Vighneshwar Ganpati: राक्षस के नाम पर रखा गया मंदिर का नाम, भगवान की आंखों में जड़ें हैं कीमती माणिक

Vighneshwar Ganpati: विघ्नेश्वर गणपति का मंदिर महाराष्ट्र के ओजर में स्थित है. ओजर पुणे से लगभग 85 किमी दूर, कुकड़ी नदी के किनारे है, जो इस पर बने येडागांव बांध के करीब है. यह मंदिर अपनी दीपमाला (एक पत्थर का स्तंभ) और अपने स्वर्ण गुंबद के लिए प्रसिद्ध है
Vighneshwar Ganpati

विग्नेश्वर गणपति का मंदिर

Vighneshwar Ganpati: गणेशोत्सव की धूम हर तरफ है और सब जगह अलग-अलग रूपों में गणेश जी की पूजा की जा रही है. इस पावन अवसर पर हम रोज आपके लिए लाते हैं, गणपति बप्पा के अष्टविनायक स्वरूपों की कहानियां. आज हम आपको बताएंगे अष्टविनायक गणेश के सातवें स्वरूप विघ्नेश्वर गणपति के बारे में.

विघ्नासुर राक्षस के नाम पर रखा गया मंदिर का नाम

विघ्नेश्वर गणपति का मंदिर महाराष्ट्र के ओजर में स्थित है. ओजर पुणे से लगभग 85 किमी दूर, कुकड़ी नदी के किनारे है, जो इस पर बने येडागांव बांध के करीब है. यह मंदिर अपनी दीपमाला (एक पत्थर का स्तंभ) और अपने स्वर्ण गुंबद के लिए प्रसिद्ध है. अभी जो विघ्नेश्वर गणपति मंदिर है, मंदिर का निर्माण साल 1785 में हुआ था. साल 1967 में इसका पुनर्निर्माण श्री अप्पाशास्त्री जोशी ने करवाया था. श्री जोशी गणेश के परम भक्त थे.

भगवान गणेश ने विघ्नासुर राक्षस को हराया

इस मंदिर के स्थापना के पीछे एक प्रसिद्ध कथा है. कहा जाता है की हेमवती राज्य के राजा श्री अभिनंदन ने अपने साम्राज्य को बढ़ाने हेतु एक बहुत बड़ा यज्ञ किया था, जिसमें उन्होंने सभी ब्राम्हणों, देवी-देवताओं को बहुत सारे उपहार दिए लेकिन वो देव-राज इंद्र को भेंट नहीं दे पाए. इससे क्रोधित होकर इंद्र ने काल यानी समय को उस यज्ञ को नष्ट करने का आदेश दिया. काल ने इसके लिए राक्षस विघ्नासुर का रूप धारण किया, जिसने उस यज्ञ में बाधाएं उत्पन्न कीं और इसे बर्बाद कर दिया. इसके अलावा, उसने पूरे ब्रह्मांड में भी तबाही मचाई, ऋषियों और अन्य प्राणियों के अच्छे कर्मों और बलिदानों में अनेक बाधाएँ पैदा कीं. ऋषियों ने भगवान ब्रह्मा और शिव से मदद मांगी, जिन्होंने उन सबको गणेश जी की पूजा करने की सलाह दी.

तपस्वियों की प्रार्थना सुनकर, गणेश ने राक्षस से युद्ध करना शुरू कर दिया, राक्षस को जल्द ही पता चल गया कि वो गणपति को नहीं हरा पायेगा, इसलिए उसने आत्मसमर्पण कर दिया और दुनिया के प्राणियों को परेशान ना करने की कसम खायी. उसने ये भी कहा कि वो केवल उन स्थानों पर रहेगा जहां गणेश का आह्वान या पूजा नहीं की जाएगी. विग्नासुर ने गणेश जी से अनुरोध किया की जिस स्थान पर उसका उनसे युद्ध हुआ वहा वो उसी के नाम से जाने जाएं. गणेश जी ने उसकी बात मान ली और अपने विघ्नहर्ता स्वरुप में वहीं स्थापित हो गए. ऋषि-मुनि वहां बाद में विघ्नेश्वर गणपति की स्थपना की.

गणपति की मूर्ति में जड़े हैं कीमती माणिक और पत्थर

विघ्नेस्वर मंदिर में जो मूर्ति स्‍थापित है वो उसी समय की है. ये मूर्ति काले पत्थर की बनी है. भगवान गणेश की मूर्ति का मुख पूर्व में है और उनकी सूंड बाईं ओर है. गणपति यहाँ उनकी दो पत्नियों सिद्धि (आध्यात्मिक शक्ति) और ऋद्धि (समृद्धि) के साथ विराजमान है. विग्नेश्वर गणेश की मूर्ति में कीमती पत्थर जड़े हुए हैं. मूर्ति की आँखों में माणिक जड़े हुए हैं. इसके माथे पर हीरा जड़ा हुआ है, वहीं नाभि में अन्य कीमती पत्थर भी जड़े हुए हैं.

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विघ्नों को हरने वाले माने जाते हैं विघ्नेश्वर गणपति

भक्तगण ऐसा मानते हैं की जो भी यहाँ आकर विघ्नेस्वर गणपति की सच्चे मन से पूजा करता है उसके सारे विघ्न और बाधाएं हमेशा के लिए दूर हो जाती हैं और वो काल के प्रकोप से भी बचा रहता है.

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