‘शांत’ रामचंद्र राव का राजतिलक, ‘फायर ब्रांड’ टी राजा सिंह का विद्रोह…क्या बदल जाएगी तेलंगाना की सियासी बिसात?
तेलंगाना बीजेपी में सबकुछ ठीक नहीं...
Telangana Politics: तेलंगाना की सियासत में इन दिनों कुछ तो बड़ा पक रहा है. बीजेपी में अचानक एक तूफान आया है, जिसने सबको चौंका दिया है. ख़बर है कि तेलंगाना बीजेपी को अब एक नया बॉस मिलने वाला है – एन रामचंद्र राव. और इस खबर के आते ही, एक और खबर ने सियासी गलियारों में खलबली मचा दी है. दरअसल, बीजेपी के फायर ब्रांड नेता टी राजा सिंह ने पार्टी को अलविदा कह दिया है.
कौन हैं एन रामचंद्र राव?
तो सबसे पहले बात नए ‘कप्तान’ की. बताया जा रहा है कि बीजेपी आलाकमान ने तेलंगाना की कमान अब एन रामचंद्र राव को सौंपने का मन बना लिया है. लेकिन, सवाल ये है कि राव ही क्यों? एन रामचंद्र राव कोई नए खिलाड़ी नहीं हैं. वह बीजेपी के पुराने और भरोसेमंद सिपाही हैं. उन्होंने अविभाजित आंध्र प्रदेश में भी बीजेपी के महासचिव के तौर पर काम किया है. तेलंगाना विधान परिषद के सदस्य भी रहे हैं और पार्टी के सदस्यता अभियान की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं. यानी, संगठन की रग-रग से वाकिफ हैं.
सबसे खास बात ये है कि रामचंद्र राव को उनके शांत और सधे हुए बयानों के लिए जाना जाता है. जब बीजेपी में अक्सर ‘धमाकेदार’ बयानों वाले नेता सुर्खियों में रहते हैं, रामचंद्र राव एक अलग छवि पेश करते हैं. इससे पार्टी एक अधिक गंभीर और जिम्मेदार चेहरा पेश कर सकेगी.
और हां, एक और बड़ी बात. रामचंद्र राव ब्राह्मण समुदाय से आते हैं. तेलंगाना में भले ही ब्राह्मण आबादी में कम हों, लेकिन समाज में उनका खासा प्रभाव है, खासकर शहरी और पढ़े-लिखे तबके में. संघ (RSS) का भी उन्हें पूरा सपोर्ट है. ऐसे में रामचंद्र राव की नियुक्ति बीजेपी की एक सोची-समझी चाल लगती है, शायद अब पार्टी ‘फायर ब्रांड’ वाली इमेज से बाहर निकलकर एक व्यापक आधार बनाने की सोच रही है.
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टी राजा सिंह का ‘जय सिया राम’
अब आते हैं उस खबर पर जिसने सबको हैरान कर दिया. जब नए अध्यक्ष का नाम सामने आया, तो खबर आई कि बीजेपी के कद्दावर नेता टी राजा सिंह ने अपनी नाराज़गी में पार्टी से इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने अपना इस्तीफा मौजूदा अध्यक्ष जी किशन रेड्डी को भेजा है.
टी राजा सिंह, ये नाम सुनते ही हैदराबाद के लोग एक खास छवि सोच लेते हैं – फायर ब्रांड हिंदू नेता, जो अपने विवादास्पद बयानों और ओवैसी बंधुओं के खिलाफ अपनी जुबानी जंग के लिए मशहूर हैं. हैदराबाद और उसके आसपास टी राजा सिंह की अपनी एक अलग पहचान है. वह तेलंगाना के प्रवासी लोगों के बड़े नेता माने जाते हैं और लोधी समाज से आते हैं, जो एक महत्वपूर्ण ओबीसी समुदाय है. वह अपनी तेज़ तर्रार बातों से एक खास वर्ग के हिंदुओं में काफी लोकप्रिय हैं. ओवैसी बंधुओं के गढ़ हैदराबाद में, वह बीजेपी की तरफ से सबसे बुलंद आवाज़ थे जो उन्हें चुनौती देते रहते थे.
टी राजा सिंह के जाने से बीजेपी को कितना बड़ा झटका लगा?
अब सवाल ये है कि टी राजा सिंह के जाने से बीजेपी को कितना नुकसान हो सकता है? देखिए, नुकसान तो होगा, और अच्छा-खासा होगा. टी राजा सिंह के साथ प्रवासी और लोधी समाज का एक बड़ा वोट बैंक जुड़ा हुआ था. उनके जाने से ये वोट बैंक छिटक सकता है. बीजेपी को अब एक ऐसा चेहरा खोना पड़ेगा जो आक्रामक हिंदुत्व की बात करता था और एक खास वर्ग के मतदाताओं को खींचता था. ओवैसी के सामने अब बीजेपी की तरफ से उतनी आक्रामक आवाज़ शायद ही मिले, जितनी टी राजा सिंह की थी.
लेकिन, बीजेपी ने शायद ये जोखिम जानबूझकर उठाया है. हो सकता है कि वे अब ऐसे नेताओं से दूरी बनाना चाहते हों जिनके बयान पार्टी के लिए बार-बार विवाद खड़े करते हैं. वे एक ज्यादा ‘शालीन’ और ‘संगठनात्मक’ चेहरा पेश करना चाहते हैं.
तेलंगाना में सियासी समीकरणों की नई बिसात!
तेलंगाना की राजनीति हमेशा से जातिगत समीकरणों पर चलती रही है. रेड्डी और वेलमा जैसे समुदाय तो प्रभावशाली हैं ही, लेकिन ओबीसी, एससी और एसटी समुदाय भी महत्वपूर्ण वोट बैंक हैं. ब्राह्मणों का सामाजिक प्रभाव भी कम नहीं है.
अब एन रामचंद्र राव के आने और टी राजा सिंह के जाने से बीजेपी एक नई राह पर चलती दिख रही है. क्या वे इस बदलाव से तेलंगाना में अपना जनाधार बढ़ा पाएंगे या टी राजा सिंह के जाने से उन्हें ज्यादा नुकसान होगा? ये तो आने वाला समय ही बताएगा. लेकिन, एक बात तय है कि तेलंगाना की राजनीति अब और भी दिलचस्प होने वाली है.