70 सीटों की होड़, पटना से दिल्ली तक तोड़-जोड़…इस बार ‘छोटे भाई’ की भूमिका के लिए तैयार नहीं कांग्रेस,’लालू के लाल’ की कठिन परीक्षा!
महागठबंधन में सीट शेयरिंग पर फंसा पेंच
Mahagathbandhan Seat Sharing Formula: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियां जोरों पर हैं, और महागठबंधन के भीतर सीट शेयरिंग और रणनीति को लेकर हलचल तेज हो गई है. मंगलवार को दिल्ली में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी से मुलाकात की. यह बैठक 17 अप्रैल को पटना में होने वाली महागठबंधन की अहम बैठक से पहले बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है. हालांकि, दोनों दलों के बीच सीट बंटवारे और नेतृत्व को लेकर तनाव की खबरें भी सामने आ रही हैं.
दिल्ली में हुई बैठक
तेजस्वी यादव ने बैठक के बाद कहा, “कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के साथ सकारात्मक और रचनात्मक बातचीत हुई. हम बिहार की जनता को एक मजबूत, न्यायप्रिय, और कल्याणकारी विकल्प देंगे.” कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने भी सोशल मीडिया पर इस मुलाकात का जिक्र करते हुए लिखा, “तेजस्वी यादव के साथ महागठबंधन को और मजबूत करने पर चर्चा हुई.” लेकिन इन सकारात्मक बयानों के बीच, गठबंधन के भीतर सीट शेयरिंग और मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर मतभेद की अटकलें तेज हैं.
जब तेजस्वी से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, “यह फैसला चुनाव से पहले आपसी चर्चा के बाद लिया जाएगा.” यह बयान इस बात का संकेत देता है कि RJD और कांग्रेस के बीच इस मुद्दे पर अभी सहमति नहीं बनी है. RJD ने पहले ही तेजस्वी को अपना सीएम फेस घोषित कर रखा है, जबकि कांग्रेस के कुछ नेताओं का मानना है कि यह निर्णय चुनाव के बाद जनादेश के आधार पर होना चाहिए.
‘छोटे भाई’ की भूमिका से कांग्रेस का इनकार
बिहार में RJD को महागठबंधन का ‘बड़ा भाई’ माना जाता रहा है, खासकर 1999 के बाद से, जब लालू प्रसाद यादव की पार्टी ने लगातार कांग्रेस से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ा. लेकिन इस बार कांग्रेस अपनी स्थिति मजबूत करने के मूड में है. बिहार कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अल्लावरु ने हाल ही में कहा था, “कांग्रेस अब किसी की ‘बी टीम’ नहीं रहेगी.”
कांग्रेस ने इस बार अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए उन सीटों पर ध्यान केंद्रित किया है, जहां उसकी जीत की संभावना अधिक है. 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 70 सीटें मिली थीं, लेकिन इनमें से 45 सीटें ऐसी थीं, जो बीजेपी या जेडीयू का गढ़ मानी जाती थीं. नतीजतन, कांग्रेस केवल 19 सीटें जीत पाई थी. इस बार पार्टी ऐसी सीटों पर दांव लगाना चाहती है, जहां उसका संगठन मजबूत है और सामाजिक समीकरण उसके पक्ष में हैं.
सीट शेयरिंग पर फंसा पेंच
महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर तनाव का मुख्य कारण हर दल की अपनी महत्वाकांक्षा है. RJD चाहती है कि उसे 150 से अधिक सीटें मिलें, ताकि वह गठबंधन का नेतृत्व कर सके. दूसरी ओर, कांग्रेस कम से कम 70 सीटें चाहती है, लेकिन इस बार वह ऐसी सीटों पर जोर दे रही है, जहां वह जीत सकती है. वामपंथी दल भी अधिक सीटों की मांग कर रहे हैं, जबकि मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (VIP) ने 60 सीटों के साथ उपमुख्यमंत्री पद की दावेदारी पेश की है.
हाल ही में राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (RLJP) के नेता पशुपति पारस ने NDA से अलग होने की घोषणा की, जिसके बाद उनके महागठबंधन में शामिल होने की अटकलें हैं. अगर ऐसा होता है तो RJD के सामने सहयोगी दलों को समायोजित करने की और बड़ी चुनौती होगी. सूत्रों के मुताबिक, RJD कांग्रेस को 50 से अधिक सीटें देने के मूड में नहीं है, जबकि कांग्रेस 70 सीटों से कम पर मानने को तैयार नहीं.
कन्हैया और पप्पू यादव का बढ़ता प्रभाव
कांग्रेस की रणनीति में इस बार कन्हैया कुमार और पप्पू यादव का प्रभाव साफ दिख रहा है. कन्हैया की ‘पलायन रोको, नौकरी दो’ यात्रा में राहुल गांधी की मौजूदगी और पप्पू यादव को कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में बुलाए जाने से यह संदेश गया है कि पार्टी बिहार में नई ऊर्जा लाना चाहती है. हालांकि, इन दोनों नेताओं को लालू यादव पसंद नहीं करते, जिससे गठबंधन में तनाव और बढ़ा है.
कांग्रेस महासचिव सचिन पायलट ने हाल ही में कहा था, “मुख्यमंत्री कौन होगा, यह जनादेश के बाद महागठबंधन के नेता तय करेंगे.” यह बयान RJD के लिए असहज करने वाला है, क्योंकि तेजस्वी को पहले ही CM फेस घोषित किया जा चुका है.
यह भी पढ़ें: यूपी, बिहार, महाराष्ट्र के मुसलमान शांत, फिर बंगाल में बवाल क्यों? जानिए क्या है पूरा माजरा
RJD की रणनीति?
RJD अपनी पारंपरिक रणनीति पर कायम है, जिसमें यादव और मुस्लिम वोट बैंक (MY समीकरण) के साथ-साथ अन्य पिछड़ा वर्ग और दलित समुदायों को जोड़ने की कोशिश शामिल है. तेजस्वी यादव ने हाल ही में तेली और नाई जैसे छोटे समुदायों को साधने के लिए रैलियां की हैं, ताकि 2020 में मिले 37.23% वोट शेयर को बढ़ाया जा सके. RJD का मानना है कि अधिक सीटों पर चुनाव लड़कर वह गठबंधन को सत्ता तक ले जा सकती है.
महागठबंधन के सामने सबसे बड़ी चुनौती है एकजुटता बनाए रखना. 2020 में खराब स्ट्राइक रेट के कारण RJD ने कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया था. इस बार कांग्रेस अपनी सौदेबाजी की स्थिति मजबूत करने की कोशिश में है, लेकिन RJD का दबदबा कम करना आसान नहीं होगा. इसके अलावा, NDA की मजबूत स्थिति, नीतीश कुमार की लोकप्रियता और बीजेपी की रणनीति महागठबंधन के लिए अतिरिक्त चुनौतियां पेश कर रही हैं.
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 न केवल सत्ता की लड़ाई है, बल्कि महागठबंधन के भीतर नेतृत्व और प्रभाव की जंग भी है. तेजस्वी यादव और कांग्रेस नेतृत्व के बीच दिल्ली की यह बैठक भले ही सकारात्मक रही हो, लेकिन सीट शेयरिंग और CM फेस जैसे मुद्दों पर अंतिम सहमति अभी बाकी है.