मात खा गया ड्रैगन! नाक के नीचे से अमेरिका ने निकाल लिए समुद्र में छिपे अपने ‘सीक्रेट’
प्रतीकात्मक तस्वीर
US Military Recovery: एशिया के दो बेहद संवेदनशील समुद्री इलाकों में अमेरिका ने एक ऐसा ‘सीक्रेट ऑपरेशन’ चलाया, जिसने चीन को सकते में डाल दिया है. अमेरिकी सेना ने अपनी अत्याधुनिक सैन्य तकनीक वाले क्रैश हो चुके विमानों और ड्रोनों के मलबे को सफलतापूर्वक समुद्र की गहराइयों से बाहर निकाल लिया है. चीन लगातार इन टुकड़ों पर गिद्ध की नज़र गड़ाए बैठा था ताकि इनकी तकनीक का फायदा उठा सके. यह रिकवरी ऑपरेशन अमेरिकी सुरक्षा के लिए इतना अहम था कि इसे दुश्मन के हाथों तकनीक जाने से रोकने की बड़ी जीत के तौर पर देखा जा रहा है.
400 फीट नीचे से निकाला गया लड़ाकू जेट और हेलीकॉप्टर
सबसे बड़ी और रणनीतिक रूप से अहम रिकवरी विवादित साउथ चाइना सी में हुई. यह वह इलाका है जिस पर चीन अपना एकाधिकार जमाना चाहता है, जबकि अमेरिका इसे अंतर्राष्ट्रीय जलमार्ग मानता है. अक्टूबर में यूएसएस निमिट्ज एयरक्राफ्ट कैरियर से उड़ान भरते समय एक F/A-18 फाइटर जेट और एक MH-60 हेलीकॉप्टर समुद्र में गिर गए थे. अमेरिकी नौसेना ने एक गोपनीय मिशन चलाकर 5 दिसंबर को इन दोनों विमानों के मलबे को सुरक्षित बाहर निकाल लिया.
क्यों थी इतनी जल्दी?
रक्षा विशेषज्ञों का साफ कहना था कि अगर ये क्रैश विमान चीन के हाथ लग जाते, तो वह अमेरिका की सैन्य तकनीक, सेंसर और नेविगेशन प्रणालियों को डिकोड कर सकता था. यह अमेरिका की सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता था. इसलिए, समय रहते मलबा हटाना अमेरिकी सेना का एक ‘मास्टरस्ट्रोक’ साबित हुआ. मलबे को अब एक सुरक्षित सैन्य ठिकाने पर भेज दिया गया है, जहां इसकी तकनीकी जांच होगी.
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दक्षिण कोरिया के पास से भी निकला ‘रीपर ड्रोन’
दूसरी बड़ी घटना दक्षिण कोरिया के पश्चिमी समुद्र तट के पास हुई. 24 नवंबर को अमेरिकी वायुसेना का बेहद खुफिया और मारक क्षमता वाला एमक्यू-9 रीपर ड्रोन (MQ-9 Reaper Drone) समुद्र में गिर गया था. यह ड्रोन निगरानी और हमले दोनों के लिए इस्तेमाल होता है. माना जाता है कि इसकी तैनाती उत्तर कोरिया की गतिविधियों और पीले सागर (Yellow Sea) में चीन की मौजूदगी पर करीबी नजर रखने के लिए की गई थी.
ड्रोन के मलबे को लेकर भी सुरक्षा एजेंसियां काफी सतर्क थीं. लगभग 20 दिन तक चले इस ऑपरेशन को अमेरिकी वायुसेना और दक्षिण कोरियाई नौसेना ने मिलकर अंजाम दिया. 14 दिसंबर को अमेरिकी वायुसेना इकाई ने पुष्टि की कि ड्रोन का पूरा मलबा अब उनके कब्जे में है.