Chhattisgarh का अनोखा स्कूल, जहां टीचर्स नहीं पेरेंट्स लेते हैं Class, इंजीनियर, डॉक्टर और सीए भी इनमें शामिल

Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ के दुर्ग के भिलाई से 26 किमी दूर अहिवारा-कुम्हारी मुख्य मार्ग पर स्थित अछोटी गांव में एक ऐसा स्कूल है, जहां विद्यार्थियों को शिक्षक नहीं बल्कि उनके अभिभावक पढ़ाते हैं.
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अभिभावक स्कूल

Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ के दुर्ग के भिलाई से 26 किमी दूर अहिवारा-कुम्हारी मुख्य मार्ग पर स्थित अछोटी गांव में एक ऐसा स्कूल है, जहां विद्यार्थियों को शिक्षक नहीं बल्कि उनके अभिभावक पढ़ाते हैं.

इस स्कूल में टीचर्स नहीं पैरेंट्स लेते है क्लास

भिलाई के अहिवारा-कुम्हारी मुख्य मार्ग पर स्थित अछोटी गांव में एक ऐसा स्कूल है, जहां विद्यार्थियों को शिक्षक नहीं बल्कि उनके अभिभावक पढ़ाते हैं. इसलिए इस स्कूल का नाम भी ‘अभिभावक स्कूल’ है. स्कूल में 28 शिक्षक हैं, इनमें 14 शिक्षक नियमित हैं और 14 विषयवार सप्ताह में तीन या चार दिन कक्षाएं लेते हैं.

इंजीनियर, डॉक्टर और सीए भी इनमें शामिल

इन शिक्षकों में दो आईआईटी मुंबई से पास आउट सूर्यकांत अग्रवाल और राकेश कंवर हैं, jo अभिभावक हैं. वहीं एक आईआईटी दिल्ली से पीएचडी होल्डर ‘डॉ. मीनाक्षी राठौड़’ हैं. एक MBBS डॉक्टर ‘डॉ. सपना गोयल हैं, एक टीशू कल्चर में शोध कर लंदन से लौटे वरिष्ठ वैज्ञानिक ‘डॉ. संकेत ठाकुर’ हैं और एक चार्टर्ड आकाउंटेंट (CA) हैं. इन सब में खास बात यह है कि इनमें से कोई भी वेतन नहीं लेता बल्कि संस्था के संचालन के लिए खुद से पैसे खर्च करते हैं.

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अभिभावक स्कूल को 2018 में मिली मान्यता

साल 2016 में खुले स्कूल में कक्षा पहली से 10वीं तक के 168 विद्यार्थी पढ़ रहे हैं. संस्था के भारी सुचित्रा श्रीवास्तव और प्रशिक्षण प्रभारी’ महावीर अग्रवाल ने बताया कि स्कूल शिक्षा विभाग से इस स्कूल को 2018 में मान्यता मिल गई है. पिछले साल 10वीं का शत प्रतिशत परिणाम आया है. 5 बच्चे 90 फीसदी से अधिक अंकों के साथ पास हुए. यहां बच्चों को हिंदी, अंग्रेजी, गणित, सामाजिक अध्ययन और विज्ञान के साथ जीवन विद्या और मानवीय मूल्य पढ़ाए जाते हैं. साथ ही उन्हें हुनरनंद बनाने के लिए यानी स्किल डेवलपमेंट के लिए वुडन आर्ट, सलाद मेकिंग, कृषि, ‘डेयरी’ और गौ पालन समेत विभिन्न विधाओं का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है. इसका मुख्य उद्देश्य है कि बच्चे परिवार का महत्व समझें.

जानिए कैसे चला है स्कूल

मानवीय संवेदनाओं को महसूस करें और हुनरमंद बनें. इससे तीन लाभ होंगे एक परिवार टूटेगा नहीं, बच्चे माता-पिता को छोड़कर नहीं जाएंगे. मानवीय संवेदनाओं को समझेंगे. प्रकृति को बिना हानि पहुंचाए अपना काम कर सकेंगे. पढ़ाई के बाद रोजगार पाने में या खुद का स्वरोजगार स्थापित करने में उन्हें परेशानी नहीं होगी. 9 केंद्र और 50 परिवार के सदस्य सारा खर्च उठाते हैं.
स्कूल के संचालन में अभ्युदय संस्थान अछोटी में रहने वाले परिवार के सदस्य, 9 अभ्युदय केंद्रों के सदस्य और राजधानी रायपुर में रहने वाले कुछ परिवारों का योगदान है. लगभग 50 परिवार आपस में मिलजुलकर अभिभावक विद्यालय के संचालन में बिना किसी आर्थिक लाभ या वेतन के स्वेच्छा से अपनी भागीदारी निभा रहे हैं. आगे भी सभी मिलकर स्कूल का संचालन करते रहेंगे.

स्कूली शिक्षा के साथ बच्चों को यहां वुडन आर्ट, कारपेंट्री, सिलाई, एंब्रॉयडरी, कुकिंग, कृषि, पेपर वर्ग, रंग बनाना, सलाद बनाना, नृत्य, संगीत, ‘डेयरी’ आदि सिखाया जाता है. फिटनेस के लिए स्पोर्ट्स और पीटी एक्सरसाइज भी सिखाते हैं। यहां बच्चे एक दूसरे का संबोधन भी बहनजी या भैयाजी कहकर बुलाते हैं। शिक्षक भी आपस में सर या मैडम के स्थान पर बहन या भाई साहब शब्द का उपयोग करते हैं.

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