“भाई बैठो, माला नहीं पहनना है…”, ‘लालू स्टाइल’ पॉलिटिक्स कर रहे हैं प्रशांत किशोर, निशाने पर कौन?

सियासी निशाने पर तेजस्वी या नीतीश? PK सिर्फ जनता से जुड़ नहीं रहे, बल्कि अपने अंदाज़ से विरोधियों पर निशाना भी साध रहे हैं. लालू यादव की तरह PK भी मंच पर मज़ाक करते हैं, व्यंग्य कसते हैं और पूरे आत्मविश्वास से भरे रहते हैं. जहां लालू अपने विरोधियों को तीखे बंजों और हास्य के ज़रिए घेरते थे, वहीं PK खुलकर परिवारवाद पर हमला करते हैं.
Prashant Kishor

जन सुराज वाले प्रशांत किशोर

Bihar Politics: बिहार की राजनीति में आजकल एक नया जादू चल रहा है. एक तरफ हैं प्रशांत किशोर (PK), जो सीधे जनता के बीच उतरकर अपनी बात कह रहे हैं. दूसरी तरफ, उनकी शैली में लालू प्रसाद यादव की दशकों पुरानी ‘खाटी पॉलिटिक्स’ की झलक साफ दिख रही है. सवाल ये नहीं कि PK लालू की राह पर हैं, बल्कि ये है कि उनके इस नए पैंतरे से बिहार की सियासत में कौन सा बड़ा खिलाड़ी अब निशाने पर है?

“भाई बैठो, माला नहीं पहनना है…”

आपने शायद PK के भाषणों के कुछ वीडियो देखे होंगे, जहां वो भीड़ के बीच बिल्कुल आम आदमी की तरह घुल-मिल जाते हैं. हाल ही में समस्तीपुर की एक रैली में, चिलचिलाती धूप में जब कुछ नेता उन्हें माला पहनाने मंच पर आए, तो PK ने तुरंत कहा, “भाई बैठो, माला नहीं पहनना है… बैठिइए लोग गर्मी में बैठे हैं और आपको माला पहनाने की पड़ी है.”

प्रशांत किशोर ने लालू से सीखी यह कला!

आज से 15-20 साल पहले लालू यादव भी इसी तरह जनता से सीधा संवाद करते थे. उनके देसी ठाठ, ठेठ बिहारी बोली, हास्य और चुटकुले उन्हें जनता का अपना नेता बना देते थे. लालू अपनी सभाओं में गाय चराने वाले, भैंस चराने वाले और ताड़ी उतारने वाले लोगों की बात करते थे. PK भी यही कर रहे हैं. वो भी आम बिहारी बोली का इस्तेमाल करते हैं, जिससे जनता को लगता है कि वो उन्हीं में से एक हैं.

ये सिर्फ बोलने का तरीका नहीं है, बल्कि जनता से एक गहरा रिश्ता बनाने का तरीका है. लालू ने 90 के दशक में सामाजिक न्याय और पिछड़े वर्गों के उत्थान की बात करके एक बड़ा जन-आधार बनाया था. वहीं, PK अपनी जन सुराज यात्रा में शिक्षा, रोज़गार और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर ज़ोर दे रहे हैं, जो आज भी बिहार की जनता की सबसे बड़ी समस्याएं हैं. दोनों ही नेता जनता की नब्ज़ पकड़कर मुद्दों को हवा देने में माहिर हैं.

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सियासी निशाने पर तेजस्वी या नीतीश?

PK सिर्फ जनता से जुड़ नहीं रहे, बल्कि अपने अंदाज़ से विरोधियों पर निशाना भी साध रहे हैं. लालू यादव की तरह PK भी मंच पर मज़ाक करते हैं, व्यंग्य कसते हैं और पूरे आत्मविश्वास से भरे रहते हैं. जहां लालू अपने विरोधियों को तीखे बंजों और हास्य के ज़रिए घेरते थे, वहीं PK खुलकर परिवारवाद पर हमला करते हैं. वो न सिर्फ लालू को घेरते हैं, बल्कि उनके बेटे तेजस्वी यादव को भी नहीं छोड़ते. PK तो यहां तक कह चुके हैं कि अगर लालू यादव अपने परिवार से बाहर किसी को मुख्यमंत्री बनाएं, तो वो उनका समर्थन करेंगे.

क्या PK बनेंगे अगले लालू?

लालू यादव का राजनीतिक आधार भले ही जातिगत समीकरणों और परिवारवाद पर टिका था, लेकिन PK सुशासन और गैर-परिवारवादी राजनीति की बात करते हैं. फिर भी, दोनों नेताओं की जनता को लुभाने की कला और रणनीतिक चतुराई उन्हें बिहार की सियासत में खास बनाती है. आने वाले दिनों में अगर प्रशांत किशोर का जनता से जुड़ने का यह अंदाज़ उन्हें लालू यादव की तरह ही लोकप्रिय बना दे, तो इसमें कोई हैरानी नहीं होगी.

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