एक के बाद एक गलती करते गए केजरीवाल, BJP ने बना ली जीत की सीढ़ी…जानिए दिल्ली के दंगल में क्यों साफ हो गई AAP

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में अरविंद केजरीवाल की जीत के बाद उनका आत्मविश्वास सातवें आसमान पर था. वो सोचने लगे थे कि दिल्ली में अब उनकी पार्टी को कोई चुनौती नहीं दे सकता, क्योंकि कांग्रेस और बीजेपी दोनों को उन्होंने खारिज कर दिया था. लेकिन ये सोचते हुए वे भूल गए कि राजनीति में आराम करना, खतरनाक हो सकता है.
Delhi Election 2025

पीएम मोदी और अरविंद केजरीवाल

Delhi Election 2025: दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे 8 फरवरी 2025 को सामने आए, और इस बार का परिणाम बेहद चौंकाने वाला था. दिल्ली के दिल में जो आम आदमी पार्टी का ‘झाड़ू’ छाया हुआ था, अब वहां भाजपा का ‘कमल’ खिला है. बीजेपी की आंधी में दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी खुद की सीट भी नहीं बचा पाए, और भाजपा के प्रवेश वर्मा ने उन्हें 4089 वोटों से हरा दिया. लेकिन इस हार की असली वजह क्या थी? क्या यह सिर्फ केजरीवाल की गलतियों का नतीजा था, या फिर भाजपा की एक रणनीति ने इस हार में अहम भूमिका निभाई?

केजरीवाल से कहां-कहां हुई गलती?

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में अरविंद केजरीवाल की जीत के बाद उनका आत्मविश्वास सातवें आसमान पर था. वो सोचने लगे थे कि दिल्ली में अब उनकी पार्टी को कोई चुनौती नहीं दे सकता, क्योंकि कांग्रेस और बीजेपी दोनों को उन्होंने खारिज कर दिया था. लेकिन ये सोचते हुए वे भूल गए कि राजनीति में आराम करना, खतरनाक हो सकता है. उनकी कई गलतियां बीजेपी के लिए जीत का मौका बन गईं. कोरोना के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं में कमियों और तब्लीगी जमात पर की गई विवादास्पद टिप्पणी ने उन्हें मुस्लिम वोटरों से दूर कर दिया.

इसके अलावा, केजरीवाल की शराब नीति और अपने घर पर लगे आरोपों ने उनकी छवि को और नुकसान पहुंचाया. ‘शीशमहल’ के आरोप ने उनके भ्रष्टाचार के दावे को हवा दी. दिल्लीवासियों के लिए यमुना सफाई, प्रदूषण कम करने और पानी की समस्या जैसे मुद्दे लगातार बचते गए, जबकि केजरीवाल इन वादों को पूरा करने में नाकाम रहे. उनके द्वारा किए गए वादे केवल कागजों तक सीमित रह गए और जनता में नाराजगी बढ़ने लगी.

कांग्रेस से गठबंधन न करना पड़ गया भारी

वहीं, कांग्रेस से गठबंधन न करने का उनका फैसला भी गलत साबित हुआ. कांग्रेस ने केजरीवाल के खिलाफ अपना मोर्चा खोला और प्रियंका गांधी जैसे नेता उनके खिलाफ मैदान में उतरे. बीजेपी ने भी 2024 की तैयारी में अपनी बिसात बिछा दी थी, जिससे केजरीवाल की स्थिति कमजोर हो गई. अब सवाल ये है कि केजरीवाल अपनी खोई हुई चमक वापस कैसे पा सकते हैं और भविष्य में उनकी राजनीति किस दिशा में जाएगी.

नई दिल्ली सीट पर बीजेपी ने ऐसे दी केजरीवाल को मात

अरविंद केजरीवाल की हार का सबसे बड़ा कारण एक ऐसी रणनीति रही, जो भाजपा ने 5 फरवरी से ठीक चार दिन पहले लागू की थी. 1 फरवरी को जब केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट पेश किया, तब उन्होंने एक ऐसी घोषणा की, जो सीधे दिल्ली के सरकारी कर्मचारियों के दिलों तक पहुंची. वित्त मंत्री ने ऐलान किया कि अब 12 लाख तक की वार्षिक आय पर कोई आयकर नहीं लगेगा. इस घोषणा ने दिल्ली के सरकारी कर्मचारियों में खुशी की लहर दौड़ा दी.

नई दिल्ली विधानसभा सीट पर करीब 1 लाख वोटर हैं, जिनमें से लगभग 30 से 35 प्रतिशत सरकारी कर्मचारी हैं. इन कर्मचारियों का समर्थन भाजपा को मिलने लगा. सूत्रों के अनुसार, इन सरकारी कर्मचारियों ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया, जिससे केजरीवाल की हार का रास्ता साफ हो गया. यही वह पहलू था, जिसने भाजपा के लिए इस चुनावी संघर्ष को आसान बना दिया.

अरविंद केजरीवाल की हार का एक और दिलचस्प पहलू यह है कि कांग्रेस के कैंडिडेट संदीप दीक्षित ने भी चुनावी समीकरण को प्रभावित किया. जब भाजपा के प्रवेश वर्मा ने केजरीवाल को 4089 वोटों से हराया, तो संदीप दीक्षित को 4568 वोट मिले. अगर संदीप दीक्षित इस सीट पर नहीं होते, तो परिणाम कुछ और हो सकते थे. दरअसल, कांग्रेस का उम्मीदवार वहां एक तरह से केजरीवाल के वोटों को काटने का काम कर रहा था, और इसने चुनावी नतीजों को पूरी तरह से बदल दिया.

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दिल्ली चुनाव में भाजपा की वापसी

इस चुनाव में भाजपा के लिए यह जीत कई मायनों में अहम थी. बीजेपी ने 27 साल बाद दिल्ली में वापसी की है. भाजपा ने 1993 में दिल्ली में सरकार बनाई थी, और 2025 में एक बार फिर से उनका कमल खिल गया. 2015 और 2020 में जब आम आदमी पार्टी ने लगातार जीत दर्ज की थी, भाजपा अपनी सीटें मुश्किल से ही बचा पाई थी. 2015 में तो भाजपा केवल 3 सीटों तक सिमट गई थी, लेकिन इस बार भाजपा ने 48 सीटों के साथ भारी जीत दर्ज की.

भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में जहां मुफ्त बिजली, पानी और अन्य योजनाओं को जारी रखने का वादा किया, वहीं महिलाओं के लिए मासिक भत्ता और मुफ्त इलाज जैसे कई वादे किए. इसके साथ ही भाजपा ने अरविंद केजरीवाल और उनकी सरकार के कथित भ्रष्टाचार को भी चुनावी मुद्दा बनाया.

एक बदलाव की कहानी है केजरीवाल की हार

अरविंद केजरीवाल की हार को समझने के लिए यह भी जरूरी है कि हम उनके द्वारा किए गए कामों और उनके खिलाफ उठाए गए आरोपों को देखें. केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी को भ्रष्टाचार के कई आरोपों का सामना करना पड़ा. मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन और सौरभ भारद्वाज जैसे शीर्ष नेता भी इस चुनाव में हार गए, जिससे यह साफ हो गया कि केजरीवाल की राजनीति अब लोगों के विश्वास को खो चुकी है. भाजपा ने अरविंद केजरीवाल के ‘शीशमहल’ और शराब घोटाले जैसे मामलों को मुद्दा बनाया, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इन मामलों पर लगातार हमले किए. इन आरोपों ने केजरीवाल की छवि को काफी नुकसान पहुंचाया और भाजपा को वोट बैंक बनाने में मदद की.

दिल्ली का भविष्य

अब सवाल यह उठता है कि दिल्ली के भविष्य में क्या होगा. भाजपा की दिल्ली में वापसी से यह साफ है कि मोदी सरकार के तहत दिल्ली की राजनीति एक नया मोड़ लेने जा रही है. वहीं, आम आदमी पार्टी को इस हार से एक बड़ा सबक भी मिलेगा. इस हार के बाद केजरीवाल को अपनी पार्टी की रणनीतियों में बदलाव करना होगा और लोगों के विश्वास को फिर से जीतने की दिशा में काम करना होगा.

जहां तक भाजपा का सवाल है, उनकी यह जीत दिल्ली में मोदी मॉडल की सफलता का प्रतीक बन गई है. मुफ्त योजनाओं के अलावा भाजपा ने एक सकारात्मक संदेश दिया है कि विकास के मामले में भाजपा के पास एक ठोस और सशक्त मॉडल है.

चुनावी दांव

दिल्ली के इस चुनावी परिणाम ने साबित कर दिया कि कभी-कभी चुनावों में सीधे टकराव से ज्यादा महत्वपूर्ण वह रणनीतियां होती हैं जो समय से पहले अपनाई जाती हैं. भाजपा ने समय रहते अपने चुनावी दांव को खेला और वह दांव अरविंद केजरीवाल की हार का कारण बन गया. अब यह देखना होगा कि दिल्ली की राजनीति में अगले कुछ वर्षों में क्या बदलाव आते हैं.

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