Explained: इंडी ब्लॉक से मतभेद या कुछ और…? अब अलग रास्ते पर चल रही हैं ममता बनर्जी

अब सवाल उठता है कि आखिर 'दीदी' को क्या परेशान कर रहा है?  ममता ने अचानक गठबंधन से अलग होकर अपना रास्ता क्यों तय किया है?  शायद अब ममता बनर्जी को एहसास हो रहा है कि गठबंधन के साथी अपने-अपने एजेंडे पर काम कर रहे हैं.
Mamata Banerjee

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Explained: आज नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल की नई दिल्ली में बैठक हुई. कांग्रेस के नेतृत्व वाला इंडी गठबंधन ने इस बैठक का बहिष्कार किया. हालांकि, कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और TMC  सुप्रीमो ममता बनर्जी ने दिया है. दरअसल, इंडी ब्लॉक के फरमान को नजरअंदाज करते हुए ‘दीदी’ बैठक में शामिल हुईं. हालांकि, ये अलग बात है कि उन्होंने बैठक में भेदभाव का आरोप लगाया.

रिपोर्ट्स के मुताबिक, ममता बैठक में इसलिए शामिल हुईं क्योंकि वह बजट आवंटन समेत केंद्र द्वारा राज्यों के साथ भेदभाव का मुद्दा उठाना चाहती थी, जबकि इंडी गठबंधन ने बैठक का बहिष्कार करने का फैसला किया था. इसके अलावा जिन राज्यों के मुख्यमंत्री नीति आयोग की बैठक में शामिल नहीं हुए, उनमें केरल, पंजाब, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं. पहले झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन के बैठक में शामिल होने की खबरें थीं, लेकिन आखिरी वक्त पर उन्होंने बैठक में शामिल नहीं होने का फैसला किया है.

बिखरती नजर आई विपक्षी एकता

नीति आयोग की बैठक को लेकर विपक्षी एकता बिखरती नजर आई. एक तरफ जहां इंडी गठबंधन ने बैठक का बहिष्कार करने का ऐलान किया, वहीं ममता ने इसे नजरअंदाज करते हुए बैठक में शामिल होने का फैसला किया. इस बैठक को लेकर ममता बनर्जी ने शुक्रवार को कहा था, “इंडी ब्लॉक में कोई तालमेल नहीं है. सभी दलों को एकजुट करके गठबंधन नहीं चल पा रहा है. हालांकि, ममता ने जोर देकर कहा कि बैठक में वह विपक्ष के तौर पर अपनी आवाज उठाएंगी. उन्होंने यह भी कहा कि शुक्रवार को जब वह बैठक में शामिल होने दिल्ली पहुंचीं, तो उन्हें पता चला कि इंडी गठबंधन ने इस बैठक का बहिष्कार करने का फैसला किया है.”

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बैठक के बीच में ही चली गईं ‘दीदी’

हालांकि, ममता बैठक में शामिल तो हुईं, लेकिन सरकार पर विपक्ष की आवाज दबाने का आरोप लगाते हुए बीच में ही चली गईं. तथ्य यह है कि ‘दीदी’ ने बैठक में भाग लेने के विपक्ष के फैसले की तौहीन की, यहां यह समझने की जरूरत है कि पश्चिम बंगाल से जुड़े मुद्दों पर वह इंडी गठबंधन से अलग रुख अपनाती रही हैं. इसके अलावा, 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले ही ‘दीदी’ ने पश्चिम बंगाल में अपने दम पर चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया था, जबकि कांग्रेस चाहती थी कि वह गठबंधन के सीट-बंटवारे के समझौते के तहत उसके लिए कुछ सीटें छोड़ दें.

‘दीदी’ को क्या परेशान कर रहा है?

अब सवाल उठता है कि आखिर ‘दीदी’ को क्या परेशान कर रहा है?  ममता ने अचानक गठबंधन से अलग होकर अपना रास्ता क्यों तय किया है?  शायद अब ममता बनर्जी को एहसास हो रहा है कि गठबंधन के साथी अपने-अपने एजेंडे पर काम कर रहे हैं. कांग्रेस, डीएमके, आम आदमी पार्टी आदि जैसी पार्टियां वही कर रही हैं जो उन्हें अपने या अपने नेताओं के हित में सबसे अच्छा लगता है. जब इंडी गठबंधन को वह बहुमत नहीं मिला जिसकी उसे उम्मीद थी और एनडीए ने लगातार तीसरी बार सरकार बनाई, तो ममता को एहसास हुआ कि गठबंधन पर निर्भर रहना उनके लिए ठीक नहीं है. उन्हें पता है कि प्रधानमंत्री बनने का उनका सपना साकार नहीं होगा और उनकी पार्टी का पश्चिम बंगाल के बाहर कोई खास आकर्षण भी नहीं है. इस बात का अंदाजा गोवा विधानसभा चुनाव में सीएम ममता को हो ही गया है.

क्या उत्तर बंगाल की मांग से परेशान हैं ममता?

इस प्रकार ममता को एहसास हो गया है कि अपने राज्य में राजनीति करना और यह सुनिश्चित करना उनके हित में है कि विधानसभा चुनावों में भाजपा उनसे सत्ता छीन न पाए. उत्तर बंगाल का मुद्दा है जो ममता को परेशान कर रहा है. वह अपने राज्य के विभाजन की किसी भी बात का डटकर मुकाबला करेंगी. इसलिए ऐसी परिस्थितियों में उन्हें पता है कि न तो कांग्रेस और न ही अन्य गठबंधन सहयोगी पश्चिम बंगाल के मामलों में हस्तक्षेप करेंगे क्योंकि वे सभी अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं.

नीति आयोग की बैठक क्यों?

पीटीआई के अनुसार, बैठक 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने पर केंद्रित है. इसका उद्देश्य केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सहभागी शासन और सहयोग को बढ़ावा देना है, सरकारी हस्तक्षेपों के वितरण तंत्र को मजबूत करके ग्रामीण और शहरी दोनों आबादी के लिए जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाना है. नीति आयोग की सर्वोच्च संस्था परिषद में सभी राज्यों के मुख्यमंत्री, केंद्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल और कई केंद्रीय मंत्री शामिल हैं. प्रधानमंत्री मोदी नीति आयोग के अध्यक्ष हैं.

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