“वजन घटाने के लिए क्यों न इन्हें अंदर ही रखा जाए…”, वकील की अजीब दलील सुन भड़कीं SC की जज बेला एम त्रिवेदी

जस्टिस बेला त्रिवेदी का जन्म 10 जून 1960 को पाटण, गुजरात में हुआ था. वे एमएस यूनिवर्सिटी, वडोदरा से अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद 1980 में वकील बनीं. शुरुआती दिनों में उन्होंने गुजरात हाई कोर्ट में वकालत की और इसके बाद कई महत्वपूर्ण केसों में काम किया.
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सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

Supreme Court में 27 फरवरी 2025 को एक मजेदार वाक्या देखने को मिला, जब जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने एक आरोपी महिला के वजन को लेकर चुटकी ली. दरअसल, आरोपी महिला के वकील ने कोर्ट में यह दलील दी कि उनकी मुवक्किल का वजन ज्यादा है और उसे जमानत दी जाए क्योंकि उसका वजन उसकी स्वास्थ्य स्थिति के कारण बढ़ा है. महिला के वकील ने बताया कि उनकी मुवक्किल को कुछ शारीरिक समस्याएं हैं, जिनकी वजह से उसका वजन बढ़ गया है और उसकी देखभाल जरूरी है.

इस पर जस्टिस त्रिवेदी ने मजाकिया अंदाज में कहा, “उसे तो हिरासत में ही रखा जाए, ताकि उसका वजन कम हो सके.” जैसे ही जज ने यह टिप्पणी की, कोर्ट में कुछ पल के लिए हल्की हंसी का माहौल बन गया.

अब, इस मजाक का मतलब यह नहीं था कि जस्टिस त्रिवेदी ने महिला के स्वास्थ्य को नजरअंदाज किया, बल्कि उन्होंने अपने जवाब से यह साबित किया कि अदालत के अंदर भी थोड़ी चुटीली बातें हो सकती हैं, जो माहौल को हल्का करने का काम करती हैं. कोर्ट में गंभीर मामलों के बीच यह हल्के पल भी कभी-कभी तनाव को कम करने में मददगार होते हैं.

जस्टिस बेला एम त्रिवेदी का करियर

जस्टिस बेला त्रिवेदी का जन्म 10 जून 1960 को पाटण, गुजरात में हुआ था. वे एमएस यूनिवर्सिटी, वडोदरा से अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद 1980 में वकील बनीं. शुरुआती दिनों में उन्होंने गुजरात हाई कोर्ट में वकालत की और इसके बाद कई महत्वपूर्ण केसों में काम किया.

उन्होंने 1995 में अहमदाबाद में सिटी सिविल जज के रूप में काम करना शुरू किया और जल्द ही 2011 में वे गुजरात हाई कोर्ट की जज बन गईं. 2021 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त किया गया और वे सुप्रीम कोर्ट की ग्यारहवीं महिला जज बनीं. उनका कार्यक्षेत्र और फैसला देने का तरीका हमेशा प्रभावशाली रहा है, और उन्होंने कई महत्वपूर्ण मामलों में अपनी राय दी है.

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जस्टिस त्रिवेदी का हल्का-फुल्का अंदाज

जस्टिस त्रिवेदी ने यह भी दर्शाया कि जज कभी-कभी गंभीर मामलों के बीच भी अपनी बुद्धिमानी और समझदारी से माहौल को हल्का करने का काम करते हैं. सुप्रीम कोर्ट में जब जमानत की याचिका पर विचार किया जा रहा था, तो जस्टिस त्रिवेदी ने यह मजाकिया टिप्पणी की. यह साबित करता है कि न्याय का मतलब हमेशा गंभीरता नहीं होता, बल्कि कभी-कभी कानूनी प्रक्रिया में थोड़ी चुटकी और समझदारी का भी स्थान होता है.

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस त्रिवेदी ने पहले भी कई महत्वपूर्ण मामलों में अपने विचार व्यक्त किए हैं. उन्होंने 2024 में जमानत मामलों को सुप्रीम कोर्ट से बाहर हाई कोर्ट तक सीमित करने की बात की थी.

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