अब पुलिस रिकॉर्ड से हटेगा जाति का नाम, इलाहाबाद हाई कोर्ट का बड़ा फैसला

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पुलिस के उस पुराने तरीके पर सवाल उठाया, जिसमें अभियुक्तों की जाति को दस्तावेजों में दर्ज किया जाता है. जस्टिस विनोद दिवाकर ने कहा, "ये पुरानी प्रथा संवैधानिक नैतिकता के खिलाफ है. जाति का उल्लेख करना कानूनी भूल है, जो भारत के लोकतंत्र को कमजोर करता है."
Allahabad High Court

इलाहाबाद हाई कोर्ट

Allahabad High Court: साल 2023 में उत्तर प्रदेश के जसवंतनगर थाना क्षेत्र में पुलिस ने एक स्कॉर्पियो गाड़ी को रोका, तो उसमें सवार प्रवीण छेत्री और उनके तीन साथियों के पास से 106 बोतल व्हिस्की बरामद हुई. चौंकाने वाली बात ये कि शराब हरियाणा में बिक्री के लिए थी और गाड़ी की नंबर प्लेट भी फर्जी निकली. पुलिस ने पूछताछ की, तो एक और गाड़ी पकड़ी गई, जिसमें 254 बोतलें और मिलीं. इस दूसरी गाड़ी में पकड़े गए लोगों को पुलिस ने पंजाबी पाराशर और ब्राह्मण जाति के रूप में दर्ज किया. प्रवीण छेत्री को इस तस्करी गैंग का सरगना बताया गया. वह हरियाणा से बिहार तक शराब की तस्करी कर रहा था.

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई. इस मामले ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक नया रंग लिया. प्रवीण छेत्री ने अपनी गिरफ्तारी और कार्यवाही रद्द करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की. याचिका तो खारिज हो गई, लेकिन कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया.

पुराने तरीके पर हाई कोर्ट ने उठाया सवाल

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पुलिस के उस पुराने तरीके पर सवाल उठाया, जिसमें अभियुक्तों की जाति को दस्तावेजों में दर्ज किया जाता है. जस्टिस विनोद दिवाकर ने कहा, “ये पुरानी प्रथा संवैधानिक नैतिकता के खिलाफ है. जाति का उल्लेख करना कानूनी भूल है, जो भारत के लोकतंत्र को कमजोर करता है.”

कोर्ट ने इसे तुरंत खत्म करने का आदेश दिया. अब पुलिस के किसी भी दस्तावेज, चाहे वह गिरफ्तारी मेमो हो, अपराध विवरण फॉर्म हो या फाइनल रिपोर्ट…अभियुक्त, गवाह या मुखबिर की जाति नहीं लिखी जाएगी. इतना ही नहीं, कोर्ट ने निर्देश दिया कि दस्तावेजों में पिता या पति के साथ माता का नाम भी जोड़ा जाए.

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अब क्या होगा?

थानों में बदलाव: सभी थानों के नोटिस बोर्ड से अभियुक्तों के नाम के साथ जाति का कॉलम हटेगा.
जातिगत साइनबोर्ड पर रोक: सड़कों पर या गाड़ियों पर जाति का महिमामंडन करने वाले नारे या साइनबोर्ड तुरंत हटाए जाएंगे.
सोशल मीडिया पर नजर: इंटरनेट पर जाति आधारित घृणा या महिमामंडन करने वाली सामग्री पर कार्रवाई के लिए आईटी नियमों को और सख्त किया जाए. इसके लिए एक निगरानी तंत्र बनेगा.
वाहनों पर प्रतिबंध: केंद्रीय मोटर वाहन नियमों में बदलाव कर गाड़ियों पर जाति से जुड़े नारे या पहचान पर पूरी तरह रोक लगेगी.

इतना ही नहीं, कोर्ट ने डीजीपी की भी खिंचाई की और कहा कि आधुनिक तकनीक के दौर में जब आधार कार्ड, गरप्रिंट और मोबाइल कैमरे जैसे साधन उपलब्ध हैं, तब जाति पर निर्भरता एक ‘कानूनी भ्रांति’ है. कोर्ट ने आदेश की कॉपी यूपी के मुख्य सचिव, केंद्रीय गृह मंत्रालय, परिवहन मंत्रालय और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को भेजने का निर्देश दिया ताकि इस फैसले का पालन तुरंत हो.

क्या है इस फैसले का मतलब?

ये फैसला न सिर्फ पुलिस कार्यप्रणाली में बदलाव लाएगा, बल्कि समाज में जातिगत भेदभाव को कम करने की दिशा में भी एक बड़ा कदम है. अब सवाल ये है कि क्या ये आदेश वाकई जमीन पर उतर पाएगा? क्या पुलिस और समाज इस बदलाव को अपनाएंगे?

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