“तुम हिंदुस्तान के नहीं हो क्या…”, मराठी बोलने पर किया मजबूर तो महिला ने सिखाया सबक, भाग खड़े हुए भाषा के ठेकेदार!
महाराष्ट्र में भाषा को लेकर फिर से बवाल!
Maharashtra Language Politics: सपनों का शहर मुंबई आजकल एक नए विवाद से जूझ रहा है, वो है भाषा का झगड़ा! यह सिर्फ बोलने-चालने की बात नहीं, बल्कि अपनी पहचान और राजनीति का मुद्दा बन गया है. हाल ही में घाटकोपर में एक ऐसा ही मामला सामने आया, जिसने सबको चौंका दिया.
जब हिंदी बोलने पर महिला से की गई बदतमीजी
संजीरा देवी नाम की एक महिला अपने घर के सामने खड़ी थी, तभी कुछ लोगों ने उन्हें घेर लिया और मराठी में बात करने का दबाव बनाने लगे. संजीरा ने जब मना किया और थोड़ी जगह मांगी, तो बहस और बढ़ गई. वीडियो में एक आदमी चिल्लाता हुआ सुनाई दे रहा है, “मराठी बोलो, ये महाराष्ट्र है.”
लेकिन संजीरा भी पीछे हटने वाली नहीं थीं. उन्होंने तुरंत जवाब दिया, “तुम हिंदी बोलो, तुम हिंदुस्तान के नहीं हो क्या? मैं मराठी में नहीं बोलूंगी. तुम लोग हिंदी क्यों नहीं बोलते?” यह बहस इतनी तीखी हो गई कि वहां भीड़ जमा हो गई. हालांकि, पुलिस के आने से पहले ही हमलावर वहां से खिसक लिए.
राज ठाकरे और मनसे का ‘मराठी अभियान’
इस भाषा विवाद में राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) सबसे आगे है. उनकी पार्टी अक्सर दूसरे राज्यों से आए लोगों को मराठी बोलने के लिए धमकाती रही है. उनका मानना है कि महाराष्ट्र में रहने वाले हर किसी को स्थानीय भाषा बोलनी चाहिए.
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ट्रेन में भी ‘भाषा युद्ध’
यह कोई पहला मामला नहीं है. कुछ समय पहले एक ट्रेन में भी ऐसा ही झगड़ा देखने को मिला था. भीड़ भरी ट्रेन में सीट को लेकर शुरू हुआ विवाद तब और बढ़ गया जब एक महिला ने दूसरी महिला को मराठी न बोलने पर फटकार लगा दी. सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो में, वह महिला साफ कहती सुनाई दे रही है कि जो लोग मुंबई में रहना चाहते हैं, उन्हें मराठी बोलनी होगी, नहीं तो वे यहां से चले जाएं. देखते ही देखते, यह बहस व्यक्तिगत लड़ाई से बढ़कर भाषा और पहचान के बड़े टकराव में बदल गई. कई आवाजें एक साथ उठने लगीं, “मराठी बोलो या बाहर निकलो.”
क्या है इस भाषा विवाद का भविष्य?
यह विवाद अब केवल भाषाई पहचान तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसने एक राजनीतिक रंग ले लिया है. एक तरफ जहां कुछ संगठन मराठी भाषा और संस्कृति को बचाने की बात कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ गैर-मराठी भाषी लोग अपनी अभिव्यक्ति की आजादी और राष्ट्रीय एकता का हवाला दे रहे हैं. मुंबई अब इस भाषा विवाद के भंवर में फंसा हुआ है. देखना होगा कि यह मुद्दा आने वाले समय में क्या मोड़ लेता है.