BSP का वो डर जिसके कारण आकाश आनंद की पार्टी में हुई वापसी! क्या सफल होगी मायावती की रणनीति?
UP Politics: बसपा मुखिया मायावती के भतीजे आकाश आनंद फिर से मायावती के उत्तराधिकारी बन गए हैं. फिर से उन्हें बसपा का कोऑर्डिनेटर बना दिया गया है. और फिर से ये साफ हो गया है कि बसपा में मायावती के बाद नंबर दो की कुर्सी आकाश आनंद की ही है. लेकिन इसकी वजह क्या है. क्या मायावती का मन बदल गया है. क्या मायावती को लगने लगा है कि आकाश आनंद परिपक्व हो गए हैं.
क्या आकाश आनंद की वापसी की वजह उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों पर होने वाला उपचुनाव है, जिसे बसपा ने अकेले लड़ने का फैसला किया है. या फिर आकाश आनंद की वापसी की असली वजह कुछ और नहीं बल्कि नगीना लोकसभा से जीतकर संसद पहुंचे चंद्रशेखऱ हैं, जिनकी जीत में दलितों का नया मसीहा दिखने लगा है. आखिर क्या है आकाश आनंद की वापसी की असली कहानी?
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आकाश के खिलाफ मायावती ने लिया था एक्शन
लोकसभा चुनाव के बीच 7 मई, 2024 को बसपा सुप्रीमो मायावती ने आकाश आनंद के खिलाफ ऐक्शन लिया था. मायावती ने न सिर्फ उन्हें अपने उत्तराधिकारी के पद से हटा दिया, बल्कि उनसे बसपा के नेशनल कोऑर्डिनेटर का पद भी छीन लिया. और इसके पीछे वजह बताई कि आकाश आनंद अभी परिपक्व नहीं हैं, इतनी बड़ी जिम्मेदारी संभालने को तैयार नहीं हैं. लेकिन 47 दिनों बाद अब मायावती को अपनी गलती का एहसास हो गया. आकाश आनंद की वापसी हुई. और फिर से उन्हें उत्तराधिकारी के साथ ही नेशनल कोऑर्डिनेटर के पद पर भी बहाल कर दिया गया.
मायावती ने क्यों बदला अपना स्टैंड?
तो क्या 47 दिनों में ही आकाश आनंद परिपक्व हो गए हैं, जिसका हवाला मायावती ने दिया था. जाहिर है कि नहीं. परिपक्वता का कोई मसला ही नहीं है. मसला है लोकसभा का चुनाव और उसके नतीजे. मायावती ने यूपी में 80 की 80 सीटों पर चुनाव लड़ा. खाता तो नहीं ही खुला वोट बैंक भी 10 फीसदी के नीचे आ गया. कुल वोट मिले 9.39 फीसदी, जो बसपा के गठन से अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन है. बसपा ने जब 1989 में अपना पहला चुनाव लड़ा था, तब भी बसपा को 9.90 फीसदी वोट मिले थे और उसने लोकसभा की कुल 2 सीटों पर जीत दर्ज की थी. लेकिन 2024 में तो मायावती का कोई भी प्रत्याशी दूसरे नंबर पर भी नहीं पहुंच सका.
बाकी रही-सही कसर पूरी कर दी चंद्रशेखर आजाद ने. उन्होंने नगीना लोकसभा सीट से एक लाख 52 हजार वोट के बड़े अंतर से जीत दर्ज की. मायावती ने दलित होने के नाते चंद्रशेखर को कोई रियायत नहीं दी थी. उनके खिलाफ अपना उम्मीदवार उतारा था, जिनका नाम था सुरेंद्र पाल सिंह. चंद्रशेखर के सामने चुनाव लड़ रहे सुरेंद्र पाल सिंह को महज 13,272 वोट मिले, जबकि चंद्रशेखर ने 5,12,552 वोट लाकर इस सीट से जीत दर्ज की. और इस जीत ने ये तय कर दिया कि अगर उत्तर प्रदेश में दलित राजनीति का कोई चेहरा है तो वो चेहरा अब चंद्रशेखर हैं मायावती नहीं, जिन्होंने अपने चुनाव प्रचार की लाइन ही रखी थी कांशीराम जी के सपने.
दलितों का असली मसीहा कौन ?
ऐसे में मायावती को अब सपा या बीजेपी से नहीं बल्कि चंद्रशेखर से मुकाबला करना है. चंद्रशेखर से मुकाबला कर साबित करना है कि दलितों का मसीहा कौन है. और जिस तेवर के साथ चंद्रशेखर रैलियों में भाषण देते हैं, वैसा तेवर बसपा में अगर किसी के पास है, तो वो हैं आकाश आनंद. इसकी झलक लोकसभा चुनाव में भी मिल चुकी है. जिस तरह से आकाश आनंद प्रधानमंत्री मोदी पर तल्ख टिप्पणियां कर रहे थे, उनकी रैली में मौजूद लोग तालियां बजा रहे थे. लेकिन तब यही तेवर आकाश आनंद को भारी पड़े थे और उन्हें अपने पद से हाथ धोना पड़ा था.