Explainer- अमेरिकी शटडाउन: सत्ता की जिद या लोकतंत्र की दिशा? जानिए, ट्रंप की रणनीति के पीछे छिपा है कौन सा असली खेल

यह सवाल है कि क्या देश अपने संस्थानों को मजबूत करेगा या सत्ता को केंद्रीकृत कर देगा? क्या वह विशेषज्ञता और पारदर्शिता को बनाए रखेगा या राजनीतिक वफादारी को प्राथमिकता देगा?
Trump health

डोनाल्ड ट्रंप(File Photo)

US Shutdown: अमेरिका में सरकार का “शटडाउन” (Shutdown) अब कोई असामान्य शब्द नहीं रहा. समय-समय पर देखा गया है कि अमेरिकी संसद जिसे कांग्रेस कहा जाता है, वहाँ सत्ता के साथ टकराव जमकर हुए हैं. बीते दो दशकों में कई बार ऐसा हुआ है, जब राष्ट्रपति और कांग्रेस के बीच बजट को लेकर टकराव ने पूरी संघीय व्यवस्था (Federal Administration) को ठप कर दिया. लेकिन इस बार की स्थिति कुछ और ही संकेत दे रही है। पहले जहां टकराव देश की योजनाओं पर खर्च होने वाले धन के आवंटन तक सीमित रहता था, वहीं आज की तारीख में यह अमेरिकी लोकतंत्र की दिशा, उसकी संस्थागत शक्ति और प्रशासनिक क्षमता की नई लकीर खींचने के लिए बेचैन है.

शटडाउन का अनदेखा एंगल

एक अक्टूबर से चल रहे शटडाउन को लेकर दुनिया के तमाम बड़े और छोटे अख़बारों में लेख छप रहे हैं. अपने लेखों के ज़रिए तमाम स्कॉलर इस बात पर ज़्यादा ज़ोर दे रहे हैं कि यह शटडाउन पहले की तरह नहीं बल्कि इसका मक़सद बिल्कुल हटकर है. विश्लेषक अब इसे अमेरिकी प्रशासनिक ढांचे को कमजोर करने की एक योजनाबद्ध रणनीति मानने लगे हैं। बीते दिनों Nature और Politico जैसी पत्रिकाओं ने लिखा गया है कि ट्रंप खेमे के कुछ नीति सलाहकार सरकारी एजेंसियों से बड़े पैमाने पर वैज्ञानिकों और विशेषज्ञ अधिकारियों को हटाने की तैयारी में हैं.

इसका सीधा मतलब यह है कि पर्यावरण, जलवायु, सार्वजनिक स्वास्थ्य, महामारी निगरानी और रक्षा अनुसंधान जैसे संवेदनशील विभागों में दशकों से जमा ज्ञान, अनुभव और डेटा को सिस्टमेटिक ढंग से खत्म किया जा सकता है. एक्सपर्ट की जगह “वफादार” लोगों को सेट करने की योजना बनाई जा रही है. ऐसे में यह कोई साधारण बदलाव नहीं है. ग़ौरतलब है कि अमेरिका की ताकत सिर्फ उसकी सैन्य शक्ति या अर्थव्यवस्था नहीं रही है, बल्कि उसकी वैज्ञानिक विशेषज्ञता और रिसर्च संस्थाएँ भी रही हैं. जब इन्हीं स्तंभों को कमजोर किया जाएगा, तो वैश्विक नेतृत्व की उसकी क्षमता निश्चित रूप से प्रभावित होगी.

ट्रंप और उनके वफ़ादार कई वेलफ़ेयर योजनाओं पर कैंची चलाने के लिए बेताब हैं. राष्ट्रपति बनने से पहले भी ट्रंप ख़ासकर जलवायु और पर्यावरण से जुड़े संस्थानों की आलोचना करते रहे हैं. इस बार जब वह राष्ट्रपति हैं तो बजट में कटौती उनका मूल मंत्र बना हुआ है. वहीं, अमेरिकी संविधान के तहत हर साल सरकार को चलाने के लिए कांग्रेस को फंडिंग बिल पास करना होता है. लेकिन इस बार सत्ताधारी दल रिपब्लिकन और विपक्षी दल डेमोक्रेट हमने-सामने हैं. डेमोक्रेट्स ने मेडिकेड (Health Services) में की गई कटौतियों को पलटने और ACA (Affordable Care Act) की सब्सिडी को बढ़ाने की मांग की, जो इस साल के आखिर में समाप्त हो रही हैं. वे यह भी चाहते थे कि अस्पतालों को आपातकालीन स्थिति में अवैध आप्रवासियों का इलाज करने के लिए आपातकालीन मेडिकेड जारी रहे. जबकि, ट्रंप सरकार इसकी कटौती पर आमादा है. इस टकराव में कोई पक्ष झुकने को तैयार नहीं और इसका नतीजा शटडाउन है।

सिस्टम को ‘रीसेट’ करने की तैयारी

डोनाल्ड ट्रंप और उनके करीबी सहयोगियों की रणनीति इस बार काफी गहरी है. वे चाहते हैं कि सरकारी ढांचे में उनके वफादार अधिकारियों को फ़िट किया जाए. इसके लिए शटडाउन और फंडिंग संकट का इस्तेमाल एक टूल के तौर पर किया जा रहा है. जैसे ही फंडिंग रुकती है, सरकार सिस्टम में बैठे कथित रूप से “गैर-जरूरी” कर्मचारियों को बाहर कर सकती है. इससे पुराने विशेषज्ञ और अनुभवी अधिकारी हटेंगे और उनकी जगह राजनीतिक रूप से वफादार लोग रखे जा सकेंगे.

ट्रंप की बढ़ती मुश्किलें, आर्थिक नुकसान

शटडाउन से उपजी स्थिति ट्रंप के लिए राजनीतिक अवसर भी है और संकट भी. एक ओर वे इसे अपने “बदलाव” वाले एजेंडे को आगे बढ़ाने में लगे हैं, तो वहीं दूसरी ओर इसके कई खतरनाक नतीजे भी सामने आ सकते हैं. अमेरिका में 1 अक्टूबर से शुरू हुआ सरकारी शटडाउन, देश की अर्थव्यवस्था और सरकारी सेवाओं पर गंभीर प्रभाव डाल रहा है. व्हाइट हाउस के अनुसार, यह शटडाउन अमेरिकी जीडीपी में प्रति सप्ताह लगभग 15 बिलियन डॉलर की कमी कर सकता है. गोल्डमैन सैक्स और फेडरल रिजर्व के अनुसार, प्रत्येक सप्ताह के शटडाउन से अमेरिकी जीडीपी में लगभग 0.2% की गिरावट हो सकती है. मतलब, यदि शटडाउन एक महीने तक चलता है, तो यह कुल मिलाकर लगभग $60 बिलियन का नुकसान हो सकता है.

वहीं, कांग्रेसनल बजट ऑफिस (CBO) के अनुसार, शटडाउन के चलते लगभग 750,000 सरकारी कर्मचारी प्रभावित हो सकते हैं, जिनमें से अधिकांश को वेतन नहीं मिलेगा। इससे सरकारी सेवाओं में देरी और गुणवत्ता में गिरावट आ सकती है. इसके अलावा नेशनल पार्क सर्विस के मुताबिक, शटडाउन के दौरान नेशनल पार्कों के बंद होने से पर्यटन उद्योग को 76 मिलियन डॉलर का रोजाना नुकसान हो सकता है. हवाई अड्डों पर भी कर्मचारियों की कमी के चलते उड़ानों में देरी हो रही है, जिससे यात्रा उद्योग प्रभावित हो रहा है.

आज अमेरिका जिस मोड़ पर खड़ा है, वह केवल बजट का सवाल नहीं है. यह सवाल है कि क्या देश अपने संस्थानों को मजबूत करेगा या सत्ता को केंद्रीकृत कर देगा? क्या वह विशेषज्ञता और पारदर्शिता को बनाए रखेगा या राजनीतिक वफादारी को प्राथमिकता देगा?

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