बिहार में ‘BIG B’ बनकर ही रहना चाहते हैं नीतीश, ‘अगड़ी जाति आयोग’ का गठन कर छोड़ दिया ‘तीर’, क्या विधानसभा चुनाव में बदलेगा समीकरण?
बिहार के सीएम नीतीश कुमार
Bihar Politics: बिहार की सियासत में एक बार फिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने बड़ा दांव खेला है. 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने अगड़ी जातियों के लिए ‘उच्च जाति विकास आयोग’ (Upper Caste Commission) के गठन की घोषणा कर दी है. बीजेपी नेता महाचंद्र प्रसाद सिंह को इसका अध्यक्ष और जेडीयू के प्रवक्ता राजीव रंजन को उपाध्यक्ष बनाया गया है. इस आयोग का कार्यकाल 3 साल होगा. नीतीश का यह कदम बिहार की जातिगत राजनीति में नया रंग भर सकता है. लेकिन सवाल यह है कि आखिर नीतीश को इस दांव से क्या मिलेगा? क्या यह मास्टरस्ट्रोक बिहार की सियासत में बाजी पलट देगा? आइए सबकुछ विस्तार से जानते हैं.
बिहार का जातीय गणित
बिहार की राजनीति में जाति हमेशा से रीढ़ की हड्डी रही है. 2023 की जातिगत जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) की आबादी 36.01% है, जो सबसे बड़ा समूह है. इसके बाद अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) 27.12%, जिसमें यादव (14.27%), कोईरी (4.21%), और नीतीश की अपनी कुर्मी जाति (2.88%) शामिल हैं. अनुसूचित जाति (SC) 19.65% और अनुसूचित जनजाति (ST) 1.68% है. अगड़ी जातियां, जैसे ब्राह्मण (3.65%), राजपूत (3.45%), और अन्य सवर्ण, कुल मिलाकर करीब 10-12% आबादी बनाती हैं. मुस्लिम आबादी भी 17.71% है.
नीतीश कुमार ने हमेशा EBC, OBC, और महादलितों के वोट बैंक को साधने की रणनीति अपनाई है. उनका ‘लव-कुश’ (कुर्मी-कोईरी) समीकरण और EBC-महादलित गठजोड़ उन्हें सत्ता तक पहुंचाता रहा है. लेकिन अगड़ी जातियां, जो परंपरागत रूप से बीजेपी का वोट बैंक रही हैं, नीतीश के लिए हमेशा चुनौती रहीं.
अगड़ी जातियों को लुभाने की कोशिश
नीतीश का यह आयोग गठन कोई नया प्रयोग नहीं है. पहले भी बिहार में सवर्ण आयोग था, जिसे अब पुनर्गठित किया गया है. इस कदम को नीतीश की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है, जिसमें वे अगड़ी जातियों को यह संदेश देना चाहते हैं कि उनकी सरकार सिर्फ पिछड़ों की नहीं, बल्कि सवर्णों की भी हितैषी है. यह खासकर इसलिए अहम है क्योंकि बिहार में अगड़ी जातियां, भले ही आबादी में कम हों, लेकिन कई विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाती हैं. खासकर राजपूत और ब्राह्मण वोटर 30-35 सीटों पर प्रभाव डाल सकते हैं.
नीतीश ने हाल ही में अल्पसंख्यक आयोग का भी पुनर्गठन किया, जिसके अध्यक्ष जेडीयू के पूर्व सांसद गुलाम रसूल बल्यावी बने. यह दिखाता है कि नीतीश हर वर्ग को साधने की कोशिश में हैं. सवर्ण आयोग का गठन बीजेपी के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाने की रणनीति हो सकती है, क्योंकि बीजेपी और जेडीयू का गठबंधन होने के बावजूद, नीतीश अपनी स्वतंत्र छवि बनाए रखना चाहते हैं.
एक बात और है. दरअसल, 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने 125 सीटें जीतकर बहुमत हासिल किया, जिसमें बीजेपी को 74, जेडीयू को 43, और अन्य सहयोगियों को शेष सीटें मिलीं. महागठबंधन ने 110 सीटें जीतीं, जिसमें राजद 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी, जबकि कांग्रेस को 19 और वाम दलों को 16 सीटें मिलीं. कम सीटें आने के बाद भी बीजेपी ने नीतीश को सीएम की कुर्सी ऑफर कर दी, लेकिन नीतीश के मन में सालों से यह बात खटक रही है कि बिहार में उनकी हैसियत अब ‘बीग बी’ से ‘छोटे भाई’ की होती जा रही है.
प्रशांत किशोर का फैक्टर
2025 के चुनाव में नीतीश के सामने एक नई चुनौती है, प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी. प्रशांत किशोर पहले नीतीश के रणनीतिकार थे, अब उनकी राह में कांटा बन रहे हैं. किशोर ने ‘BRDK फॉर्मूला’ (ब्राह्मण, राजपूत, दलित, कुर्मी) अपनाया है, जिसमें उन्होंने अगड़ी जातियों (ब्राह्मण-राजपूत) और दलितों को साधने की कोशिश की है. उनकी कोर कमेटी में 23 अगड़ी जाति के नेता और 28 EBC नेता शामिल हैं, जो नीतीश के वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश है.
प्रशांत किशोर ने नीतीश पर जातिगत राजनीति करने का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि नीतीश ने तांती-तंतवा जैसी जातियों को SC का दर्जा देने का वादा किया, लेकिन उसे लागू नहीं किया. किशोर की रणनीति विकास और रोजगार जैसे मुद्दों को उठाकर जातिगत राजनीति को कमजोर करने की है, लेकिन उनकी पार्टी भी अंततः जातीय समीकरणों पर ही निर्भर दिख रही है.
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नीतीश को क्या फायदा?
सवर्ण आयोग के जरिए नीतीश बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगाना चाहते हैं. अगर अगड़ी जातियां यह महसूस करेंगी कि उनकी बात सुनी जा रही है, तो वे जेडीयू की ओर झुक सकती हैं. इसके इतर नीतीश ने EBC, OBC, और अल्पसंख्यकों को पहले ही साध रखा है. अब सवर्णों को लुभाकर वे हर वर्ग को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं, किशोर की जन सुराज पार्टी सवर्ण और EBC वोटों पर नजर गड़ाए है. नीतीश का यह कदम किशोर की रणनीति को कमजोर कर सकता है. बीजेपी के साथ गठबंधन में नीतीश अपनी सियासी जमीन मजबूत करना चाहते हैं. सवर्ण आयोग का गठन बीजेपी को यह संदेश देता है कि नीतीश बिना उनकी मदद के भी सवर्ण वोट हासिल कर सकते हैं.
2025 के चुनाव पर असर
नीतीश का यह कदम बिहार की सियासत में हलचल मचा सकता है. अगर सवर्ण आयोग कोई ठोस कदम उठाता है, जैसे आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों के लिए योजनाएं, तो नीतीश को अगड़ी जातियों का समर्थन मिल सकता है. लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं हैं. सवर्णों की परंपरागत पार्टी रही बीजेपी इसे अपने वोट बैंक पर हमले के तौर पर देख सकती है. वहीं, प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी अगर विकास के मुद्दे को प्रभावी ढंग से उठाती है, तो नीतीश के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं.
क्या कहते हैं आंकड़े?
बिहार में 50% आरक्षण की सीमा पहले ही लागू है (EBC: 18%, OBC: 12%, SC: 16%, ST: 1%, EWS: 10%). सवर्ण आयोग अगर आरक्षण या कल्याणकारी योजनाओं की मांग उठाता है, तो यह सियासी तौर पर बड़ा मुद्दा बन सकता है. वहीं प्रशांत किशोर की पार्टी अगर 243 सीटों पर चुनाव लड़ती है और 40 सीटों पर महिलाओं को टिकट देती है, तो वह वोट कटवा की भूमिका निभा सकती है, जिसका नुकसान नीतीश और बीजेपी दोनों को हो सकता है. नीतीश ने 2025 में 220+ सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. सवर्ण आयोग का गठन इस लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में एक कदम हो सकता है.
नीतीश की चाल या मजबूरी?
नीतीश कुमार का सवर्ण आयोग गठन एक सोची-समझी चाल है, जो बिहार की जटिल जातीय सियासत में उनके दबदबे को बनाए रखने की कोशिश है. लेकिन प्रशांत किशोर जैसे नए खिलाड़ी और बीजेपी की अपनी रणनीति इस दांव को कितना कामयाब होने देगी, यह 2025 के चुनावी नतीजे ही बताएंगे. फिलहाल नीतीश ने साफ कर दिया है कि वे हर वर्ग को साधकर सत्ता की कुर्सी पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं.