एक रसायन जिसने जबलपुर के इस गांव को बना दिया कैंसर की ‘राजधानी’! फसलों को बना रहा जहरीला
जबलपुर: ग्लाइफोसेट रसायन से बढ़ रहे कैंसर पीड़ित मरीज
Jabalpur News: कृषि क्षेत्र में लगातार हो रहे रासायनिक खाद का इस्तेमाल जानलेवा बन चुका है. रासायनिक खेती से कैंसर जैसी घातक बीमारी लगातार पैर पसार रही है इसलिए जबलपुर में इस गंभीर मुद्दे पर ‘एक चौपाल प्राकृतिक खेती के नाम’ से कार्यक्रम का आयोजन किया गया. जिसमें गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव शामिल हुए, लेकिन आखिरकार ऐसे कार्यक्रमों को करने की जरूरत क्यों पड़ी? विस्तार न्यूज़ ने जबलपुर के खिरिया गांव से ग्राउंड रिपोर्ट की है. जहां रासायनिक खादों के इस्तेमाल करने की वजह से पूरा खिरिया गांव ही कैंसर पीड़ित मरीजों का गांव बन चुका है.
‘फसलों से फैल रहा कैंसर’
दिनेश पटेल खिरिया गांव में खेती करते हैं. हर साल अपने खेतों से फसल लेते हैं, लेकिन यही फसल उनके परिवार के लिए घातक सिद्ध हो रही है क्योंकि दिनेश पटेल की मां बोन कैंसर के अंतिम स्टेज पर पहुंच चुकी हैं. मौत से जंग लड़ रही हैं. मां को कैंसर की बीमारी होने की वजह से दिनेश पटेल का पूरा परिवार ही पिछले कुछ सालों से बहुत परेशान हैं. दिनेश पटेल बताते हैं की कैंसर की यह बीमारी फसलों में हो रही रासायनिक खादों के इस्तेमाल से ही फैल रही है.
पति ने कई अस्पतालों में कराया इलाज
इसी गांव का एक और परिवार है, जिसने कैंसर जैसी घातक बीमारी से अपने परिजन को ही खो दिया. साल 2022 में नारायण दास बैरागी की पत्नी की स्तन कैंसर की वजह से मौत हो गई. करीब 1 साल तक अपनी पत्नी का कई अस्पतालों में इलाज कराया, लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद भी वह अपनी पत्नी को नहीं बचा पाए. नारायण अब तक नहीं समझ पाए हैं कि आखिरकार उनकी पत्नी को इतनी भयानक बीमारी कैसे हो गई.
संध्या तिवारी की बची जान
खिरिया गांव की ही रहने वाली संध्या पटेल उन किस्मत वालों में से एक हैं, जिन्होंने कैंसर जैसी घातक बीमारी को हरा दिया. तकरीबन 5 साल पहले संध्या पटेल को भी स्तन कैंसर हो गया था, लेकिन फर्स्ट स्टेज में होने की वजह से बहुत ज्यादा नहीं फैल पाया, समय रहते सर्जरी हो गई. आज संध्या पटेल पूरी तरीके से स्वस्थ हैं, लेकिन वह बताती हैं कि जिस वक्त उन्हें कैंसर हो गया था पूरा परिवार परेशान था.
गांव में हैं 15 कैंसर पीड़ित मरीज
इस गांव में एक दो नहीं बल्कि 15 से ज्यादा कैंसर पीड़ित मरीज अब तक सामने आ चुके हैं, वहीं पांच कैंसर पीड़ित मरीजों ने दम तोड़ दिया है. पूरा गांव इस भयानक बीमारी से जूझ रहा है. गांव के ही किसान आशीष पटेल बताते हैं कि पिछले 5 सालों में ही पूरे गांव में कैंसर पीड़ित मरीजों की संख्या में इजाफा हुआ है और इसकी वजह खेतों में डालने वाली रासायनिक खाद ही है. मूंग और उड़द जैसी फसलों में सूखने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाली दवाई सबसे ज्यादा घातक हो रही है.
ग्लाइफोसेट रसायन बना मुख्य वजह
वैसे तो लगभग हर एक फसल में किसान रासायनिक खादों का इस्तेमाल कर रहा है. लेकिन दलहनी फसलों में इस्तेमाल होने वाली दवाइयां सबसे ज्यादा घातक मानी जाती है. इन फसलों में खरपतवारों को हटाने के लिए किसान ग्लाइफोसेट नामक खरपतवारनाशी रसायन का प्रयोग करते हैं. इस रसायन का प्रयोग खेत की बुवाई से पहले किया जाता है, जिससे खेत में केवल मूंग या उड़द की फसल उगती है और अन्य कोई भी बीज अंकुरित नहीं होता है.
‘ग्लाइफोसेट केवल बंजर भूमि के लिए है’
कृषि वैज्ञानिक एके सिंह ने बताया कि ग्लाइफोसेट का उत्पादन कुछ मल्टीनेशनल कंपनियों द्वारा किया जाता है. बाजार में यह कई नाम से बिकता है. यह अत्यंत खतरनाक रसायन है. भारत सरकार का केंद्रीय कीटनाशी बोर्ड एवं पंजीकरण समिति, फरीदाबाद ने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि इस रसायन का उपयोग केवल बंजर भूमि या चाय बागानों में किया जाना चाहिए.
‘ये उपजाऊ भूमि के लिए प्रतिबंधित है’
डॉ एके सिंह ने कहा कि उपजाऊ कृषि भूमि में इसका उपयोग प्रतिबंधित है, क्योंकि यह जमीन की उर्वरता को नष्ट कर देता है. डॉ. ए.के. सिंह के अनुसार ” मूंग और उड़द की फसल वर्षा ऋतु की फसलें हैं, लेकिन किसान इन्हें गर्मी में उगा रहे हैं. इस कारण इन फसलों में कीटनाशकों और खरपतवार नाशियों का खूब उपयोग किया जाता है. वहीं, फसल को 60 दिनों में तैयार करने के लिए वृद्धि प्रोत्साहक हार्मोन का अत्यधिक उपयोग किया जाता है. इसके साथ ही यदि वह हरी रह जाए तो उसे जल्द सुखाने के लिए फिर से रसायनों का प्रयोग किया जाता है. इन रसायनों के अत्यधिक उपयोग से फसल जहरीली हो रही है.”
‘अब खेतिहर मजदूर हो रहे पीड़ित’
डॉ. सिंह ने के मुताबिक पहले किसानों में हाई ब्लड प्रेशर, कैंसर, माइग्रेन और पार्किंसन जैसी बीमारियां नहीं पाई जाती थीं. लेकिन अब इन खतरनाक रसायनों के कारण किसान और खेतिहर मजदूर इन गंभीर बीमारियों से पीड़ित हो रहे हैं