एक जज का फैसला और हजारों मौतें…क्या ‘बस्तर त्रासदी’ के लिए रेड्डी जिम्मेदार? आदिवासियों ने सांसदों से मांगा ‘इंसाफ’

Bastar Salwa Judum: समिति का कहना है कि फैसले के बाद सलवा जुडूम के हजारों सदस्य नक्सलियों के आसान शिकार बन गए. नक्सलियों ने उन्हें 'मुखबिर' और 'देशद्रोही' बताकर चुन-चुनकर मारा. समिति ने आरोप लगाया कि फैसले से पहले इस बात पर विचार नहीं किया गया कि बैन के बाद इन लोगों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाएगी.
Bastar Salwa Judum

दिल्ली पहुंचे बस्तर के पीड़ित

Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ का बस्तर दशकों से नक्सलवाद की आग में जलता रहा है. इस आग में झुलसे हुए लोगों ने अब अपनी आपबीती लेकर देश की राजधानी दिल्ली का रुख किया है. दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशनल क्लब में ‘आहत बस्तर की गुहार’ बैनर तले बस्तर के पीड़ितों ने उपराष्ट्रपति पद के लिए इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी पर बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं. उनका दावा है कि रेड्डी के एक फैसले ने हजारों आदिवासियों को मौत के मुंह में धकेल दिया. दरअसल, दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशनल क्लब में 20 से ज़्यादा पीड़ित लोग जमा हुए, जिनमें बच्चे, बूढ़े औरतें और जवान शामिल थे.

क्या है सलवा जुडूम और क्यों उठा विवाद?

यह पूरा मामला सलवा जुडूम से जुड़ा है. सलवा जुडूम का मतलब है ‘शांति का कारवां’. इस आंदोलन को बस्तर के आदिवासियों ने साल 2005 में नक्सलियों के अत्याचारों के खिलाफ शुरू किया था. इस आंदोलन में लोग खुद हथियार उठाकर नक्सलियों से मुकाबला करने लगे थे. आदिवासियों का कहना है कि जब सरकार उनकी सुरक्षा नहीं कर पा रही थी, तब सलवा जुडूम ने उन्हें एक उम्मीद दी.

लेकिन, यह आंदोलन जल्द ही विवादों में घिर गया. मानवाधिकार संगठनों ने आरोप लगाया कि सलवा जुडूम के सदस्य भी हिंसा में शामिल हैं और वे निर्दोष लोगों को भी निशाना बना रहे हैं. यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा.

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न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी का फैसला

साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी और जस्टिस आफताब आलम की बेंच ने सलवा जुडूम पर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया. कोर्ट ने इस संगठन को असंवैधानिक घोषित करते हुए इस पर प्रतिबंध लगा दिया. कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार को तुरंत सलवा जुडूम के सदस्यों को दी गई विशेष पुलिस अधिकारी (SPO) की शक्तियां छीनने और उनके हथियार वापस लेने का आदेश दिया.

बस्तर शांति समिति का आरोप है कि इस फैसले ने आदिवासियों के जीवन को और भी मुश्किल बना दिया. समिति का कहना है कि फैसले के बाद सलवा जुडूम के हजारों सदस्य नक्सलियों के आसान शिकार बन गए. नक्सलियों ने उन्हें ‘मुखबिर’ और ‘देशद्रोही’ बताकर चुन-चुनकर मारा. समिति ने आरोप लगाया कि फैसले से पहले इस बात पर विचार नहीं किया गया कि बैन के बाद इन लोगों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाएगी.

प्रेस कॉन्फ्रेंस में पीड़ितों की दास्तान

प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद पीड़ितों ने अपनी दर्दनाक कहानियां सुनाईं. एक महिला ने बताया कि कैसे नक्सलियों ने उनके पति को मार दिया क्योंकि वह एक सरकारी कर्मचारी थे. एक बूढ़ी मां ने अपने इकलौते बेटे को खो दिया, जिसे नक्सलियों ने गोलियों से भून दिया था. कई लोगों ने लैंड माइन और आईडी ब्लास्ट में अपने हाथ-पैर खो दिए. इन सभी पीड़ितों ने एक ही बात कही कि 2011 के फैसले ने उनके जख्मों को और गहरा कर दिया है.

क्या है बस्तर शांति समिति की मांग?

समिति ने भारत के सभी सांसदों से अपील की है कि वे बी. सुदर्शन रेड्डी को उपराष्ट्रपति पद के लिए समर्थन न दें. उनका कहना है कि जो व्यक्ति बस्तर के हजारों लोगों की मौत का जिम्मेदार है, उसे देश का दूसरा सबसे बड़ा संवैधानिक पद नहीं दिया जाना चाहिए.

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