चीन की ‘रेयर अर्थ’ दीवार में सेंधमारी! भारत का अंडरवाटर मिशन, जानिए पाताल से क्या लाने की है तैयारी
प्रतीकात्मक तस्वीर
Rare Earth Minerals: आज के ज़माने में टेक्नोलॉजी के बिना जिंदगी की कल्पना करना मुश्किल है. आपके हाथ में स्मार्टफोन से लेकर इलेक्ट्रिक कार, सोलर पैनल और यहां तक कि मिसाइलें… हर जगह एक खास तरह के खनिज का इस्तेमाल होता है, जिसे ‘रेयर अर्थ’ (Rare Earth) और ‘क्रिटिकल मिनरल्स’ कहते हैं. ये वो खजाने हैं जिनके बिना आधुनिक दुनिया ठप हो सकती है.
लेकिन इस खजाने की चाबी फिलहाल एक ही देश के पास है, वो है चीन. चीन ने रेयर अर्थ की ग्लोबल सप्लाई चेन पर ऐसा दबदबा बना रखा है कि वह जब चाहे किसी भी देश की इंडस्ट्री को रोक सकता है. भारत और दुनिया के कई देशों को इस वजह से बड़ी मुश्किलें हो रही हैं, और अब भारत ने ठान लिया है कि वह चीन पर अपनी निर्भरता खत्म करके रहेगा.
समुद्र में छिपे खजाने की तलाश
आपने कई बार खजाने की कहानियां सुनी होंगी, जहां हीरो समुद्र के नीचे छिपे खजाने को खोज निकालता है. एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, भारत भी कुछ ऐसा ही करने की तैयारी में है. सरकार अरब सागर में 10,000 वर्ग किलोमीटर के इलाके में रेयर अर्थ और क्रिटिकल मिनरल्स की खोज करने का अधिकार चाहती है. इसके लिए भारत जल्द ही संयुक्त राष्ट्र (UN) के इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (ISA) से अनुमति मांगेगा.
अगर भारत को समुद्र के नीचे ये खजाने मिल गए, तो यह देश की किस्मत बदल सकता है. सरकार पहले से ही बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर में सर्वे कर रही है और वहां उसे कोबाल्ट, निकल, कॉपर और मैंगनीज जैसे कई महत्वपूर्ण खनिज मिले हैं.
सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
खजाना ढूंढना तो पहला कदम है, लेकिन असली चुनौती तो उसे निकालना है. समुद्र की गहराइयों से इन खनिजों को निकालना आसान नहीं है और यह काम पर्यावरण के लिए भी खतरनाक हो सकता है. इस वक्त भारत के पास इन्हें निकालने की खास तकनीक नहीं है, और इसे विकसित करने में कुछ समय लगेगा.
लेकिन भारत अकेला नहीं है. फ्रांस और दक्षिण कोरिया जैसे देश भी इस काम में लगे हैं. भारत के वैज्ञानिक भी ऐसी टेक्नोलॉजी पर काम कर रहे हैं जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना ये खनिज निकाल सके.
भारत के पास पहले से है बड़ा भंडार
क्या आपको पता है? भारत के पास दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा रेयर अर्थ भंडार है, जो करीब 69 लाख टन का है. लेकिन दुख की बात यह है कि हम अभी तक इस भंडार का पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं कर पाए हैं, क्योंकि हमें इसे साफ करने और चुंबक बनाने जैसी तकनीकों में महारत हासिल नहीं है.
भारत की यह कोशिश सिर्फ आत्मनिर्भर बनने की नहीं, बल्कि दुनिया को एक नया रास्ता दिखाने की है. अगर भारत अपने इस अभियान में सफल हो जाता है, तो वह चीन की बादशाहत को चुनौती दे पाएगा और दुनिया के लिए रेयर अर्थ की एक नई और सुरक्षित सप्लाई चेन तैयार कर पाएगा.