करहल में दो यादवों की जंग, सपा की साइकिल पंक्चर करने में जुटी BJP, घोषी कुनबे पर नज़र!

करहल सीट पर सपा और भाजपा के बीच मुकाबला खासा प्रतिस्पर्धी रहा है. 2002 में सपा को यहां हार का सामना करना पड़ा था, जब मुलायम सिंह यादव के प्रतिद्वंद्वी सोबरन सिंह यादव ने सपा के अनिल कुमार यादव को मामूली अंतर से हराया था.
Karhal Bypoll

Karhal Bypoll: उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले की करहल विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है. यह सीट समाजवादी पार्टी के लिए न केवल प्रतिष्ठा की, बल्कि भविष्य की राजनीति के लिहाज से भी अहम है. यहां पर समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच कांटे की टक्कर हो रही है, जिसमें खासतौर पर यादव समुदाय की भूमिका खास हो सकती है.

दो यादव परिवारों के बीच संघर्ष

करहल उपचुनाव का परिणाम मुख्य रूप से यादव समुदाय की वोटिंग पर निर्भर करता है, और यह संघर्ष इस समुदाय के भीतर दो प्रमुख यादव परिवारों के बीच हो रहा है. सपा के उम्मीदवार तेज प्रताप यादव इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि भाजपा ने अनुजेश यादव को मैदान में उतारा है. अनुजेश यादव, मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई अभय राम यादव के दामाद हैं, और उनका इस क्षेत्र में अच्छा प्रभाव है.

तेज प्रताप यादव जहां कमेरिया उपजाति से आते हैं, वहीं भाजपा के उम्मीदवार अनुजेश यादव घोषी उपजाति से हैं. करहल विधानसभा क्षेत्र में यादवों की कुल संख्या करीब 1.25 लाख है, जो अन्य सभी जातियों से अधिक है. इसमें से 65% यादव घोसी उपजाति से आते हैं, जबकि 35% कमेरिया उपजाति से हैं. यही उपजाति का फर्क इस चुनाव को बेहद दिलचस्प बना रहा है, क्योंकि यह उपजाति आधारित गणित इस बार निर्णायक साबित हो सकता है.

सपा के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई

करहल सीट को लेकर समाजवादी पार्टी के लिए यह चुनाव बेहद महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि यह सीट अखिलेश यादव की राजनीति का सवाल बन चुकी है. समाजवादी पार्टी ने पहले इस सीट पर लगातार जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार भाजपा के मजबूत प्रत्याशी अनुजेश यादव के मुकाबले सपा के लिए जीत आसान नहीं लग रही. पार्टी के शीर्ष नेता, खासकर अखिलेश यादव, पूरी तरह से इस चुनाव में जुटे हुए हैं. उनके साथ मैनपुरी से सांसद डिंपल यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव भी प्रचार में सक्रिय हैं.

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बीजेपी की रणनीति

बीजेपी ने अपनी चुनावी रणनीति में कोई कसर नहीं छोड़ी है. पार्टी के केंद्रीय मंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अनुजेश यादव के पक्ष में प्रचार किया है. भाजपा का कहना है कि यह चुनाव पार्टी और विचारधारा का है, न कि केवल परिवारों का. भाजपा यादव समुदाय के भीतर घोसी उपजाति को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए विशेष अभियान चला रही है, और उनका दावा है कि कमेरिया उपजाति की तुलना में घोसी उपजाति की संख्या अधिक है, जिससे उनकी स्थिति मजबूत हो सकती है.

बसपा की चुनौती और सपा की मुश्किलें

इस बीच, बहुजन समाज पार्टी ने भी इस चुनाव में दखल दिया है. बसपा ने शाक्य समुदाय से अवनीश शाक्य को उम्मीदवार बना दिया है, जो इस क्षेत्र में यादवों के बाद सबसे बड़ा वोट बैंक माने जाते हैं. शाक्य समुदाय परंपरागत रूप से सपा को वोट देता रहा है, लेकिन अब बसपा के उम्मीदवार के मैदान में आने से इन वोटों के बंटने की संभावना बढ़ गई है. इससे सपा के लिए चुनौती और भी कठिन हो गई है.

किसी भी हाल में जीत की चाहत

सपा नेता इस चुनौती को स्वीकार करते हुए कहते हैं कि चुनाव बेहद करीबी हो सकता है, लेकिन उनका विश्वास है कि वे करहल सीट पर बड़ी जीत हासिल करेंगे. मैनपुरी से सपा के अध्यक्ष आलोक शाक्य ने कहा कि करहल सपा की परंपरागत सीट है और पार्टी हर हाल में यहां जीत हासिल करेगी. उनका कहना है, “हम घर-घर जाकर संपर्क कर रहे हैं और हमें पूरा विश्वास है कि जनता हमें समर्थन देगी.”

इतिहास में भाजपा का दबदबा

करहल सीट पर सपा और भाजपा के बीच मुकाबला खासा प्रतिस्पर्धी रहा है. 2002 में सपा को यहां हार का सामना करना पड़ा था, जब मुलायम सिंह यादव के प्रतिद्वंद्वी सोबरन सिंह यादव ने सपा के अनिल कुमार यादव को मामूली अंतर से हराया था. हालांकि, भाजपा ने इस सीट को एक बार ही जीता है, और इसके बाद से लगातार सपा का दबदबा रहा है.

करहल उपचुनाव उत्तर प्रदेश की राजनीति में महत्वपूर्ण मोड़ ला सकता है. सपा के लिए यह प्रतिष्ठा की लड़ाई बन चुकी है, जबकि भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी है. उपजाति आधारित गणित और बसपा की चुनौती ने इस चुनाव को और भी दिलचस्प बना दिया है. अब यह देखना होगा कि किस पार्टी का उम्मीदवार करहल की सत्ता पर कब्जा जमाता है. 20 नवंबर को होने वाले मतदान के बाद यह स्पष्ट हो जाएगा कि सपा अपनी परंपरागत सीट को बचा पाती है या भाजपा इस सीट पर कब्जा जमा लेती है.

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