जब हिंदू ने बनवायी मस्जिद और मुस्लिम ने मंदिर…यूपी की इन ऐतिहासिक जगहों में छुपी है भाईचारे की अनोखी कहानी

उत्तर प्रदेश के इन शहरों के मंदिरों और मस्जिदों का इतिहास यह सिखाता है कि धर्म से ऊपर इंसानियत और भाईचारा होता है.
महावीर मंदिर और पंडिताइन मस्जिद लखनऊ

महावीर मंदिर और पंडिताइन मस्जिद लखनऊ

Mahavir Temple Lucknow: एक ओर जहां देशभर में मंदिर और मस्जिद विवाद को सियासी रंग देने की कोशिश हो रही है, वहीं उत्तर प्रदेश के शहर लखनऊ और बरेली हमेशा से सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारे के प्रतीक रहे हैं. इन शहरों में कई ऐसे ऐतिहासिक स्थल हैं, जिनकी वास्तुकला और निर्माण के पीछे ऐसी कहानियां छिपी हैं, जो यह दिखाती हैं कि हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच एकता और समझदारी का रिश्ता कैसे कायम किया गया. यह स्थान सिर्फ धार्मिक स्थल नहीं हैं, बल्कि इंसानियत, दोस्ती और एकता के जीवंत उदाहरण हैं. इन स्थलों से यह भी साबित होता है कि धर्म के नाम पर खड़ी की गई दीवारों से कहीं बड़ी ताकत इंसानियत और भाईचारे में है.

लखनऊ का महावीर मंदिर

लखनऊ का महावीर मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि एक दिलचस्प और प्रेरणादायक कहानी भी है. यह मंदिर नवाब सआदत अली खान की मां, बेगम आलिया ने बनवाया था. बेगम आलिया के बारे में कहा जाता है कि उनके कोई संतान नहीं थी और वे बहुत दुखी थीं. तब उन्हें किसी ने सलाह दी कि वह लखनऊ के प्राचीन हनुमान मंदिर में जाकर हनुमान जी की पूजा करें, ताकि उनकी मन्नत पूरी हो सके. बेगम आलिया ने वैसा ही किया और फिर उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया. इस चमत्कारी घटना के बाद उन्होंने उसी मंदिर के पास एक भव्य महावीर मंदिर का निर्माण करवा दिया. इसके अलावा, एक और दिलचस्प कहानी यह है कि बेगम आलिया को सपने में भगवान हनुमान की एक मूर्ति दबी हुई दिखी थी, और जब उन्होंने उस स्थान पर खुदाई की, तो सच में वह मूर्ति मिली. यह मंदिर अब न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह उस समय की बेगम आलिया की विश्वास और भक्ति का भी गवाह है.

रानी जय कुंवर पांडे ने बनवाई पंडिताइन मस्जिद लखनऊ

लखनऊ की पंडिताइन मस्जिद एक ऐसी धार्मिक जगह है, जो हिंदू-मुस्लिम एकता का जीवंत उदाहरण है. इस मस्जिद का निर्माण 18वीं सदी में किया गया था, और इसका दिलचस्प इतिहास है. यह मस्जिद एक हिंदू महिला, रानी जय कुंवर पांडे द्वारा बनवायी गई थी, जो अवध के नवाब अमीन सआदत खान की पत्नी खदीजा खानम की दोस्त थीं. रानी जय कुंवर पांडे और खदीजा की दोस्ती इतनी गहरी थी कि रानी ने अपनी मुस्लिम दोस्त के लिए यह मस्जिद बनवायी. इस मस्जिद के निर्माण से यह साबित हुआ कि धर्म और जाति के बजाय, सच्ची दोस्ती और समझदारी महत्वपूर्ण होती है. यह मस्जिद न केवल धार्मिक सौहार्द की प्रतीक है, बल्कि यह दोस्ती और मानवता की भी मिसाल पेश करती है.

जब एक मुस्लिम रईस ने बनवाया लक्ष्मी नारायण मंदिर

बरेली शहर में स्थित लक्ष्मी नारायण मंदिर एक अन्य अद्भुत उदाहरण है. यह मंदिर मुस्लिम रईस, चुन्नू मियां ने बनवाया था, जो बरेली के एक प्रभावशाली व्यक्ति थे. इसकी कहानी भी बहुत दिलचस्प है. बरेली के कटरा मानराय इलाके में जब हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच विवाद उत्पन्न हुआ, तो वहां के कुछ हिंदू परिवारों ने चुन्नू मियां की अनुमति के बिना उनकी ज़मीन पर पूजा स्थल बना लिया. शुरुआत में चुन्नू मियां को यह अच्छा नहीं लगा, लेकिन बाद में उन्होंने अपना विचार बदला और न केवल उस जमीन को मंदिर के लिए दान कर दिया, बल्कि मंदिर के निर्माण के लिए पैसे और श्रमदान भी किया. यह घटना साबित करती है कि अगर दिल में सच्ची भावना हो, तो सांप्रदायिक भेदभाव को समाप्त किया जा सकता है. इस मंदिर की नींव देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा रखी गई थी. आज भी चुन्नू मियां के वंशज इस मंदिर में आते हैं और पूजा करते हैं, जो इस एकता की मिसाल को जीवित रखता है.

बुध मस्जिद बरेली

बरेली के कुतुबखाना रोड के पास स्थित बुध मस्जिद भी एक शानदार उदाहरण है, जहां एक हिंदू परिवार ने मस्जिद की देखरेख की जिम्मेदारी निभाई. यह मस्जिद सैकड़ों साल पुरानी है और यहां हर बुधवार को भीड़ उमड़ती है, इस कारण इसे “बुध मस्जिद” कहा जाता है. इस मस्जिद की देखरेख शर्मा परिवार करता है, जो एक हिंदू परिवार है. इसकी कहानी भी बहुत दिलचस्प है. लगभग 100 साल पहले, इस मस्जिद की हालत बहुत खराब थी, और उस समय के पंडित दाशीराम ने दुआ मांगी थी कि उन्हें संतान की प्राप्ति हो, और उनकी मन्नत पूरी हुई. बाद में उनके परिवार ने इस मस्जिद का पक्का निर्माण करवाया और तब से लेकर आज तक शर्मा परिवार इसकी देखरेख करता है.

सांप्रदायिक सौहार्द की मिसालें

उत्तर प्रदेश के इन शहरों के मंदिरों और मस्जिदों का इतिहास यह सिखाता है कि धर्म से ऊपर इंसानियत और भाईचारा होता है. जब भी हमें सांप्रदायिक तनावों का सामना करना पड़ता है, तब इन जैसे ऐतिहासिक उदाहरण हमें यह याद दिलाते हैं कि धार्मिक भेदभाव से ऊपर उठकर एकता और समझदारी के साथ एक बेहतर समाज का निर्माण किया जा सकता है.

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