दुनिया का सबसे लंबा दशहरा मेला, जहां नहीं जलता रावण, 600 साल पुरानी परंपरा

छत्तीसगढ़ के बस्तर में 600 सालों से चली आ रही इस परंपरागत दशहरा मेले की कई रोचक कहानियां हैं। 75 दिनों तक चलने वाले इस विश्व प्रसिद्ध दशहरा मेला में सबसे खास यह है कि यहां रावण दहन नहीं होता।
Bastar Dasshra Mela

विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा मेला

Chhattisgarh: आज दुनियाभर में दशहरा मनाया जा रहा है. आज हर जगह असत्य पर सत्य की जीत के रूप में रावण दहन किया जाएगा. कहीं थीम बेस्ड रावण के पुतले जलेंगे तो कहीं रामलील का कार्यकर्म हो रहा है. लेकिन भारत में एक जगह ऐसा भी है जहां दुनिया का सबसे लंबा दशहरा मेला लगता है. छत्तीसगढ़ के बस्तर में 600 सालों से चली आ रही इस परंपरागत दशहरा मेले की कई रोचक कहानियां हैं. 75 दिनों तक चलने वाले इस विश्व प्रसिद्ध दशहरा मेला में सबसे खास यह है कि यहां रावण दहन नहीं होता. आइए जानते हैं विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा मेला की कहानी.

कब से शुरू होता है मेला

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 283 किलोमीटर दूर बस्तर जिले में 600 सालों से दशहरा मेला लग रहा है. भारत का सबसे बड़ा दशहरा मेला है 75 दिनों तक चलता है. जिस कारण यह मेला दुनिया का सबसे लंबा दशहरा उत्सव माना जाता है. यह मेला हरेली अमावस्या के दिन पाट जात्रा पूजा विधान के साथ शुरू होता है और विजयदशमी के बाद खत्म होता है.

इस बार बस्तर दशहरा पर्व हरेली अमावस्या के दिन पाट जात्रा पूजा विधान के साथ 4 अगस्त 2024 से शुरू हो गया है, जो कि 19 अक्टूबर 2024 तक मनाया जाएगा. यह दशहरा पर्व विभिन्न जनजातीय समुदायों की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक भावना का महत्वपूर्ण प्रतीक है.

नहीं होता रावण का दहन

इस मेले की सबसे खास बात यह है कि यहां असत्य पर सत्य की जीत तो मनाई जाती है, लेकिन रावण का दहन नहीं किया जाता. यहां के आदिवासियों और राजाओं के बीच अच्छा मेल जोल था. राजा पुरुषोत्तम ने यहां पर रथ चलाने की प्रथा शुरू की थी. इसी कारण से यहां पर रावण दहन नहीं बल्कि दशहरे के दिन रथ की परिक्रमा की परंपरा है. बस्तर दशहरा पर्व के शुरू होने से लेकर समाप्त होने तक सभी रस्म पूरे विधि विधान से पूरा किया जाता है. इसमें मां काछन देवी से अनुमति लेने की परंपरा है. 600 सालों से भी अधिक समय से चली आ रही इस परंपरा के अनुसार, बस्तर महाराजा मां काछन देवी से अनुमती लेने काछन गुड़ी जाते हैं. वहां माता से आशीर्वाद कि दशहरा पर्व बिना किसी विघ्नन के पूरी हो सके.

देश और दुनिया से लोग आते हैं श्रद्धालु

माना जाता है कि बस्तर के राजा की दो बेटियों, काछिन देवी और रैला देवी ने जौहर किया था. तब से उनकी पवित्र आत्माएं यहां घूमती रहती है. वही सभी को आशीर्वाद देती हैं. उन आत्माओं से ही अनुमति लेकर यहां उत्सव की शुरुआत किया जाता है. इस मेले में शामिल होने के लिए देश-दुनिया से लोग आते हैं. इस मेले में छत्तीसगढ़ के आदिवासी लोग चमकीले पारंपरिक परिधानों में शामिल होते हैं.

इस मेले में नृत्य और ढोल-नगाड़ों के साथ लोग सड़कों पर निकलते हैं. इस मेले में एक विशाल और खूबसूरत रथ होता है, जिसे 400 से भी ज़्यादा लोग खींचते हैं. इस मेले में दंतेश्वरी देवी को श्रद्धांजलि दी जाती है. इस मेले में मुरिया दरबार की रस्म भी होती है, जिसमें बस्तर के महाराज दरबार लगाकर जनता की समस्याएं सुनते हैं.

क्या होता है मुरिया दरबार में ?

मुरिया दरबार में विभिन्न जनजातीय समुदायों के प्रमुख, नेता और प्रशासनिक अधिकारी मिलकर संस्कृति, परंपरा और प्रथाओं को सहेजने और सामुदायिक मांग और समस्याओं पर विचार करते हैं. इस बार15 अक्टूबर को मुरिया दरबार का आयोजन किया जाएगा. मुरिया दरबार आयोजन के 10 दिन बाद बस्तर संभाग के मांझी, चालकी, मेम्बर, मेम्बरीन, पुजारी, कोटवार, पटेल, मातागुड़ी के मुख्य पुजारियों का सम्मेलन आयोजित किया जाएगा.

 

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