खतरे में श्रद्धालुओं की आस्था और स्वास्थ्य…छठ पूजा से पहले डरा रही यमुना, धुआं-धुआं शहर, पानी में जहर

जनता भौंचक टुकुर-टुकर ताक रही है, कभी एक तरफ तो कभी दूसरी ओर. उसे समझ ही नहीं आ रहा है कि आखिर सब नेता, सब पार्टी हमारी ही चिंता कर रहा है तो फिर हमारी दशा इतनी चिंताजनक क्यों?
Chhath Puja 2024

यमुना नदी में भक्त

Chhath Puja 2024:  छठ पूजा का पर्व नजदीक है, लेकिन यमुना नदी की चिंताजनक स्थिति ने श्रद्धालुओं की चिंता बढ़ा दी है. हर साल लाखों श्रद्धालु इस पवित्र अवसर पर यमुना में स्नान कर सूर्य देवता को अर्घ्य अर्पित करते हैं. इस बार भी यमुना का जल गंदगी से भरा हुआ है. हालांकि, इस बार यमुना का पानी बेहद गंदा हो गया है, जिससे भक्तों के लिए सुरक्षा और स्वच्छता का बड़ा सवाल खड़ा हो गया है.

पानी का रंग बिल्कुल काला

हर साल की तरह इस बार भी छठ पर्व पर श्रद्धालु यमुना में स्नान कर सूर्य देवता को अर्घ्य अर्पित करेंगे, लेकिन यमुना के पानी में मौजूद गंदगी ने लोगों की चिंता बढ़ा दी है. यमुना के पानी का रंग बिल्कुल काला है…पानी में मोतिया की मात्रा काफी बढ़ गई है, जिसके परिणामस्वरूप सफेद झाग की चादर पानी के ऊपर तैर रही है. ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि श्रद्धालु इस महत्वपूर्ण पर्व को कैसे मनाएंगे?

गुस्से में स्थानीय लोग

स्थानीय निवासियों का कहना है कि वे हर साल यहां आते हैं, लेकिन इस बार की स्थिति देखकर उन्हें डर लग रहा है. एक स्थानीय भक्त ने कहा, “सरकार ने कई बार सफाई की बातें की, लेकिन कुछ नहीं हुआ. यह हमारी धार्मिक आस्था का प्रश्न है, लेकिन क्या हम अपनी सेहत को दांव पर लगाकर स्नान कर सकते हैं?” छठ पूजा के इस महत्वपूर्ण पर्व पर यमुना की साफ-सफाई की दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत महसूस की जा रही है. श्रद्धालुओं की सुरक्षा और स्वास्थ्य दोनों की रक्षा अब सरकार की जिम्मेदारी बन गई है.

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दिल्ली को लग गई है राजनीति की नजर

पिछले कुछ वर्षों से दिल्ली को राजनीति की नजर लग गई है. छोटे से छोटे मुद्दों पर सियासी खींचतान, अदालतों में तू-तू, मैं-मैं और इन सबके बीच पिसती जनता. हर कोई जनता के हितों की राजनीति ही कर रहा है. फिर भी पानी जैसी बुनियादी सुविधा मयस्सर नहीं. जनता भौंचक टुकुर-टुकर ताक रही है, कभी एक तरफ तो कभी दूसरी ओर. उसे समझ ही नहीं आ रहा है कि आखिर सब नेता, सब पार्टी हमारी ही चिंता कर रहा है तो फिर हमारी दशा इतनी चिंताजनक क्यों?

आम आदमी आखिर करे भी तो क्या, सिवाय सोचने के? फिर यही सवाल बचता है कि पानी पर शोर, सियासत और संग्राम के लिए कहीं दिल्ली की जनता ही कसूरवार तो नहीं? अब एक बार फिर से पानी पर राजनीति शुरू हो गई है..

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