कैलाश गहलोत के इस्तीफे की असली कहानी तो ये है, केजरीवाल को अब तक मिले झटकों की लंबी है फेहरिस्त! समझिए अंदर की बात

कुल मिलाकर, आम आदमी पार्टी के लिए यह एक और कड़ी चुनौती साबित हो सकती है. अरविंद केजरीवाल को अब अपने नेतृत्व की मजबूती को साबित करने का बड़ा मौका मिलेगा, खासकर जब उनके कई पुराने साथी पार्टी छोड़ चुके हैं और आरोपों की झड़ी लगा चुके हैं.
अरविंद केजरीवाल

अरविंद केजरीवाल

Kailash Gahlot Resignation: दिल्ली में आम आदमी पार्टी (AAP) को एक और बड़ा झटका लगा है. पार्टी के वरिष्ठ नेता और दिल्ली सरकार के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने AAP की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है. सूत्रों के अनुसार, उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया है. इस्तीफे के साथ ही गहलोत ने AAP के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल पर गंभीर आरोप लगाए हैं और कहा है कि पार्टी अब अपनी मूल राजनीतिक प्रतिबद्धताओं से भटक चुकी है.

इस्तीफा देते हुए कैलाश गहलोत ने क्या-क्या?

अपने इस्तीफे में कैलाश गहलोत ने लिखा, “आज आम आदमी पार्टी गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है. पार्टी के सामने वही मुद्दे हैं, जिनसे निपटने के लिए हम सब एकजुट हुए थे. लेकिन अब राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं लोगों के हितों से ऊपर हो गई हैं और पार्टी के कई वादे अधूरे रह गए हैं. जिस यमुना को हम स्वच्छ बनाने का वादा करते थे, वह पहले से भी ज्यादा प्रदूषित हो चुकी है. यह एक असफलता है, जिसे हम नजरअंदाज नहीं कर सकते. इसके अलावा, अब हम सिर्फ अपने राजनीतिक एजेंडे को लेकर लड़ रहे हैं, जबकि दिल्ली के लोगों को बुनियादी सेवाएं देने में भी मुश्किलें आ रही हैं.”

गहलोत ने यह सवाल भी उठाया, “क्या हम अब भी आम आदमी हैं? क्या हम वही पार्टी हैं जो लोगों के हित में काम करने का दावा करती थी?” उनका कहना था कि पार्टी के भीतर अब वो मूल बातें नहीं हैं जिन पर AAP खड़ी थी. उन्होंने यह भी कहा कि यदि दिल्ली सरकार अपना अधिकांश समय केंद्र सरकार से लड़ाई में व्यस्त रखेगी, तो दिल्ली के लिए कोई भी विकास संभव नहीं होगा.

इस झटके से उबर नहीं पाएंगे केजरीवाल!

कैलाश गहलोत दिल्ली के जाट समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो पारंपरिक रूप से बीजेपी के समर्थक माने जाते हैं. उन्हें दिल्ली सरकार में एक प्रमुख मंत्री के तौर पर महत्वपूर्ण मंत्रालयों का प्रभार दिया गया था, जिनमें परिवहन, राजस्व, प्रशासनिक सुधार, कानून, महिला और बाल विकास मंत्रालय शामिल थे.

वह 2015 में नजफगढ़ से विधायक बने थे और तब से दो बार मंत्री रह चुके थे. उनका नाम उस वक्त चर्चा में आया जब अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की रेस में थे. हालांकि, इस दौरान केजरीवाल ने उन्हें सीएम पद की दौड़ से बाहर कर दिया था, और उनकी जगह आतिशी को झंडा फहराने का मौका दिया. इस पर गहलोत ने भावुक होकर केजरीवाल को ‘आधुनिक स्वतंत्रता सेनानी’ तक कहा था. जाट समुदाय के वोट बैंक पर बीजेपी को टक्कर देने के लिए कैलाश गहलोत का रोल अहम था, हालांकि, अब उन्होंने पार्टी को टाटा कर दिया है.

शराब घोटाले में गहलोत का नाम!

गहलोत का नाम शराब घोटाले में भी सामने आया था. दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और पार्टी के अन्य नेताओं के साथ उनका भी नाम ED की जांच में शामिल था. गहलोत से कई बार पूछताछ की गई थी और उनके ठिकानों पर आयकर विभाग ने छापे भी मारे थे.

पार्टी छोड़ने के बाद बीजेपी में शामिल होने के कयास

कैलाश गहलोत के इस्तीफे के बाद से राजनीतिक हलकों में कयास लगाए जा रहे हैं कि वह जल्द ही बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. गहलोत का जाट समुदाय से अच्छा संबंध है और उनकी बीजेपी नेताओं के साथ घनिष्ठता भी रही है. उनके इस कदम से AAP को एक और बड़ा झटका लग सकता है, क्योंकि दिल्ली में बीजेपी की वापसी की संभावनाओं को लेकर राजनीतिक गतिविधियां तेज हो चुकी हैं.

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AAP में और नेताओं के इस्तीफे

यह पहला मौका नहीं है, जब आम आदमी पार्टी को अपने विश्वस्त नेताओं से बड़ा झटका लगा है. हाल के दिनों में कई बड़े नेता और कार्यकर्ता पार्टी छोड़ चुके हैं, या फिर राजनीति से ही दूर हो गए हैं. इनमें से कुछ प्रमुख नाम आशीष खेतान, आशुतोष, कुमार विश्वास, प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, और कपिल मिश्रा जैसे नेताओं के हैं, जिन्होंने पार्टी में बढ़ते आंतरिक विवादों और केजरीवाल के नेतृत्व पर सवाल उठाए थे. इन नेताओं का मानना था कि पार्टी अब अपने मूल सिद्धांतों से भटक गई है और केवल सत्ता की राजनीति में उलझी हुई है. आइये एक नजर डाल लेते हैं कि अब तक किस-किस ने केजरीवाल का साथ छोड़ा है.

1. आशीष खेतान

दिल्ली डायलॉग कमिशन के वाइस चेयरमैन रह चुके आशीष खेतान ने एक्टिव पॉलिटिक्स से ब्रेक ले लिया था. उन्होंने घोषणा की कि अब उनका ध्यान पूरी तरह से अपनी लॉ प्रैक्टिस पर है और वह सक्रिय राजनीति से दूर हैं. इसके पहले उन्होंने दिल्ली डायलॉग कमिशन के वाइस चेयरमैन पद से इस्तीफा दे दिया था. पार्टी से उनके इस्तीफे ने यह सवाल उठाया कि क्या आम आदमी पार्टी के नेता और उनके करीबी साथी अब पार्टी की दिशा और नेतृत्व से संतुष्ट नहीं हैं.

2. आशुतोष

मीडिया जगत से राजनीति में आए आशुतोष ने भी पार्टी छोड़ दी थी. उन्होंने 2014 में एक टीवी न्यूज चैनल के मैनेजिंग एडिटर पद से इस्तीफा देकर आम आदमी पार्टी जॉइन की थी. आशुतोष ने 2014 में दिल्ली के चांदनी चौक से चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. आशुतोष ने कहा था कि उनका पार्टी के साथ यात्रा अब खत्म हो गई है और यह फैसला उन्होंने व्यक्तिगत कारणों से लिया है.

3. प्रशांत भूषण

AAP के थिंक टैंक में शामिल प्रशांत भूषण पार्टी के कानूनी मामलों के प्रमुख थे. उन्होंने भी पार्टी छोड़ दिया था. उन्होंने पार्टी के भीतर मनमानी और टिकट बंटवारे के गड़बड़ियों का आरोप लगाया. 2015 में उन्हें पार्टी की पीएसी (प्रारंभिक समिति) और राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति से बाहर कर दिया गया. प्रशांत भूषण ने खुलकर केजरीवाल पर पार्टी के सिद्धांतों से हटने का आरोप लगाया और उन्होंने ‘स्वराज अभियान’ नामक एक नई राजनीतिक संस्था की शुरुआत की.

4. योगेंद्र यादव

योगेंद्र यादव पार्टी के लिए चुनावी रणनीति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे. उन्होंने भी केजरीवाल का साथ छोड़ दिया. उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में बाहर किया गया था. योगेंद्र यादव ने प्रशांत भूषण के साथ मिलकर ‘स्वराज अभियान’ की स्थापना की, जो किसानों के मुद्दों को उठाने के लिए काम कर रहा है. उनका कहना था कि केजरीवाल का नेतृत्व अब पार्टी के मूल सिद्धांतों से भटक चुका है.

5. कपिल मिश्रा

दिल्ली सरकार में जल संसाधन मंत्री रहे कपिल मिश्रा ने 2017 में पार्टी छोड़ दी थी. उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया गया था जब उन्होंने आरोप लगाया था कि उन्होंने दिल्ली मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को एक व्यक्ति से 2 करोड़ रुपये की रिश्वत लेते हुए देखा था. कपिल मिश्रा ने केजरीवाल और उनकी सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए थे और इसके बाद वह बीजेपी में शामिल हो गए.

6. कुमार विश्वास

आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे कुमार विश्वास और अरविंद केजरीवाल के करीबी मित्र थे. हालांकि, उन्होंने भी पार्टी छोड़ने के बाद केजरीवाल की नीतियों और उनके नेतृत्व पर खुलकर सवाल उठाए थे. कुमार विश्वास ने कभी पार्टी की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, लेकिन बाद में उन्होंने केजरीवाल के नेतृत्व को लेकर अपना विरोध जताया. उनका कहना था कि पार्टी का अब कोई स्पष्ट दिशा नहीं है .

7. मयंक गांधी

आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रहे मयंक गांधी ने भी आप से किनारा कर लिया. वह भी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में शामिल होने के बाद पार्टी से जुड़े थे, लेकिन बाद में उन्होंने केजरीवाल की राजनीति पर सवाल उठाए. मयंक गांधी ने आरोप लगाया कि केजरीवाल की सरकार अब ईमानदारी की राजनीति से पीछे हट चुकी है और पार्टी में कार्यकर्ताओं का इस्तेमाल कर उन्हें छोड़ दिया जाता है.

8. किरन बेदी

भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल आंदोलन का एक प्रमुख चेहरा किरन बेदी, जिन्हें केजरीवाल अपनी बड़ी बहन मानते थे. उन्होंने भी राजनीति में आने के बाद केजरीवाल से दूरी बना ली. दोनों के बीच मतभेद तब बढ़े, जब दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान दोनों नेताओं के बीच कई तल्ख बयानबाजी हुई. हालांकि, किरन बेदी बीजेपी में शामिल हो गईं, लेकिन उनका और केजरीवाल का रिश्ता बहुत करीब नहीं रह पाया. बाद में बीजेपी ने उन्हें सीएम कैंडिडेट भी बनाया. हालांकि, दिल्ली विधानसभा चुनाव पार्टी बुरी तरह हार गई.

9. शाजिया इल्मी

पत्रकारिता से राजनीति में आई शाजिया इल्मी आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य भी थीं. हालांकि, पार्टी छोड़ने के बाद केजरीवाल पर आरोप लगाए कि उन्होंने पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र नहीं बनाया और सिर्फ सत्ता की राजनीति को प्राथमिकता दी. शाजिया इल्मी बाद में बीजेपी में शामिल हो गईं थीं.

10. विनोद कुमार बिन्नी

विनोद कुमार बिन्नी आम आदमी पार्टी के टिकट पर दिल्ली के लक्ष्मीनगर से विधायक बने थे. उन्होंने पार्टी में पहले ही विरोध की आवाज उठानी शुरू कर दी थी. उन्हें मंत्रालय बंटवारे से नाखुशी थी और उन्होंने पार्टी पर अपने सिद्धांतों से हटने का आरोप लगाया. इसके बाद जनवरी 2014 में उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया. बाद में, उन्होंने बीजेपी में शामिल होने का फैसला किया.

11. एमएस धीर

आम आदमी पार्टी के पहले विधानसभा अध्यक्ष एमएस धीर ने भी पार्टी छोड़ दी थी. उन्होंने 2014 में दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी छोड़ने का फैसला लिया और बीजेपी में शामिल हो गए. उनका जाना AAP के लिए एक बड़ा नुकसान माना गया, क्योंकि दिल्ली में सिख समुदाय के बीच उनका अच्छा प्रभाव था.

12. हरशरण सिंह बल्ली

हरशरण सिंह बल्ली ने हाल ही में आम आदमी पार्टी छोड़ दी और बीजेपी में शामिल हो गए. उनके साथ उनके बेटे गुरमीत सिंह रिंकू बल्ली भी बीजेपी में शामिल हुए. इसने AAP के लिए एक और बड़ा झटका दिया, खासकर जब बल्ली दिल्ली में जाट समुदाय से आते हैं.

आम आदमी पार्टी के भीतर बढ़ते आंतरिक मतभेद और पार्टी नेतृत्व से असंतोष के कारण कई प्रमुख नेता और कार्यकर्ता पार्टी छोड़ चुके हैं. इनमें से कुछ नेता बीजेपी में शामिल हो गए हैं, जबकि कुछ ने अपनी राजनीतिक यात्रा को पूरी तरह से विराम दे दिया है. इन इस्तीफों ने पार्टी के भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं और यह देखना होगा कि अरविंद केजरीवाल पार्टी के भीतर हुए इन बदलावों के बाद अपने नेतृत्व को किस दिशा में ले जाते हैं.

केजरीवाल का भविष्य

अब कैलाश गहलोत के इस्तीफे के बाद अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व पर और भी सवाल उठ सकते हैं. पार्टी के अंदरूनी संकट गहराते जा रहे हैं, और इसके असर दिल्ली विधानसभा चुनावों और भविष्य में पार्टी की राजनीति पर भी पड़ सकता है. इससे पहले, कुमार विश्वास जैसे वरिष्ठ नेता भी केजरीवाल के खिलाफ खुलकर बोले थे और पार्टी के भीतर हो रहे भ्रष्टाचार को लेकर चिंता जताई थी.

कुल मिलाकर, आम आदमी पार्टी के लिए यह एक और कड़ी चुनौती साबित हो सकती है. अरविंद केजरीवाल को अब अपने नेतृत्व की मजबूती को साबित करने का बड़ा मौका मिलेगा, खासकर जब उनके कई पुराने साथी पार्टी छोड़ चुके हैं और आरोपों की झड़ी लगा चुके हैं. अब यह देखना होगा कि पार्टी अपने विश्वास खो चुके नेताओं को कैसे मनाती है और किस दिशा में राजनीतिक समीकरण बदलते हैं.

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