बिहार में BJP का ‘पसमांदा प्रेम’…क्या बदलेगी मुस्लिम राजनीति की तस्वीर?

बीजेपी लंबे समय से मुस्लिम वोटों से दूर रही है. लेकिन बिहार में मुस्लिम आबादी अच्छी खासी है (लगभग 17.7%). 1 बीजेपी जानती है कि अगर 2025 के बिहार विधानसभा चुनावों में बड़ी जीत हासिल करनी है, तो उसे नए वोट बैंक तलाशने होंगे. पसमांदा समाज इसी कड़ी का हिस्सा है.  
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बिहार में बीजेपी का पसमांदा सम्मेलन

Bihar Politics: बिहार की राजनीति में आजकल एक नई खिचड़ी पक रही है और ये खिचड़ी है बीजेपी की पसमांदा मुसलमानों (Pasmanda Muslim) को साधने की कोशिश. जी हां, जिस बीजेपी को कभी मुस्लिम विरोधी माना जाता था, वो अब पसमांदा समाज पर डोरे डाल रही है. आखिर क्या है ये पसमांदा प्रेम और क्या ये वाकई बिहार की मुस्लिम राजनीति का गेम बदल सकता है? आइए, इस राजनीति मूव को गहराई से समझते हैं.

कौन हैं ये ‘पसमांदा’ और BJP को इनकी याद क्यों आई?

सबसे पहले समझते हैं कि ये ‘पसमांदा’ कौन होते हैं. पसमांदा एक फारसी शब्द है, जिसका मतलब है ‘जो पीछे छूट गए’. मुस्लिम समाज में ये वो लोग हैं, जो ऐतिहासिक रूप से दलित और पिछड़े हिंदू समुदायों से इस्लाम में आए. इन्हें मुस्लिम समाज के भीतर भी अशराफ (ऊंची जाति के मुस्लिम, जैसे शेख, सैयद, पठान) मुसलमानों ने अक्सर हाशिये पर रखा. बिहार की कुल मुस्लिम आबादी का करीब 70-80% हिस्सा इन्हीं पसमांदा समुदायों से आता है, जो कुल आबादी का लगभग 10% हैं. तो अब सवाल ये कि बीजेपी को अचानक इनकी याद क्यों आई? दरअसल, इसके पीछे कई बड़ी वजहें हैं.

वोट बैंक का नया ठिकाना

बीजेपी लंबे समय से मुस्लिम वोटों से दूर रही है. लेकिन बिहार में मुस्लिम आबादी अच्छी खासी है (लगभग 17.7%). 1 बीजेपी जानती है कि अगर 2025 के बिहार विधानसभा चुनावों में बड़ी जीत हासिल करनी है, तो उसे नए वोट बैंक तलाशने होंगे. पसमांदा समाज इसी कड़ी का हिस्सा है.  

सोशल इंजीनियरिंग का मास्टरस्ट्रोक

जैसे बीजेपी ने हिंदू समाज में दलितों और पिछड़ों को जोड़कर अपनी ताकत बढ़ाई है, उसी तर्ज पर वो अब मुस्लिम समाज के ओबीसी वर्ग को अपने साथ लाना चाहती है. खुद पीएम मोदी ने भी पसमांदा मुसलमानों पर ध्यान देने की बात कही है.

विपक्ष की ‘अशराफ’ निर्भरता

बीजेपी का मानना है कि लालू यादव की आरजेडी और नीतीश कुमार की जेडीयू जैसे दल सिर्फ अशराफ मुसलमानों पर ही ध्यान देते रहे हैं और पसमांदा समुदायों की उपेक्षा की है. बीजेपी इसी खाई को भरने की कोशिश कर रही है, खुद को पसमांदा समाज का सच्चा हितैषी बताकर.

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बीजेपी की नई ‘जुगाड़’ पसमांदा सम्मेलन?

बीजेपी बिहार में पसमांदा सम्मेलन आयोजित करने जा रही है. इन सम्मेलनों के जरिए बीजेपी सीधे पसमांदा समुदाय से जुड़ने की कोशिश कर रही है. उनके मुद्दों को सुन रही है और उन्हें केंद्र सरकार की तमाम योजनाओं के बारे में बता रही है. बीजेपी ये संदेश देना चाहती है कि वो किसी खास समुदाय के खिलाफ नहीं है, बल्कि ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के नारे पर काम करती है.

इन सम्मेलनों का मकसद सिर्फ वोट मांगना नहीं है, बल्कि पसमांदा समाज से नए नेता तैयार करना और उन्हें पार्टी में जगह देना भी है. बीजेपी दिखा रही है कि वो पसमांदा समाज को सिर्फ एक वोट बैंक नहीं, बल्कि सम्मान और प्रतिनिधित्व भी देना चाहती है.

चुनौतियां भी कम नहीं!

हालांकि, बीजेपी की ये राह इतनी आसान भी नहीं है. कई चुनौतियां उसके सामने खड़ी हैं. दरअसल, मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा हिस्सा दशकों से बीजेपी से दूरी बनाए हुए है. इस गहरे अविश्वास को तोड़ना बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. आरजेडी और जेडीयू जैसे दल भी पसमांदा समाज में बीजेपी की बढ़ती पैठ को रोकने की पूरी कोशिश करेंगे. वे बीजेपी की इस रणनीति को ‘छलावा’ भी बता सकते हैं. पसमांदा समाज भी खुद कई उप-जातियों में बंटा हुआ है. इन सभी को एक साथ लाना बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा.

वहीं, बिहार विधानसभा में पसमांदा समुदाय का प्रतिनिधित्व अभी भी बहुत कम है. बीजेपी को अगर वाकई इनका दिल जीतना है, तो उन्हें चुनावों में उचित प्रतिनिधित्व देना होगा. फिर भी, अगर बीजेपी पसमांदा समुदायों के असली मुद्दों पर ध्यान देती है और उन्हें सही मायने में आगे बढ़ने का मौका देती है, तो ये बिहार की राजनीति में एक बड़ा बदलाव ला सकता है. पसमांदा मुस्लिम अब एक महत्वपूर्ण राजनीतिक ताकत बनकर उभर रहे हैं और सभी दलों की नजरें इन पर टिकी हुई हैं.

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