“अगर पत्नी की कमाई पर निर्भर है पति तो मिलेगा पूरा मुआवजा…”, Supreme Court का बड़ा फैसला, जानें क्या है पूरा मामला

कोर्ट ने बिल्कुल साफ और दो टूक बात कही. कोर्ट ने कहा कि सिर्फ ये कहना कि पति 40 साल का है और सक्षम दिखता है, ये मुआवजा न देने का बहाना नहीं बन सकता. अगर पति की अपनी कमाई का कोई सबूत नहीं है, तो माना जाएगा कि वो पत्नी की कमाई पर निर्भर था. कोर्ट ने कहा कि आज के जमाने में परिवार अलग-अलग तरह से चलते हैं.
Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट

Supreme Court ने एक ऐसा फैसला सुनाया है, जो हर उस परिवार के लिए बड़ी राहत लेकर आया है, जहां पत्नी कमाती है और पति उसकी कमाई पर निर्भर है. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर पत्नी की सड़क हादसे में मौत हो जाए और पति उसकी कमाई पर निर्भर हो, तो उसे भी मुआवजा मिलेगा. हां, भले ही पति जवान, तंदुरुस्त और सक्षम क्यों न दिखे. लेकिन इसमें एक ट्विस्ट है. पति की अपनी कमाई का कोई सबूत नहीं होना चाहिए. आइये क्या है पूरा मामला विस्तार से समझते हैं.

कहानी की शुरुआत

बात 22 फरवरी 2015 की है. एक महिला अपने किसी साथी के साथ बाइक पर पीछे बैठकर कहीं जा रही थी. अचानक हादसा हुआ, बाइक अनियंत्रित हुई और महिला नीचे गिर पड़ी. चोट इतनी गहरी थी कि दो दिन बाद अस्पताल में उसने दम तोड़ दिया. महिला के पीछे छूट गए उसके पति और दो बच्चे. अब इनका क्या? परिवार ने मुआवजा मांगा, क्योंकि महिला ही घर की कमाई का जरिया थी.

निचली अदालत का फैसला

मामला मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) में गया. वहां जज साहब ने कहा, “बच्चों को तो मुआवजा मिलेगा, क्योंकि वो मां की कमाई पर निर्भर थे. लेकिन पति? अरे, वो तो 40 साल का सक्षम मर्द है. वो क्यों मुआवजा ले?” यानी पति को आश्रित मानने से साफ इनकार कर दिया गया. कंपनी ने भी इस बात का फायदा उठाया और कहा, “हां, पति को क्यों देना? वो तो खुद कमा सकता है.” बस, मामला और उलझ गया.

हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट की एंट्री

पति और बच्चों ने हार नहीं मानी. मामला हाई कोर्ट पहुंचा, लेकिन वहां भी बात आगे नहीं बढ़ी. आखिरकार, यह केस सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर जा पहुंचा. 29 अप्रैल 2025 को जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने इस मामले को सुना और यहीं से आया वो फैसला, जिसने सबकी सोच बदल दी.

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सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

कोर्ट ने बिल्कुल साफ और दो टूक बात कही. कोर्ट ने कहा कि सिर्फ ये कहना कि पति 40 साल का है और सक्षम दिखता है, ये मुआवजा न देने का बहाना नहीं बन सकता. अगर पति की अपनी कमाई का कोई सबूत नहीं है, तो माना जाएगा कि वो पत्नी की कमाई पर निर्भर था. कोर्ट ने कहा कि आज के जमाने में परिवार अलग-अलग तरह से चलते हैं. अगर पत्नी कमाती है और पति घर संभालता है या उसकी कमाई पर निर्भर है, तो उसे मुआवजा पाने का पूरा हक है.

सुप्रीम कोर्ट ने मोटर वाहन अधिनियम (Motor Vehicle Act) की बात की. इसमें “कानूनी प्रतिनिधि” (Legal Representative) का मतलब सिर्फ बच्चे या बुजुर्ग नहीं, बल्कि वो हर शख्स है, जो मृतक की कमाई पर निर्भर था. इसकी व्याख्या को संकीर्ण नहीं करना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने पति और दोनों बच्चों को आश्रित मानते हुए कुल 17 लाख 84 हजार रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया.

क्यों है ये फैसला इतना खास?

ये फैसला पुरानी सोच को तोड़ता है कि मर्द हमेशा कमाने वाला ही होता है. आज कई घरों में पत्नी ब्रेडविनर होती है, और पति घर या दूसरी जिम्मेदारियां संभालता है. ऐसे में ये फैसला उनके लिए बड़ा सहारा है. सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी कहा था कि मुआवजा हर उस शख्स को मिलना चाहिए, जो मृतक पर आर्थिक रूप से निर्भर था. ये फैसला उसी कड़ी को और मजबूत करता है. अब निचली अदालतों को भी इस नजरिए से सोचना होगा.

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