Bastar में नींबू् को राजा मानकर क्यों लिया जाता था फैसला? गणतंत्र दिवस के दिन ‘कर्तव्यपथ’ पर दिखेगी झलक
Bastar: छत्तीसगढ़ के बस्तर में एक समय ऐसा भी था जब आदिवासी समुदायों के बीच कोई राजा नहीं होता था, ऐसे में लोगों ने अपनी समस्याएं और परेशानियों को हल करने के लिए ‘मुरिया दरबार’ परंपरा की शुरुआत की, जिसमें लोग अपनी बात रखते थे और आपस में बातचीत करके निर्णय लेते थे. इस प्रक्रिया में कोई इंसान मध्यस्थता करने के लिए नहीं होता था बल्कि नींबू को प्रतीक के तौर पर राजा मानकर निर्णय लिया जाता था. लेकिन नींबू को ही क्यों राजा माना गया? इस प्रथा के पीछे क्या मंशा थी?
दरअसल, ‘मुरिया दरबार’ पर केंद्रित झाकी गणतंत्र-दिवस के दिन कर्तव्यपथ पर दिखने वाली है. ऐसे में जानते हैं कि नींबू को राजा मानने की क्या वजह है.
कैसे शुरु हुई मुरिया दरबार की प्रथा
आदिवासी समाज की अधिकांश प्रथा प्रकृति से जुड़ी है. जहां आज के समय में हम प्रकृति के दूर होते जा रहे हैं, नई तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं. वहीं आदिवासी समाज आज भी अपनी समस्या को दरबार के माध्यम से रखता है, जो बस्तर में ‘मुरिया दरबार’ के नाम से प्रसिद्ध है. 75 दिनों तक चलने वाले बस्तर दशहरा की एक परंपरा है. इसकी शुरुआत 8 मार्च, 1876 को हुई थी, जिसमें सिरोंचा के डिप्टी कमिश्नर मेक जार्ज ने मांझी-चालकियों को संबोधित किया था. बाद में लोगों की सुविधा के अनुरूप इसे बस्तर दशहरा का अभिन्न अंग बनाया गया, जो परंपरानुसार 148 साल से जारी है. प्राचीन समय में इस परंपरा में राजा मौजूद रहते थे और वह ग्रामीणों की समस्याएं सुनकर उनका हल निकालते थे. समय के साथ राजा महाराजाओं का दौर खत्म हुआ और परंपराएं भी बदलीं. अब ग्रामीणों की समस्याएं शासन प्रशासन के लोग सुनते हैं.
नींबू् से क्यों लिया जाता था निर्णय
जानकारी के मुताबिक, मुरिया दरबार परंपरा का उद्गम सूत्र कोंडागांव जिले के बड़े-डोंगर के लिमऊ राजा नामक स्थान पर मिलता है. इस स्थान से जुड़ी मान्यता ये है कि पुराने समय में जब कोई राजा नहीं था, तो मुरिया दरबार में आदिवासी एक नींबू को राजा का प्रतीक मानकर आपस में ही निर्णय ले लिया करते थे, जिससे उनकी समस्या हल हो जाती थी.
कर्तव्यपथ पर मुरिया दरबार की दिखेगी झांकी
26 जनवरी के अवसर पर कर्तव्यपथ पर प्रदर्शित होने वाली राज्य की झांकी का केंद्रीय विषय “आदिम जन-संसद” रखा गया है. रक्षा मंत्रालय की विशेषज्ञ समिति के सामने थीम और डिजाइन चयन के बाद झांकी का थ्रीडी मॉडल और संगीत प्रस्तुत किया गया. 28 राज्यों की कड़ी प्रतियोगिता के बाद छत्तीसगढ़ की झांकी का चयन हुआ है. इस झांकी की थीम और डिजाइन ने चयनकर्ताओं को काफी आकर्षित किया.