वस्त्र या धन देना.
गाय, कुत्ते और पक्षियों को भोजन खिलाना भी पुण्यकारी माना जाता है.
ग्रहण के दौरान घर की दक्षिण दिशा में दीपक जलाएं और ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करें.

ग्रहण और पितृपक्ष का प्रभाव

ज्योतिषियों के मुताबिक, चंद्र ग्रहण के दौरान किए गए पूजा-पाठ, जप और दान का फल कई गुना बढ़ जाता है. इस दुर्लभ संयोग में पितरों की पूजा और तर्पण करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. हालांकि, कुछ ज्योतिषी मानते हैं कि ग्रहण के समय तर्पण और श्राद्ध से बचना चाहिए, क्योंकि यह समय संवेदनशील होता है.

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तर्पण के दौरान सावधानियां

ग्रहण के दौरान और सूतक काल में तर्पण, श्राद्ध या पिंडदान न करें.
तर्पण के लिए हमेशा ताजा जल और काले तिल का उपयोग करें.
किसी दूसरे की जमीन पर श्राद्ध कर्म न करें. यदि संभव हो तो मंदिर, तीर्थस्थल या नदी तट पर अनुष्ठान करें.
गर्भवती महिलाओं को ग्रहण के दौरान बाहर निकलने से बचना चाहिए.

(नोट: इस जानकारी को सामान्य सूचना के रूप में लें और कोई भी अनुष्ठान करने से पहले किसी विद्वान या ज्योतिषी से परामर्श करें.)

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