14 अस्पतालों में ICU नहीं, 12 में एंबुलेंस गायब…दिल्ली के मोहल्ला क्लिनिकों का भी बद से बदतर हाल, CAG रिपोर्ट ने खोल दी AAP की पोल!
मोहल्ला क्लिनिक
CAG Report: दिल्ली में एक ऐसी रिपोर्ट आई है, जिसने स्वास्थ्य क्षेत्र की पूरी पोल खोल दी है. रिपोर्ट तैयार की है नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने. इस रिपोर्ट में कई खुसासे किए गए हैं. दावा किया गया है कि राजधानी में स्वास्थ्य सेवाओं का सामना एक बुरी दवा से हो रहा है! बीजेपी की नई नवेली सरकार ने रिपोर्ट के जरिए आपको दिल्ली के अस्पतालों और मोहल्ला क्लिनिक से लेकर सरकारी फंड तक की सच्चाई से रूबरू कराने की कोशिश की है. आइये इसमें क्या दावे किए गए हैं विस्तार से जानते हैं.
अस्पतालों में ICU की जगह, इंतजार का दर्द!
सोचिए, अगर आपको आपातकाल में इलाज की जरूरत हो और आपको एकदम से अस्पताल में जाने की जरूरत हो, तो क्या होगा? इतना ही नहीं, अगर वह अस्पताल आईसीयू की सुविधा से महरूम हो, तो क्या? जी हां, सीएजी रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली के 14 प्रमुख अस्पतालों में आईसीयू की सुविधा ही नहीं है. इस हालत में अगर किसी मरीज को तुरंत विशेष इलाज की जरूरत हो, तो वह खुदा के भरोसे होगा. इसके अलावा, 12 अस्पतालों में एंबुलेंस तक उपलब्ध नहीं हैं! ऐसे में मरीज का इलाज कैसे हो सकता है?
मोहल्ला क्लिनिकों में बुनियादी सुविधा भी नहीं
आगे बढ़ते हैं मोहल्ला क्लिनिक की ओर. जो दिल्ली के कई गरीब इलाकों में सस्ती चिकित्सा सेवाओं का दावा करते हैं, लेकिन क्या हकीकत कुछ और नहीं है? सीएजी की रिपोर्ट बताती है कि 21 क्लिनिकों में शौचालय तक नहीं हैं! जी हां, आप ठीक सुन रहे हैं, शौचालय तक नहीं हैं! अब सोचिए, अगर आप या आपके घरवाले किसी क्लिनिक में इलाज के लिए जाएं, तो क्या हुआ अगर वहां बैठने तक की जगह न हो? इसके अलावा, 15 क्लिनिकों में बिजली का बैकअप नहीं है, और सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि 12 क्लिनिकों में दिव्यांगों के लिए कोई सुविधाएं नहीं हैं!
कोविड फंड का गड़बड़झाला
आइए, अब बात करते हैं कोविड-19 के दौरान मिली सहायता राशि की. दिल्ली सरकार को कोविड-19 के लिए केंद्र से 787.91 करोड़ रुपये का फंड मिला था, लेकिन सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, सिर्फ 582.84 करोड़ रुपये ही खर्च हुए. यह सवाल उठता है कि बाकी के पैसे कहां गए? क्या उन पैसों का इस्तेमाल बेहतर चिकित्सा सुविधाओं के लिए नहीं किया जा सकता था?
स्वास्थ्य कर्मचारियों की भर्ती के दौरान सो रही थी सरकार!
यहां तक की स्वास्थ्य कर्मचारियों के लिए निर्धारित 52 करोड़ रुपये में से 30.52 करोड़ रुपये खर्च नहीं किए गए! इन पैसों का क्या हुआ? इसका मतलब ये हुआ कि कर्मचारी भर्ती नहीं किए गए. जब कोविड जैसे संकट का सामना किया गया, तब हमें जो स्वास्थ्य कर्मियों की जरूरत थी, वो दूर-दूर तक दिखाई नहीं दिए. क्या यह सिस्टम की असफलता नहीं है?
आराम फरमाती सरकार!
दिल्ली के अस्पतालों में एक और बड़ी समस्या सामने आई, वह है बेड की कमी. दिल्ली सरकार ने 2016 से 2021 के बीच 32,000 बेड जोड़ने का वादा किया था, लेकिन हकीकत में सिर्फ 1,357 बेड जोड़े गए, जो कि कुल लक्ष्य का 4.24% है! इससे साफ है कि जब अस्पतालों में बेड नहीं हैं, तो मरीजों को फर्श पर इलाज करना पड़ा. अब सोचिए, क्या ऐसे हालात में स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर ऊंचा रह सकता है?
निर्माण में हुई देरी और बढ़ गई लागत
दिल्ली के अस्पतालों के निर्माण में भी देरी हो रही है और यह प्रक्रिया खराब तरीके से चल रही है. इंदिरा गांधी अस्पताल में निर्माण में 5 साल की देरी हुई, और 314.9 करोड़ रुपये की अतिरिक्त लागत आई! अब जब अस्पताल बन गए, तो इनकी विस्तृत सेवाओं और सुविधाओं का क्या? मरीजों के इलाज के लिए जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर तो पूरी तरह तैयार नहीं था.
सर्जरी की लंबी कतारें
कोई मरीज अगर सर्जरी कराने के लिए जाता है, तो क्या उसे 2-3 महीने का इंतजार करना पड़ेगा? जी हां, दिल्ली के लोक नायक अस्पताल में ऐसी ही स्थिति थी. यहां तक कि बर्न और प्लास्टिक सर्जरी के लिए तो मरीज को 6-8 महीने का इंतजार करना पड़ता था! और यह स्थिति तब है, जब अस्पतालों में सर्जिकल उपकरणों की भी कमी है और कई जगहों पर सीटी स्कैन और एक्स-रे मशीनें खराब पड़ी हैं.
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स्टाफ की कमी
अब बात करते हैं अस्पतालों में स्टाफ की कमी की. दिल्ली में सरकारी अस्पतालों में कुल 8,194 पद खाली पड़े हैं. इसमें सबसे बड़ी कमी नर्सिंग स्टाफ की है, जिसमें 21% कमी और पैरामेडिकल स्टाफ में 38% कमी है. क्या जब इतने सारे पद खाली हों, तो स्वास्थ्य सेवा सही तरीके से चल सकती है?
इस सिस्टम को कैसे सुधारा जाए?
इस रिपोर्ट से साफ पता चलता है कि दिल्ली में स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर खामियां ही खामियां हैं. आईसीयू से लेकर अस्पतालों में बुनियादी सुविधाओं की कमी, कोविड फंड का गलत उपयोग और स्टाफ की भारी कमी से दिल्ली के स्वास्थ्य क्षेत्र को एक बड़ा झटका लगा है. अब यह सवाल उठता है कि सरकार कब जागेगी और स्वास्थ्य सेवाओं का सही सुधार कब होगा?
अगर हम चाहते हैं कि दिल्ली के लोग अच्छे स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठा सकें, तो राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रभावी कार्यवाही की जरूरत है. यही वक्त है, जब सरकार को गंभीरता से इन समस्याओं को हल करना चाहिए. नहीं तो अगले चुनावों में स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा मुद्दा बनने वाला है!