Vshwakarma Puja Vidhi, Aarti, Mantra: विश्वकर्मा भगवान की पूजा कैसे की जाती है? देखें विश्वकर्मा पूजा विधि, मंत्र और आरती यहां
भगवान विश्वकर्मा
Vishwakarma Puja Vidhi in Hindi: भारत में विश्वकर्मा पूजा को बड़ा महत्व दिया जाता है. भगवान विश्वकर्मा की जयंती का पर्व इस वर्ष 17 सितंबर 2025, बुधवार को मनाया जाएगा. यह दिन शिल्पकारों, इंजीनियरों और कारीगरों के लिए विशेष महत्व रखता है. मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा ने देवताओं के महलों और दिव्य अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण किया था, इसलिए उन्हें प्रथम वास्तुकार और इंजीनियर माना जाता है.
विश्वकर्मा पूजा का शुभ मुहूर्त
कन्या संक्रांति का क्षण – 01:55 AM
ब्रह्म मुहूर्त – 04:33 AM से 05:20 AM
प्रातः संध्या – 04:57 AM से 06:07 AM
विजय मुहूर्त – 02:18 PM से 03:07 PM
गोधूलि मुहूर्त – 06:24 PM से 06:47 PM
सायाह्न संध्या – 06:24 PM से 07:34 PM
अमृत काल – 18 सितंबर, 12:06 AM से 01:43 AM
निशिता मुहूर्त – 17 सितंबर, 11:52 PM से 12:39 AM
इस दिन क्या करते हैं?
पूजा स्थल, दुकानों और कारखानों में भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है. पूजा में मशीनों, औजारों और वाहनों की विशेष पूजा की परंपरा है. वहीं कई जगह भगवान की मूर्ति पंडालों में रखकर भव्य अनुष्ठान किए जाते हैं और पूजा के बाद प्रसाद का वितरण होता है और कुछ क्षेत्रों में पतंग उड़ाने की भी परंपरा है.
विश्वकर्मा पूजा विधि
विश्वकर्मा पूजा के दिन सबसे पहले स्नान कर शुद्ध होकर भगवान विश्वकर्मा और भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें जिसके बाद कुमकुम, अक्षत, फूल, फल, मिठाई, धूप और सुपारी भगवान को अर्पित करें. पूजा के समय पूजा स्थल पर जल से भरा कलश रखें और उस पर रोली व अक्षत चढ़ाएं. भगवान विश्वकर्मा को प्रसन्न करने के लिए ‘ॐ विश्वकर्मणे नमः’ या ‘ॐ श्री सृष्टनाय सर्वसिद्धाय विश्वकर्माय नमो नमः’ मंत्र का जाप करें. व्यवसाय स्थल पर मशीनों और औजारों पर तिलक व फूल अर्पित करें अंत में आरती कर प्रसाद वितरित करें.
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विश्वकर्मा पूजा का महत्व
मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा की आराधना करने से व्यक्ति के जीवन में समृद्धि और सफलता आती है. व्यापार और कार्यक्षेत्र में उन्नति के लिए यह दिन विशेष रूप से फलदायी माना जाता है.
विश्वकर्मा जी की आरती
ॐ जय श्री विश्वकर्मा, प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के कर्ता, रक्षक श्रुति धर्मा॥ ॐ जय…॥
आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया।
जीव मात्रा का जग में, ज्ञान विकास किया॥ ॐ जय…॥
ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नहीं पाई।
ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई॥ ॐ जय…॥
रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना।
संकट मोचन बनकर, दूर दुःख कीना॥ ॐ जय…॥
जब रथकार दंपति, तुम्हरी टेर करी।
सुनकर दीन प्रार्थना, विपत हरी सगरी॥ ॐ जय…॥
एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।
त्रिभुज चतुर्भुज दशभुज, सकल रूप सजे॥ ॐ जय…॥
ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे।
मन दुविधा मिट जावे, अटल शक्ति पावे॥ ॐ जय…॥
“श्री विश्वकर्मा जी” की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत गजानंद स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥ ॐ जय…॥
(डिस्क्लेमर: यह खबर धार्मिक मान्यताओं, ज्योतिष शास्त्र और पंचांग आधारित जानकारी पर लिखी गई है. इसका उद्देश्य केवल सामान्य जानकारी देना है. विस्तार न्यूज किसी भी ज्योतिषीय दावे की पुष्टि नहीं करता है.)