MP News: स्वास्थ्य मंत्री के जिले के अस्पताल में भारी अव्यवस्था, मरीज हो रहे परेशान, बुनियादी सुविधाओं की भी कमी
MP News: मध्य प्रदेश के रीवा संभाग की जीवनदायनी कहे जाने वाला संजय गांधी अस्पताल आए दिन चर्चा में बने रहता है. यह इसलिए भी खास हो जाता है क्योंकि मध्य प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री और चिकित्सा मंत्री राजेंद्र शुक्ल के गृह जिले और उनके विधानसभा में आता है.
इस अस्पताल में विंध्य के अलग-अलग जिलों से लोग इलाज के लिए आते हैं. जिसमें रीवा सहित सतना, सीधी, शहडोल, उमरिया, अनूपपुर, मऊगंज, मैहर और सहित पन्ना तक के मरीज इलाज के लिए संजय गांधी अस्पताल पहुंचते हैं. लेकिन यह अस्पताल अपनी अव्यवस्थाओं सहित अलग-अलग मुद्दों पर चर्चा में बना रहता है.
डॉक्टरों और मरीजों के बीच समन्वय की कमी
संजय गांधी अस्पताल में सबसे बड़ी कमी समन्वय की देखी जाती है. दरअसल, यहां डॉक्टर और मरीजों के बीच समन्वय की कमी बराबर बनी रहती है. आए दिन अस्पताल प्रबंधन डॉक्टर और मरीजों के बीच विवादों की खबरें आती रहती हैं. पिछले दिनों सरपंच की इलाज के दौरान अस्पताल में मौत हुई.
सरपंच की मौत के बाद उनके परिजनों ने अस्पताल प्रबंधन और डॉक्टर पर गंभीर आरोप लगाए. आरोप लगा कि कोई भी जिम्मेदार यहां मौजूद नहीं होता. यह अस्पताल जूनियर डॉक्टर और नर्सों के भरोसे चल रहा है. परिजनों ने अस्पताल पर भारी लापरवाही करने का गंभीर आरोप लगाया. जिसके कारण उनके मरीज की मौत हो गई.
अधीक्षक राहुल मिश्रा का कहना है कि कोई भी डॉक्टर जानबूझकर गलत नहीं करना चाहता क्योंकि संजय गांधी अस्पताल पर दूर-दूर से रेफर केस आते हैं. गंभीर केस आते हैं और काम का दबाव अधिक होने के कारण डॉक्टरों के गलत व्यवहार की शिकायतें आती है.
इन जिलों से आते हैं मरीज ज्यादा
मेडिकल कॉलेज से संजय गांधी स्मृति चिकित्सालय में न सिर्फ रीवा जिले बल्कि सीधी, सतना, सिंगरौली, उमरिया और पन्ना से भी मरीज रेफर होकर जाते हैं. मरीजों को अस्पताल पहुंचने पर सबसे पहले व्हीलचेयर और स्ट्रेचर की समस्या से जूझना पड़ता है. यहां स्ट्रेचर और व्हील चेयर आधार कार्ड जमा करने पर ही मिलता है .
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अस्पताल में रखरखाव के अभाव में स्ट्रेचर और व्हीलचेयर बड़ी संख्या में कबाड़ में तब्दील हो चुके हैं. आए दिन होने वाली परेशानी को दूर करने अस्पताल प्रबंधन भी इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है.
एक्सीडेंट के मरीजों को सबसे ज्यादा परेशानी
एक्सीडेंट के केस में सबसे ज्यादा स्ट्रेटर की आवश्यकता पड़ती है. घायल व्यक्ति चलने फिरने में असमर्थ रहता है. यही फैक्चर हो गया है तो उसे ज्यादा परेशानी होती है. ऐसी स्थिति में स्ट्रेचर से ही राहत मिलती है. लेकिन अक्सर देखा जाता है कि अस्पताल में से मरीजों को भी स्ट्रेचर समय पर नहीं मिलत पाता.
इस विषय पर अधीक्षक राहुल मिश्रा का कहना है कि अस्पताल प्रबंधन इसको ध्यान में रखते हुए खुद ही स्टेचर का निर्माण कर रहा है. ताकि अच्छी क्वालिटी के मजबूत स्ट्रेचर का निर्माण हो सके क्योंकि जो भी स्टेचर पुराने हैं. वह कमजोर हो चुके हैं या उनके पहिए सही हालत में नहीं हैं. इसलिए लगभग 13 स्ट्रेचर स्टील बॉडी के निर्माण किये जा रहे हैं.