नीतीश के ’15 करोड़’ वाले दांव को BJP ने ’36’ तक पहुंचाया…अंदर की बात से परेशान हो गए होंगे तेजस्वी! दिन-ब-दिन बदल रही है बिहार की राजनीति
बिहार के सीएम नीतीश कुमार
Bihar Politics: बिहार में इन दिनों सियासी गर्मी बढ़ गई है. वजह है विधानसभा चुनाव से पहले NDA और विपक्ष के बीच अति पिछड़ा वर्ग को लेकर चले गहरे दांव-पेंच. अब समझिए, यह जंग केवल वोटों की नहीं है, यह एक सामाजिक समीकरण की लड़ाई भी है, और इस बार यह लड़ाई उस वर्ग को लुभाने की है, जो अपने अधिकारों के लिए सख्त संघर्ष कर रहा है. पिछड़ा वर्ग, खासकर कहार जाति.
नीतीश कुमार का ’15 करोड़’ वाला दांव
रविवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजगीर में एक प्रतिमा का अनावरण किया. इसका नाम है मगध सम्राट जरासंध की मूर्ति. अब इसे राजनीति के गलियारों में एक बड़ा संदेश माना जा रहा है. 21 फीट ऊंची और लगभग 15 करोड़ रुपये की लागत वाली इस पीतल की मूर्ति का अनावरण चुनाव से ठीक पहले किया गया है, जिसके पीछे नीतीश की राजनीतिक मंशा छिपी है.
राजनीतिक जानकारों के अनुसार, नीतीश कुमार का यह कदम सिर्फ ऐतिहासिक महत्व का नहीं है, बल्कि एक गहरे राजनीतिक उद्देश्य को साधने के लिए उठाया गया है. खासकर बिहार की कहार जाति को यह कदम खासा आकर्षित कर सकता है. कहार जाति बिहार में एक महत्वपूर्ण वोट बैंक के रूप में पहचानी जाती है और इसकी संख्या राज्य में लगभग 30 लाख है.
बीजेपी की ’36’ वाली मुहिम
उसी दिन, पटना में बीजेपी ने एक और अहम कदम उठाया. उन्होंने अति पिछड़ा वर्ग के लिए हुंकार सम्मेलन आयोजित किया, जिसमें पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने विपक्ष पर जमकर हमला बोला. उन्होंने विपक्ष पर आरोप लगाते हुए कहा कि उनका सारा ध्यान केवल अपने परिवार के आरक्षण और कल्याण तक ही सीमित रहता है. वह कभी भी सचमुच अति पिछड़े और गरीब वर्ग की चिंता नहीं करते.
दिलचस्प बात यह थी कि इस सम्मेलन में भाजपा ने अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हुए जरासंध की मूर्ति के अनावरण और जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का उदाहरण दिया. यहां पर बीजेपी की रणनीति साफ है कि वे जातिगत जनगणना के आंकड़ों का इस्तेमाल कर अति पिछड़ा वर्ग, खासकर कहार जाति को अपने पाले में लाना चाहते हैं.
वोटों का समीकरण
अब सवाल उठता है कि क्यों अति पिछड़ा वर्ग को लेकर इतनी होड़ मची हुई है? इसका सीधा संबंध है जातिगत जनगणना से. बिहार में अति पिछड़ा वर्ग (EBC) की आबादी लगभग 36% है, जो कि OBC की 27% आबादी से अधिक है. इस आंकड़े से यह साफ है कि इस वर्ग को रिझाना बिहार की राजनीति के लिए बेहद अहम हो गया है, क्योंकि यह वर्ग चुनावी नतीजों में निर्णायक भूमिका निभा सकता है.
इतना ही नहीं, बिहार में अनुसूचित जाति (SC) की आबादी लगभग 20%, अनुसूचित जनजाति (ST) की लगभग 2% और सामान्य जाति की लगभग 15% है. इस आंकड़े से यह साफ है कि अति पिछड़ा वर्ग न केवल राज्य की सामाजिक संरचना का अहम हिस्सा है, बल्कि यह चुनावी रणनीति का भी महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है.
गया जिले में कहार जाति का दबदबा
जब हम बात करते हैं कहार जाति की, तो यह जाति बिहार के सभी 38 जिलों में फैली हुई है, लेकिन सबसे अधिक संख्या में यह जाति गया जिले में पाई जाती है. 2013 में हुए एक अध्ययन के अनुसार, कहार जाति की संख्या बिहार में 30 लाख से अधिक बताई गई थी. इसके अलावा, यह जाति चंद्रवंशी और रवानी जैसे नामों से भी जानी जाती है.
इस जाति की अहमियत इस तथ्य से भी साबित होती है कि बिहार के कई राजनीतिक नेता, जो कहार समुदाय से आते हैं, इन चुनावों में अपनी छाप छोड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं.
बिहार की सियासत में ’36’ का असर
तो अब बात आती है इस ’36’ का असर क्या होगा? दरअसल, यह ’36’ प्रतिशत अति पिछड़ा वर्ग (EBC) का उस वर्ग का प्रतिनिधित्व है, जो बिहार की राजनीति में अत्यंत प्रभावशाली साबित हो सकता है. इस वर्ग का सबसे बड़ा समूह, कहार जाति न केवल बड़ी संख्या में है, बल्कि यह जाति राज्य के हर इलाके में फैली हुई है और इनके वोट बैंक को साधना किसी भी पार्टी के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो सकता है.
इसलिए, यह साफ है कि बिहार की सियासत में अति पिछड़ा वर्ग का महत्व बेहद बढ़ गया है. बीजेपी और नीतीश कुमार दोनों ही इस वर्ग को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए अलग-अलग दांव खेल रहे हैं. नीतीश कुमार की जरासंध की मूर्ति और बीजेपी का हुंकार सम्मेलन यही संकेत देते हैं कि आने वाले चुनावों में अति पिछड़ा वर्ग का वोट तय करेगा कि बिहार में सत्ता की चाबी किसके हाथ में होगी.
बिहार की राजनीति में हर दिन एक नया मोड़ आता है, और इस बार यह मोड़ जातिगत समीकरणों के इर्द-गिर्द घूम रहा है. कहीं न कहीं बीजेपी और नीतीश कुमार के इस दांव से तेजस्वी का आरक्षण वाला फॉर्मूला खतरे में है. हालांकि, अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस ताजा घटनाक्रम का किसे कितना फायदा होता है और बिहार में अगला चुनाव किसके पक्ष में आता है.