Gen-Z के सामने रखीं 3 शर्तें, फिर संभालने को तैयार हुईं ‘कांटों भरा ताज’…सुशीला कार्की के PM बनने की Inside Story
सुशीला कार्की बनीं नेपाल की पीएम
Nepal Gen Z Protests: काठमांडू की सड़कों पर धुआं छंटा तो एक नई उम्मीद जगी. एक तरफ जलती हुई संसद की इमारतें, दूसरी तरफ लाखों युवाओं की आवाज. इस तस्वीर ने ओली सरकार की नींव हिला डाली. लेकिन इसी आग से निकली एक चिंगारी ने इतिहास रच दिया. वो जज जो कभी अदालत की कुर्सी पर बैठकर भ्रष्टाचार के खिलाफ तलवार चलाती थी, अब देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बन गईं हैं. 12 सितंबर 2025 को नेपाल के राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने सुशीला कार्की को पीएम पद की शपथ दिलाई. अब सवाल ये है कि उनके पीएम बनने में इतना समय क्यों लगा? दरअसल, सुशीला ने कुछ शर्तें Gen-Z के सामने रखीं.
आग कैसे लगी?
सबकुछ शुरू हुआ 7 सितंबर को, जब केपी शर्मा ओली की सरकार ने फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर जैसी 26 सोशल मीडिया साइट्स पर बैन लगा दिया. वजह? ‘फेक न्यूज’ और ‘टैक्स चोरी’. लेकिन युवाओं ने इसे आवाज दबाने की साजिश माना. नेपाल के 30 मिलियन लोगों में से लाखों युवा इन ऐप्स का इस्तेमला करते हैं. बैन ने आग में घी डाला. अगले ही दिन 8 सितंबर को काठमांडू की सड़कों पर हजारों ‘Gen-G’ उतर पड़े. ये वो पीढ़ी है जो भाई-भतीजावाद से तंग आ चुकी है. जहां अमीर नेताओं के बच्चे लग्जरी कारों में घूमते हैं, वहीं आम युवा मामूली कमाई पर गुजारा करते हैं.
प्रदर्शन शांतिपूर्ण शुरू हुए. लेकिन पुलिस की लाठियां, आंसू गैस और फिर गोलियां… 19 युवा शहीद हो गए. इसके बाद Gen-Z उग्र हो गए. अगले दिन संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट, ओली का घर सब जलाए गए. 51 से ज्यादा मौतें, 1300 घायल. केपी शर्मा ओली ने 9 सितंबर को पीएम पद से इस्तीफा दे दिया. सेना सड़कों पर उतरी, कर्फ्यू लगा. लेकिन युवाओं ने हार नहीं मानी. उन्होंने कहा, “हम पुरानी राजनीति नहीं चाहते. हमें निष्पक्ष नेता चाहिए.”
जज से ‘पीपुल्स चॉइस’ तक का सफर
युवाओं ने कहा सुशीला कार्की को पीएम बनना चाहिए. 73 साल की सुशीला कार्की नेपाल में कोई साधारण नाम नहीं हैं. 1952 में पूर्वी नेपाल के एक किसान परिवार में जन्मीं कार्की ने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से राजनीति विज्ञान में मास्टर्स किया. 1978 में लॉ की डिग्री ली और 1979 से वकालत शुरू की. 2008 में सीनियर एडवोकेट बनीं, 2010 में सुप्रीम कोर्ट की जज. फिर 2016 में इतिहास रचते हुए नेपाल की पहली महिला चीफ जस्टिस बनीं. उनके कार्यकाल में भ्रष्टाचार के कई बड़े केस खुले, जैसे पीसकीपिंग मिशनों में घोटाले. लेकिन उनके खिलाफ 2017 में इम्पीचमेंट मोशन भी आया.
युवाओं ने उन्हें चुना क्योंकि वो ‘क्लीन’ हैं, न कोई पार्टी लाइन, न भ्रष्टाचार का दाग. सोशल मीडिया सर्वे में उनका नाम टॉप पर आया. सुशीला कार्की ने पीएम बनने से पहले राष्ट्रपति, सेना चीफ और युवा नेताओं के सामने तीन शर्तें रखीं.
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संसद भंग हो, चुनाव तय हों
कार्की ने कहा, “पुरानी संसद से कुछ नहीं बदलेगा. पहले इसे भंग करो, फिर अंतरिम सरकार चलेगी.” राष्ट्रपति ने इसे स्वीकार कर लिया. चुनाव का वक्त भी तय हो चुका है.
युवाओं का फुल सपोर्ट
कार्की चाहती थीं कि सभी पार्टियां और युवा ग्रुप्स उनका बैकिंग दें. अब वो सरकार में सलाहकार बन सकते हैं.
शहीदों की निष्पक्ष जांच
जिन युवाओं ने जान दी, उनके लिए न्याय हो. कार्की ने जोर दिया कि हिंसा और मौतों की स्वतंत्र जांच हो, ताकि दोषी सजा पाएं. ये शर्त युवाओं की आहुति का सम्मान थी. इन शर्तों पर सहमति बनी, तो कार्की ने हामी भरी. शपथ समारोह में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति राम सहाय यादव और चीफ जस्टिस प्रकाश मान सिंह रावत मौजूद थे.
उम्मीदों का बोझ
अब कार्की की चुनौतियां कम नहीं. कानून-व्यवस्था बहाल करनी है, भ्रष्टाचार की जड़ें उखाड़नी हैं, आर्थिक सुधार लाने हैं. खैर नेपाल के इस ‘जेनजी रिवॉल्यूशन’ से सीख मिली है कि युवाओं की आवाज दबाई नहीं जा सकती. नेपाल के युवाओं ने क्रांति का एक नया अध्याय लिखा है.