सियासत में नीतीश ने लिए कई यू-टर्न, पर उनके दोस्त सुशील नहीं बदले, कुदरत ने ‘जय-वीरू’ को किया जुदा
Sushil Modi: बिहार में सियासी ‘जय-वीरू’ की राहें अब अलग हो गई है. हम बात बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी की दोस्ती की कर रहे हैं. सुशील मोदी कैंसर से लड़ते-लड़ते दुनिया को अलविदा कह गए. बिहार ही नहीं बल्कि देश की राजनीति में नीतीश और सुशील की दोस्ती की मिसाल दी जाती है. सुशील मोदी के न रहने पर नीतीश कुमार खुद को अधूरा महसूस कर रहे होंगे.
इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि जब नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ नाता तोड़कर राजद से जोड़ा था तो उन्होंने कहा था कि अगर सुशील होते तो ऐसी नौबत ही नहीं आती. दोनों नेताओं की दोस्ती जेपी आंदोलन के दौर से है. जब तक सुशील रहे नीतीश उनपर खूब भरोसा भी करते थे. तभी नीतश ने कहा कि मैंने एक सच्चा दोस्त खो दिया है.
राजनीतिक माहौल चाहे कुछ भी बना हो नीतीश और सुशील की दोस्ती हमेशा बनी रही.
2020 से पहले जब भी नीतीश कुमार बीजेपी के साथ बिहार की सत्ता में थे, सुशील मोदी उनके जूनियर पार्टनर की भूमिका में थे. बीजेपी नेताओं में यह कानाफूसी शुरू हो गई थी कि सुशील मोदी को बीजेपी के भीतर नीतीश का सहयोगी माना जाता है. उनके बीच एक मजबूत पेशेवर और व्यक्तिगत रिश्ता था. जब नीतीश कुमार तीसरी बार बीजेपी से अलग हो रहे थे, तो उन्होंने कहा था कि मैं मुख्यमंत्री बनना ही नहीं चाहता था, अगर सुशील मोदी होते, तो आज यह हालात नहीं होते. कुल मिलाकर, नीतीश कुमार केवल सुशील मोदी के लिए सीएम पद छोड़ने को तैयार थे. जेडीयू के नेता भी मानते हैं कि सुशील मोदी और नीतीश कुमार के बीच मजबूत संबंध रहे.
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ये कुदरत का चमत्कार कहें कि 17 महीने तक लालू प्रसाद यादव की पार्टी के साथ सरकार चलाने के बाद नीतीश कुमार आखिरकार अपने दोस्त सुशील कुमार मोदी की पार्टी बीजेपी के साथ ही गठबंधन में आ गए. यहीं जो खाई दोनों दोस्तों के बीच थी, वो पूरी तरह से भर गई. यही वजह है कि जैसे ही पता चला कि सुशील कुमार मोदी को कैंसर है, वैसे ही नीतीश कुमार तत्काल उनकी खैरियत जानने उनके आवास पर पहुंच गए. इस पर यही कहा जा सकता है कि कुदरत भी चाहती थी कि दोनों दोस्त अंतिम वक्त में भी दोस्त ही रहें.
करीब 34 साल से राजनीति में सक्रिय रहे सुशील कुमार मोदी राज्यसभा, लोकसभा, विधान परिषद और विधानसभा यानि चारों सदनों के सदस्य रह चुके हैं. इसके अलावा सुशील मोदी बिहार विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष के तौर पर सत्ताधारी दल को सदन के भीतर पुरजोर तरीके से घेर भी चुके थे. आपको बता दें कि सुशील कुमार मोदी के पहले सिर्फ लालू प्रसाद यादव के अलावा एक और नेता ही चारों सदनों के सदस्य रह चुके हैं. सुशील कुमार मोदी ने 1990 में पहली बार पटना सेंट्रल से विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी. 2004 में वह भागलपुर सीट से लोकसभा के सदस्य के तौर पर चुने गए थे. लेकिन 2005 में NDA की सरकार बनने के बाद सुशील कुमार मोदी को बिहार विधान मंडल दल का नेता चुना गया तो उन्होंने लोकसभा से त्यागपत्र दे दिया था. इसके बाद वो 2012 विधानपरिषद के सदस्य के तौर पर निर्वाचित हुए. इसके बाद सुशील कुमार मोदी को 2018 में राज्यसभा भेजा गया था.