सेना ने तोड़ दी नक्सलवाद की कमर, बसवराजू की मौत से क्या रुक जाएगा रिक्रूटमेंट? समझिए ‘लाल आतंक’ का ‘कैडर फॉर्मूला’

बसवराजू जैसे अनुभवी नेता का मारा जाना संगठन के लिए बड़ा झटका है. उसके पास वर्षों का अनुभव और रणनीतिक समझ थी, जिसे दोबारा बनाना आसान नहीं होगा. इस तरह की घटनाएं नक्सल कैडर के मनोबल को तोड़ती हैं. जब शीर्ष नेता मारे जाते हैं, तो निचले स्तर के कार्यकर्ताओं में डर और असमंजस बढ़ता है.
Chhattisgarh Encounter

नक्सलियों की टोली

Chhattisgarh Encounter: छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में सुरक्षाबलों ने नक्सलवाद के खिलाफ एक और बड़ी कामयाबी हासिल की है. आज सुबह हुई एक मुठभेड़ में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) के सेंट्रल कमेटी के शीर्ष नेता नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू मारा गया. छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में सेना के जवान चुन-चुनकर नक्सलियों को अंजाम तक पहुंचा रहे हैं. आज के इस मुठभेड़ ने नक्सल संगठन को बड़ा झटका दिया है, क्योंकि बसवराजू संगठन के सबसे बड़े नेताओं में से एक था.

मुठभेड़ की पूरी कहानी

सूत्रों के अनुसार, छत्तीसगढ़ पुलिस और DRG की संयुक्त टीम को खुफिया जानकारी मिली थी कि बसवराजू और उनके कुछ साथी बस्तर के जंगलों में छिपे हुए हैं. इसके आधार पर सुरक्षाबलों ने एक बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया. सुबह तड़के शुरू हुई इस मुठभेड़ में नक्सलियों ने पहले गोलीबारी शुरू की, लेकिन सुरक्षाबलों ने जवाबी कार्रवाई में बसवराजू को मार गिराया. मुठभेड़ में कुछ अन्य नक्सली भी मारे गए, हालांकि उनकी पहचान अभी स्पष्ट नहीं हो पाई है.

कौन था नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू?

नंबाला केशव राव माओवादी संगठन के सबसे बड़े नेताओं में से एक था. वह 2018 से CPI (माओवादी) का महासचिव था और संगठन की सेंट्रल कमेटी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था. बसवराजू नक्सलियों की रणनीति बनाने, हमलों की योजना तैयार करने और संगठन को मजबूत करने में अहम किरदार था. उसके ऊपर कई राज्यों में नक्सली हमलों, हत्याओं और उगाही के मामले दर्ज थे. कहा जाता है वह बम बनाने में भी एक्सपर्ट था.

‘लाल आतंक’ का ‘कैडर सिस्टम’

नक्सलवादी संगठन, खासकर CPI (माओवादी) एक सख्त और गुप्त संरचना के तहत काम करता है. इसे आसान भाषा में समझें.

निचला स्तर (ग्रामीण कैडर): ये लोग गांवों में रहते हैं और नक्सलियों के लिए जासूसी, प्रचार और छोटे-मोटे हमलों का काम करते हैं. इनमें स्थानीय आदिवासी और युवा शामिल होते हैं, जो अक्सर संगठन की विचारधारा से प्रभावित होकर इसमें शामिल होते हैं.

मध्य स्तर (क्षेत्रीय कमांडर): ये लोग नक्सलियों के सशस्त्र दस्तों को नेतृत्व देते हैं. ये गुरिल्ला युद्ध की रणनीति बनाते हैं और छोटे-छोटे हमलों को अंजाम देते हैं.

सेंट्रल कमेटी और पोलित ब्यूरो: यह संगठन का दिमाग होता है. बसवराजू जैसे नेता सेंट्रल कमेटी में शामिल था, जो पूरे संगठन की नीतियां बनाते हैं और बड़े हमलों की योजना तैयार करते हैं. ये लोग संगठन को एकजुट रखने और नए सदस्यों को भर्ती करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

नक्सलियों के लिए क्यों है यह बड़ा झटका?

बसवराजू जैसे अनुभवी नेता का मारा जाना संगठन के लिए बड़ा झटका है. उसके पास वर्षों का अनुभव और रणनीतिक समझ थी, जिसे दोबारा बनाना आसान नहीं होगा. इस तरह की घटनाएं नक्सल कैडर के मनोबल को तोड़ती हैं. जब शीर्ष नेता मारे जाते हैं, तो निचले स्तर के कार्यकर्ताओं में डर और असमंजस बढ़ता है.

नक्सलियों के बड़े नेताओं के नाम और उसके काम

मुप्पाला लक्ष्मण राव उर्फ गणपति

गणपति तेलंगाना के करीमनगर जिले का रहने वाला है. वह विज्ञान में स्नातक है और 1980 के दशक से नक्सल आंदोलन में सक्रिय है. अगर इसके काम की बात करें तो 2004 में गणपति ने दो बड़े नक्सली समूहों, पीपुल्स वॉर ग्रुप (PWG) और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया (MCCI) को मिलाकर CPI (माओवादी) बनाया.

इसने संगठन की नीतियां बनाईं और इसे देश के कई हिस्सों में फैलाया. गणपति ने माओवादी विचारधारा को ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में फैलाने का काम किया. कुछ खबरों के अनुसार, गणपति विदेशी माओवादी संगठनों से भी संपर्क में है.

2018 में स्वास्थ्य कारणों से उन्होंने महासचिव का पद छोड़ दिया. कुछ खबरों के मुताबिक, वह अब विदेश में हो सकते हैं, लेकिन उनकी सटीक स्थिति अस्पष्ट है. भले ही वे अब कम सक्रिय हों, उसकी वैचारिक और रणनीतिक विरासत नक्सलियों के लिए महत्वपूर्ण है.

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माडवी हिडमा

हिडमा छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के एक आदिवासी समुदाय से है. वे CPI (माओवादी) की सशस्त्र शाखा, पीपुल्स लिबरेशन गोरिल्ला आर्मी (PLGA) के बटालियन नंबर 1 का कमांडर है. अगर काम की बात करें तो हिडमा गुरिल्ला युद्ध में माहिर है और कई बड़े हमलों के पीछे उनका दिमाग रहा है, जैसे 2013 का दरभा घाटी हमला (25 सुरक्षाकर्मी मारे गए) और 2017 का सुकमा हमला (25 CRPF जवान शहीद).

वह बस्तर और सुकमा जैसे इलाकों में नक्सलियों की सैन्य गतिविधियों को नियंत्रित करता है. हिडमा स्थानीय आदिवासी युवाओं को नक्सल संगठन में शामिल करने में सक्रिय हैं. हिडमा को नक्सलियों का सबसे खतरनाक और आक्रामक नेता माना जाता है. उनके सिर पर 1 करोड़ रुपये का इनाम है. वे अभी भी बस्तर के जंगलों में सक्रिय हैं और सुरक्षाबलों के लिए बड़ी चुनौती बने हुए हैं.

प्रशांत बोस उर्फ किशन दा

प्रशांत बोस पश्चिम बंगाल का रहने वाला है और CPI (माओवादी) की सेंट्रल कमेटी का वरिष्ठ सदस्य है. अगर काम की बात करें तो किशन दा माओवादी विचारधारा को फैलाने और नए कार्यकर्ताओं को प्रेरित करने का काम करता है. उसके सिर पर 1 करोड़ रुपये का इनाम है.

कटकम सुदर्शन उर्फ आनंद

सुदर्शन तेलंगाना के आदिलाबाद जिले के रहने वाला है और सेंट्रल कमेटी के सदस्य है. काम है पैसे जुटाना. वह उगाही और अन्य स्रोतों से संगठन के लिए धन जुटाता है. वह क्षेत्रीय स्तर पर नक्सली गतिविधियों की योजना बनाता है. सुदर्शन की रणनीतिक और वित्तीय भूमिका संगठन को चलाने के लिए जरूरी है. उसके सिर पर 40 लाख रुपये का इनाम है.

मल्लोजुला वेंकट राव

वेंकट राव तेलंगाना के करीमनगर जिले का रहने वाला है और सेंट्रल कमेटी का सदस्य है. काम है तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ में नक्सली गतिविधियों का समन्वय करना. यह नए इलाकों में नक्सल प्रभाव बढ़ाने की कोशिश करता है. वह नए कैडर को प्रशिक्षण और हथियार चलाने की ट्रेनिंग देने में मदद भी करता है. उनकी स्थिति अस्पष्ट है, लेकिन वे अभी भी सक्रिय माना जाता है.

हाल के वर्षों में छत्तीसगढ़ में सुरक्षाबलों ने नक्सलियों के खिलाफ अपने अभियानों को तेज किया है. 2025 में अब तक 130 से अधिक नक्सली मारे गए हैं और सैकड़ों ने आत्मसमर्पण किया है. सरकार की ‘नियाद नेल्लार’ योजना के तहत नक्सल प्रभावित गांवों में सड़क, बिजली, और स्कूल जैसी सुविधाएं पहुंच रही हैं, जिससे नक्सलियों का स्थानीय समर्थन कम हो रहा है.

सरकार की रणनीति

केंद्र और छत्तीसगढ़ की डबल इंजन सरकार ने नक्सलवाद को 31 मार्च 2026 तक खत्म करने का लक्ष्य रखा है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में कहा था कि नक्सलियों के 200 से अधिक बंकर तबाह किए गए हैं और 1200 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र नक्सलमुक्त हो चुका है. बसवराजू की मृत्यु इस दिशा में एक और कदम है.

नक्सलियों के सामने चुनौतियां

बसवराजू जैसे नेताओं के मारे जाने के बाद संगठन को नया नेतृत्व ढूंढना मुश्किल होगा. कई नक्सली सरकारी योजनाओं के तहत आत्मसमर्पण कर रहे हैं, जिससे संगठन की ताकत कम हो रही है. आदिवासी समुदाय अब विकास योजनाओं की वजह से सरकार के साथ जुड़ रहा है, जिससे नक्सलियों का आधार कमजोर हो रहा है.

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