क्यों ‘धर्म और ईश्वर’ को नहीं मानते थे शहीद-ए-आज़म? जानिए ‘Why I Am an Atheist’ में क्या कह गए भगत सिंह
भगत सिंह की किताब
Shaheed Diwas: “धर्म और ईश्वर…उन दोनों के बारे में मुझे कोई इंटरेस्ट नहीं है!” ये बयान 9 दशक पहले भगत सिंह ने दिया था, और अगर वह आज के दौर में होते, तो यकीन मानिए, यह लाइन सोशल मीडिया पर एक जबरदस्त मीम बन जाती. लेकिन यह सिर्फ एक बयान नहीं था, बल्कि एक गहरी सोच और समाज के प्रति उनके दृष्टिकोण को दर्शाता था.
भगत सिंह ने अपनी किताब ‘Why I Am an Atheist’ में इस लाइन के जरिए ‘धर्म और ईश्वर’ के बारे में अपनी सोच को स्पष्ट किया है. उन्होंने बिना किसी झिझक के कहा कि धर्म और ईश्वर के नाम पर जो बुराइयां समाज में फैल रही हैं, उन्हें अब और सहन नहीं किया जा सकता. उनका कहना था कि धर्म के नाम पर जो अंधविश्वास, शोषण और उत्पीड़न हो रहा है, वह समाज की प्रगति के खिलाफ है. यानी, उनके लिए यह सब कुछ ‘फेक न्यूज’ जैसा था, जो समाज को गुमराह करता है.
अब, यह बयान आज के युवाओं के लिए कितना रिलेटेबल है, सोचिए! हम सोशल मीडिया पर जितनी बार ‘फेक न्यूज’ और अफवाहों को लेकर शिकायतें करते हैं, भगत सिंह ने लगभग उसी तरह धर्म के बारे में अपनी राय रखी थी. अगर वह आज के दौर में होते, तो शायद वह ‘धर्म और ईश्वर’ को ‘FAKE NEWS’ टैग दे देते, क्योंकि उनके मुताबिक, ये दोनों ही बातें समाज में किसी क्रांतिकारी बदलाव की वजह नहीं बन सकतीं!
क्या चाहते थे भगत सिंह?
भगत सिंह के लिए धर्म का अस्तित्व समाज में सवाल खड़ा करने का था, न कि किसी मान्यता से जुड़ा हुआ. उनका कहना था, “अगर कोई इंसान, जो अंधविश्वास का पालन करता है, वह समाज को आगे नहीं ले जा सकता.” वह मानते थे कि धर्म के नाम पर जो गलत बातें फैलाई जाती हैं, उनका प्रभाव समाज पर बहुत नकारात्मक होता है. और सबसे अहम बात, उन्होंने अपने समय में देखा था कि धर्म का चश्मा पहनकर न तो देश को आज़ादी मिली, न ही समाज में समानता का कोई मजबूत आधार बना.
इंसानियत और तर्क को ज़्यादा महत्व देते थे भगत सिंह
भगत सिंह ने धार्मिक कर्मकांडों और पूजा-पाठ की बजाय इंसानियत और तर्क को ज़्यादा महत्व दिया. उनके लिए असली पूजा इंसानियत की थी, और हर इंसान को बिना किसी धार्मिक भेदभाव के समान अधिकार मिलना चाहिए. उनके अनुसार, धार्मिक पाखंड से बचना और तर्क से जीवन जीना एक स्वतंत्रता की तरह था. यही नहीं, भगत सिंह ने इस बात को भी स्पष्ट किया था कि उनका लक्ष्य केवल राजनीतिक आज़ादी नहीं था, बल्कि एक मानसिक और बौद्धिक आज़ादी भी थी.
अगर आज के दौर में भगत सिंह होते, तो यह सवाल उठाते कि क्या हम सच में धर्म के नाम पर अपने समाज को बांटने और नफरत फैलाने के बजाय इंसानियत की ओर बढ़ रहे हैं? क्या हम धर्म के नाम पर उत्पीड़न और असमानता को सहन कर रहे हैं, या फिर हमें अपने समाज में सच्ची समानता, भाईचारे और विज्ञान के आधार पर आगे बढ़ने की जरूरत है?
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आज भी क्यों प्रासंगिक है भगत सिंह की बातें?
आज के युवा जहां सोशल मीडिया पर हर छोटी बात पर अपनी राय देते हैं, वहीं भगत सिंह का यह विचार हमें यह सिखाता है कि धर्म और ईश्वर के बारे में सवाल उठाना कोई गलत बात नहीं है. यह समझना कि हमें बिना किसी धार्मिक प्रभाव के अपनी ज़िंदगी जीनी चाहिए, एक स्वतंत्रता का हिस्सा है. आज भी भगत सिंह का यह विचार युवा वर्ग के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकता है, खासकर जब समाज में धार्मिक कट्टरता और अंधविश्वास बढ़ रहे हों.
सवाल उठता है कि क्या हम भगत सिंह की तरह अपने समाज और दुनिया को समझने की कोशिश कर रहे हैं, या फिर हम भी धर्म के नाम पर झूठी शांति और संतोष में जी रहे हैं? भगत सिंह का यह बयान न केवल उनके समय के लिए बल्कि आज के समय में भी अत्यंत प्रासंगिक है. अगर हम उनके विचारों को ध्यान से पढ़ें, तो हमें समझ में आता है कि उनका उद्देश्य केवल आज़ादी नहीं, बल्कि एक ऐसे समाज का निर्माण था जहां तर्क, मानवता और समानता का महत्व हो.