लालू-तेजस्वी ने केजरीवाल को दिया था समर्थन…अब बिहार में बवाल काटने के मूड में राहुल गांधी, RJD के साथ ‘खेला’ कर सकती है कांग्रेस!

यह पूरी कहानी कुछ इस तरह की है. राजद को लगता है कि कांग्रेस अब उनका एहसान नहीं मानती. वही कांग्रेस, जो पहले राजद के साथ गठबंधन में फंसी हुई थी, अब अपने पंख फैलाने का प्लान बना रही है. इसे कुछ यूं समझिए जैसे लालू यादव और कांग्रेस के रिश्ते में अब दरारें आने लगी हैं.
Rahul Gandhi Tejashwi Yadav

राहुल गांधी और तेजस्वी यादव

Bihar Politics: क्या आपको लगता है कि कांग्रेस और राजद के बीच सब कुछ ठीक चल रहा है? तो जरा फिर से सोचिए! बिहार की राजनीति में एक तगड़ा सियासी उलटफेर होने वाला है. कांग्रेस ने राजद को इशारों-इशारों में बता दिया है कि अब उन्हें रिश्ते सुधारने की जरूरत नहीं है! और ये सिर्फ कुछ छोटे-मोटे बयान नहीं, बल्कि एक बड़े सियासी संदेश का हिस्सा है. तो आइए, बिहार के सियासी गलियारों में चल क्या रहा है, विस्तार से बताते हैं…

अब किसी की ‘पॉकेट पार्टी’ नहीं बनेगी कांग्रेस!

कांग्रेस ने अचानक से अखिलेश प्रसाद सिंह को बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटा दिया. सोचिए, यह वही अखिलेश प्रसाद हैं, जो लालू यादव के बहुत करीबी थे. यानी, सीधे शब्दों में कहें तो यह राजद के लिए एक जोरदार झटका है. अगर इसे सियासी भाषा में कहें तो ये कांग्रेस का ‘खुला’ युद्ध है, जो दिखा रहा है कि कांग्रेस अब किसी की ‘पॉकेट पार्टी’ नहीं बनेगी!

तो अब, कांग्रेस आलाकमान ने कृष्णा अल्लावुरु को बिहार का प्रभारी बना दिया. यही नहीं, कांग्रेस ने कन्हैया कुमार और पप्पू यादव जैसे नेताओं को भी सक्रिय कर दिया. अब, सोचिए! ये दोनों नेता राजद के लिए बिल्कुल भी पसंदीदा नहीं हैं, और कांग्रेस ने इन्हें सामने लाकर एक नई राजनीतिक चाल चली है. ये सब कुछ ऐसे लगता है जैसे कांग्रेस ने एक अलग और खुला मोर्चा बना दिया हो.

RJD की बढ़ी मुश्किलें

राजद के लिए यह सुनामी जैसा हो सकता है. अब, अगर कांग्रेस के नेताओं ने जातिगत जनगणना पर खुलकर बयान दिए, तो राजद को जवाब देना बहुत मुश्किल होगा. याद करिए, राहुल गांधी ने बिहार में जातिगत जनगणना को ‘फर्जी’ करार दिया था, जबकि तेजस्वी यादव उसी को अपने लिए राजनीति का हथियार बना रहे हैं. अगर कांग्रेस ने जातिगत जनगणना को लेकर बड़ा कदम उठाया, तो तेजस्वी यादव की राजनीतिक चमक पर असर पड़ सकता है.

कांग्रेस की क्या है रणनीति?

अब कांग्रेस दलित वोटों को लेकर अपनी स्थिति मजबूत कर रही है. वैसे तो बिहार में विधानसभा चुनाव होने में अभी लगभग 7 महीने बाकी हैं. लेकिन कांग्रेस पार्टी ने बड़ा कदम उठाते हुए अपना प्रदेश अध्यक्ष बदल दिया है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष पद से अखिलेश प्रसाद सिंह की छुट्टी कर दी गई है. सिंह की जगह प्रदेश अध्यक्ष की कमान राजेश कुमार को सौंपी गई है. इसे अब कांग्रेस का कास्ट कार्ड माना जा रहा है. राजेश कुमार औरंगाबाद के कुटुंबा से विधायक हैं. वह दलित समुदाय से आते हैं. इनके पिता बालेश्वर राम भी सांसद थे. राजेश अब तक दो बार 2015 और 2020 में विधायक निर्वाचित हो चुके हैं. वह कांग्रेस का युवा चेहरा माने जाते हैं और पार्टी के आयोजनों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते रहे हैं.

लालू-तेजस्वी को क्या डर?

लालू-तेजस्वी को अब डर सता रहा है कि अगर यह खामोशी खत्म हुई और कांग्रेस ने अपनी राजनीति की नई दिशा पकड़ी, तो बिहार विधानसभा चुनाव में राजद के पास कम सीटें आ सकती हैं. 2020 में जो हुआ, वह सबके सामने है. कांग्रेस सिर्फ 19 सीटें जीत पाई थीं. अब यह स्थिति सुधरनी चाहिए, नहीं तो राजद को हवा में उड़ते देखा जा सकता है!

एक खास बात ये है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनता दल ने आम आदमी पार्टी को नैतिक समर्थन दिया था. इसके अलावा, हर बार की तरह राजद ने दिल्ली से इस बार एक भी प्रत्याशी नहीं उतारा, क्योंकि उसे साबित करना था कि वह आम आदमी पार्टी के साथ है. यहां तक की तेजस्वी यादव ने अरविंद केजरीवाल के पक्ष में बयान भी दिया था. अब सियासत को करीब से जानने वाले लोगों का मानना है कि उन सभी बयानों का हिसाब किताब कांग्रेस बिहार में करने वाली है. बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह को हटाकर कांग्रेस आलाकमान ने ट्रेलर पहले ही दिखा दिया है. वहीं, कन्हैया कुमार को बिहार में तैनात कर और पप्पू यादव को शह देकर कांग्रेस ने इशारा तो कर ही दिया है.

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अखिलेश, कन्हैया और पप्पू की कहानी

यह पूरी कहानी कुछ इस तरह की है. राजद को लगता है कि कांग्रेस अब उनका एहसान नहीं मानती. वही कांग्रेस, जो पहले राजद के साथ गठबंधन में फंसी हुई थी, अब अपने पंख फैलाने का प्लान बना रही है. इसे कुछ यूं समझिए जैसे लालू यादव और कांग्रेस के रिश्ते में अब दरारें आने लगी हैं.

कांग्रेस ने कन्हैया कुमार और पप्पू यादव को एक्टिव किया है. तो ये दोनों नेता राजद के लिए मिस्ट्री बॉक्स की तरह हैं. एक तरफ कांग्रेस कन्हैया कुमार को बिहार में ‘नौकरी दो, पलायन रोको’ यात्रा के तहत मैदान में उतार रही है, दूसरी ओर पप्पू यादव को भी मैदान में उतार दिया है. दोनों का एक लक्ष्य है, राजद के गढ़ को चुनौती देना.

अब क्या होगा?

आने वाले वक्त में राजद और कांग्रेस के रिश्ते पर गंभीर असर पड़ने वाला है. अगर ये गठबंधन टूटता है, तो बिहार की सियासत में भूचाल आ सकता है. कांग्रेस अब नहीं चाहती कि वो सिर्फ एक ‘सहायक दल’ बने रहे. उसे अपनी पहचान और ताकत साबित करनी है. और वहीं, राजद को अब सोचना पड़ेगा कि कांग्रेस से इतना दूर जाना उनके लिए फायदेमंद है या नहीं.

बिहार की सियासत में यह एक बड़ा बदलाव है, और आने वाले समय में कांग्रेस और राजद के रिश्ते और भी तंग हो सकते हैं. कांग्रेस ने अपने नए सियासी कदम से राजद को चुनौती तो दे दी है.

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