MP News: बीजेपी ने मध्य प्रदेश में सत्ता और संगठन को किया मजबूत, लोकसभा चुनाव में बढ़ा वोट बैंक
MP News: लोकसभा के बीते चुनाव ने मध्यप्रदेश में सत्ता और भाजपा संगठन को मजबूत कर दिया है. आलम यह है कि विधानसभा चुनाव में जीती 163 सीटें लोकसभा चुनाव में बढ़कर 207 तक पहुंच गई है. इस परिणाम ने जहां भाजपा को सूबे में मजबूत किया है, तो वहीं कांग्रेस के सामने सवाल खड़ा हो गया कि वह आखिर अपने बल पर खड़ी कैसे हो. गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में लगभग छह माह पहले भाजपा ने विधानसभा की 163 सीट जीतकर अपनी सरकार बनाई थी और कांग्रेस को एक बार फिर से विपक्ष में बैठने के लिए मजबूर होना पड़ा था.
पिछले छह माह में सत्ता और संगठन के समन्वय ने मध्यप्रदेश में वह काम कर दिखाया है, जो आने वाले समय में दूसरे नेताओं के लिए चुनौती पूर्ण होंगे. लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अकेले 29 संसदीय सीटों पर ही जीत दर्ज नहीं की है, बल्कि विधानसभा की 207 सीटों पर उसे फतह मिली, यानि कि लोकसभा चुनाव के नतीजों को आधार मानें तो कांग्रेस महज 23 सीटों पर ही अपने वोट बैंक को साधने में सक्षम रह सकी. इन परिणामों ने जहां भाजपा की सरकार और संगठन को नई ऊर्जा दी है, तो वहीं कांग्रेस के सामने आने वाले समय के लिए कई तरह के सवाल खड़े कर दिए हैं.
भाजपा नेताओं के सामने परिणाम बरकरार रखने की चुनौती
इधर इन परिणामों ने आने वाले सालों में भाजपा के नेताओं के सामने इस बात की चुनौती खड़ी कर दी है कि वे इस परिणाम को कैसे बरकरार रख पाएंगे. फिलहाल मौजूदा सत्ता और संगठन के तालमेल ने पिछले कई रिकार्ड ध्वस्त किए हैं. यह पहली बार हुआ है कि सत्ता पर बैठे मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और संगठन चला रहे विष्णुदत्त शर्मा की इस जोड़ी ने कांग्रेस को जहां पूरी तरह से बुरी तरह से डैमेज किया है, तो वहीं उनकी ही पार्टी ने भविष्य के नेताओं को सामने इस रिकार्ड तोड़ जीत को बचाने की चुनौती भी खड़ी हो गई है.
इतना ही नहीं, भाजपा के उन नेताओं के लिए फिर होमवर्क करने की मजबूरी खड़ी हो गई है, जो नेता मोहन सरकार में मंत्री बनने की दौड़ में सबसे आगे दिखाई दे रहे थे. जिनके विधानसभा क्षेत्र में भाजपा लोकसभा चुनाव में अपेक्षित परिणाम नहीं दिला पाई और अपने जीत के अंतर से पिछड़ गई. जानकार मान रहे हैं कि इन नेताओं का राजनैतिक भविष्य खतरे में पड़ सकता है. इसी तरह यह परिणाम कुछ उन नेताओं को हाईकमान के सामने मजबूत बना दिए हैं, जो विधानसभा चुनाव में हारने के बाद अपने यहां से लोकसभा चुनाव में भाजपा को बड़ी बढ़त के साथ जीत दिलाने में सफल रहे है.
अपने क्षेत्रों में पिछड़े कांग्रेस विधायक भी पशोपेश में
कांग्रेस के कई विधायकों के क्षेत्रों में भाजपा भारी लीड लेकर आगे बढ़ी है. ऐसे में वहां पर कांग्रेस विधायक और संगठन के लिए सबसे बड़ी चुनौती इस बात की है कि आखिर वह इन क्षेत्रों में अपने आपको खड़ा कैसे करें. इस पर पार्टी के कई दिग्गज नेता या तो मौन साधे हैं या फिर उनकी निगाह सत्ताधारी दल की तरफ टकटकी लगाए हुए हैं. चुनाव के बाद जिस तरह से प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी पर उनके ही नेताओं के बयानों की बौछारें पड़ रही है, उससे पार्टी के. ऐसे कार्यकर्ता दिग्भ्रिमित हो रहे हैं, जो चुनाव के दौरान भारी दवाब या दूसरे कारणों के बाद भी दलबदलुओं की सूची में शामिल नहीं हुए थे. अब ये नेता फिर से यह सोचने को मजबूर हो गए कि उनका तब का निर्णय कहीं गलत तो साबित नहीं हुआ है.
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बीजेपी और कांग्रेस के अलग-अलग दावे
प्रदेश मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल का कहना है कि यह हमारे कार्यकर्ताओं और शीर्ष नेताओं के नेताओं का ही प्रभाव है, जिनके काम पर और उनकी गारंटी पर प्रदेश के मतदाताओं ने मुहर लगाई है. विशेषकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की गारंटी पर सूबे की जनता ने विश्वास जताया है. हम आने वाले समय में इस विश्वास को और मजबूत बनाने की दिशा में काम करते रहेंगे.
इधर, कांग्रेस प्रवक्ता स्वदेश शर्मा का कहना है कि कांग्रेस का इतिहास रहा है कि जब भी अवसर आया है, हमने मजबूती के लिए हमेशा दमदार तरीके से लड़ाई लड़ी है और फिर जीतकर वापस लौटे हैं. इसकी इस लोकसभा चुनाव में शुरुआत भी हो गई है. प्रदेश कांग्रेस वन बूथ, टेन यूथ के फार्मूले के साथ मतदाताओं के घर-घर पहुंचेगी, जिसकी वरिष्ठ नेता लगातार मॉनिटरिंग करते रहेंगे. हमें विश्वास है कि प्रदेश के मतदाता आज भी कांग्रेस के साथ खड़ा है, जो आगे और मजबूती से कांग्रेस का साथ देगा.