जम्मू कश्मीर में ‘सरकार बनाम LG’ वाला डर! चुनाव को लेकर उत्साहित क्यों नहीं हैं मुख्यधारा की पार्टियां?

5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने बड़ा संवैधानिक बदलाव करते हुए अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया था, इससे न केवल जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म हुआ, बल्कि इसे केंद्र शासित प्रदेश में भी बदल दिया गया.
mehbooba mufti, OMAR ABDULLAH

उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती

Jammu Kashmir Election: जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव सितंबर के अंत तक कराने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद चुनाव आयोग के पास अब और कोई विकल्प नहीं है. इस लिए चुनाव आयोग ने अब तैयारी शुरू कर दी है. गुरुवार को चुनाव आयोग के कुछ अधिकारी  जम्मू-कश्मीर दौरे पर जाएंगे, ताकि चुनावों की तैयारियों की निगरानी की जा सके. आखिरी बार यहां 2014 में चुनाव हुए थे. पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के इतिहास वाले केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराना केंद्र सरकार और चुनाव आयोग के लिए चुनौतीपूर्ण रहा है.

हालांकि चुनाव किसी भी लोकतंत्र के लिए अच्छी बात है, लेकिन कश्मीर की राजनीति करने वाली मुख्यधारा की पार्टियां इसे लेकर उत्साहित नहीं है. खासकर, नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) की महबूबा मुफ्ती जैसे मुख्यधारा के राजनेता. अनुच्छेद 370 पर प्रहार के बाद से ये नेता केंद्र की मंशा को लेकर भयभीत हैं.

2019 में बदला था राज्य का दशा और दिशा

5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने बड़ा संवैधानिक बदलाव करते हुए अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया था. इससे न केवल जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म हुआ, बल्कि इसे केंद्र शासित प्रदेश में भी बदल दिया गया. अब्दुल्ला ने यहां तक घोषणा की है कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो वे विरोध में मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे. अब्दुल्ला का कहना है, “मैं उपराज्यपाल (LG) के वेटिंग रूम के बाहर बैठकर उनसे यह नहीं कहने जा रहा हूं कि सर, मैं डीजीपी बदलना चाहता हूं, कृपया फाइल पर हस्ताक्षर कर दें.”

पूर्व मंत्री और पीडीपी नेता नईम अख्तर का मानना है कि चुनाव के बाद जनप्रतिनिधि लोगों और एलजी के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाएंगे, उनके पास कोई वास्तविक शक्ति नहीं होगी. हुर्रियत के चेयरमैन मीरवाइज उमर फारूक ने कहा कि जब तक केंद्र सरकार सबकुछ नियंत्रित करती है, तब तक कोई चुनाव लड़े या न लड़े, इसका कोई मतलब नहीं है. भाजपा को जीत की उम्मीद है लेकिन एनसी और पीडीपी की धारणा के विपरीत भाजपा ने जम्मू क्षेत्र में व्यापक प्रचार अभियान शुरू कर दिया है.

भाजपा नेता सुनील सेठी ने कहा कि पार्टी अकेले जम्मू क्षेत्र में 35 से अधिक सीटों के साथ अपने दम पर सरकार बनाएगी. जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 90 सीटें हैं. भाजपा जम्मू क्षेत्र में पहले ही 200 से अधिक बैठकें (सम्मेलन) कर चुकी है और जल्द ही कश्मीर संभाग में कदम रखेगी. सेठी के अनुसार, पार्टी का मानना है कि जम्मू क्षेत्र में आतंकवाद को पुनर्जीवित करने की पाकिस्तान की कोशिश लोगों को भाजपा के पीछे एकजुट करेगी और एक मजबूत और प्रतिबद्ध सरकार बनाएगी. जम्मू क्षेत्र में 2021 से अब तक आतंकवादी हमलों में 50 से अधिक सैनिकों की जान जा चुकी है.

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एनसी और पीडीपी के विकल्प

बता दें कि भाजपा ने हमेशा जम्मू कश्मीर क्षेत्र की सभी समस्याओं के लिए अब्दुल्ला और मुफ्ती की वंशवादी राजनीति को दोषी ठहराया है. अगस्त 2019 के बाद गठित दो राजनीतिक दलों की बात करें तो अल्ताफ बुखारी की अपनी पार्टी और डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (DPAP) हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में एक भी विधानसभा क्षेत्र में बढ़त हासिल नहीं कर सके.

हालांकि, दोनों पार्टियों की वजह से उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती दोनों ही चुनाव हार गए. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सरकार प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी को चुनाव मैदान में उतारने की कोशिश कर रही है, ताकि वह एनसी और पीडीपी की संभावनाओं को नुकसान पहुंचा सके. हालांकि, यह विचार थोड़ा दूर की कौड़ी लगता है. जमात पर प्रतिबंध हटाए जाने के सवाल पर जम्मू-कश्मीर के एलजी मनोज सिन्हा ने कहा, “उनकी पिछली गतिविधियों को देखते हुए यह कहना मुश्किल है.” वहीं कहा ये भी जा रहा है कि सेना चाहती है कि मौजूदा व्यवस्था कुछ और समय तक बनी रहे, क्योंकि इससे सुरक्षा एजेंसियों को आतंकवादियों से निपटने में खुली छूट मिलती है.

10 साल पहले हुए थे चुनाव

राज्य में आखिरी विधानसभा चुनाव 10 साल पहले 2014 में हुए थे. उस साल नवंबर-दिसंबर में हुए चुनावों के बाद, मार्च 2015 में मुफ्ती मोहम्मद सईद के नेतृत्व में भाजपा और पीडीपी (पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी) ने मिलकर सरकार बनाई. जनवरी 2016 में उनके निधन के बाद उनकी बेटी और मौजूदा पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने पदभार संभाला. हालांकि, वह भाजपा नेतृत्व से अलग हो गईं, जिसके बाद बीजेपी ने जून 2018 में समर्थन वापस ले लिया. तब से,केंद्र शासित प्रदेश में चुनाव नहीं हुए हैं. अभी लोगों के पास उनके जनप्रतिनिधि नहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को राज्य में चुनाव की तारीखों के ऐलान के लिए 30 सितंबर तक का वक्त दिया है.

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