BNS से कितना अलग है ममता सरकार का ‘एंटी रेप बिल’, जान लें पूरी ABCD
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस विधेयक को ‘ऐतिहासिक’ और ‘मॉडल’ बताते हुए 31 वर्षीय पीड़िता की स्मृति को समर्पित किया. अपराजिता महिला और बाल विधेयक 2024′ बलात्कार और अन्य यौन अपराधों के दोषियों के लिए मृत्युदंड का प्रावधान करता है. विधानसभा सत्र के दौरान ममता बनर्जी ने कहा, “बलात्कार मानवता के खिलाफ एक अभिशाप है, और हमें ऐसे अत्याचारों को रोकने के लिए सामाजिक सुधारों की आवश्यकता है.”
एंटी रेप बिल में क्या-क्या प्रावधान?
– महिलाओं के उत्पीड़न और बलात्कार के मामलों में कठोरतम सजा दी जाए.
– पोक्सो अधिनियम के प्रावधानों को और कड़ा किया गया है.
– बलात्कारियों के लिए मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है, यदि उनके कृत्यों के परिणामस्वरूप पीड़िता की मृत्यु हो जाती है या उन्हें गंभीर मस्तिष्क क्षति होती है.
– विधेयक के तहत अपराजिता टास्क फोर्स का गठन किया जाएगा, जिसमें प्रारंभिक रिपोर्ट के 21 दिनों के भीतर सजा दी जाएगी.
– नर्सों और महिला डॉक्टरों के यात्रा करने वाले मार्गों को कवर किया जाएगा. इसके लिए राज्य सरकार ने 120 करोड़ रुपए मंजूर किए हैं.
– हर जगह सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएंगे.
– कानून के अनुसार, महिलाएं 12 घंटे ड्यूटी करेंगी और जरूरत पड़ने पर डॉक्टर अपनी ड्यूटी बढ़ाएंगे.
– रात में काम करने वाली महिलाओं को पूरी सुरक्षा दी जाएगी.
बीजेपी ने भी बिल का किया स्वागत
ममता बनर्जी ने कहा, “हम सीबीआई से न्याय चाहते हैं और दोषियों को फांसी की सजा चाहिए.” वहीं बीजेपी ने विधेयक के पारित होने का स्वागत किया, वहीं पार्टी नेताओं ने इस बात पर जोर दिया कि भारतीय न्याय संहिता (BNS) में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों से निपटने के लिए कड़े प्रावधान शामिल हैं. शुभेंदु अधिकारी ने सत्र के दौरान संशोधनों का प्रस्ताव रखा, जिसमें नए कानून के तत्काल क्रियान्वयन की मांग की गई. उन्होंने कहा, “यह सुनिश्चित करना आपकी राज्य सरकार जिम्मेदारी है कि यह कानून बिना देरी के लागू हो.”
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BNS और एंटी रेप बिल में कितना अंतर?
भारतीय न्याय संहिता यानी बीएनएस नाबालिग से बलात्कार के मामलों को तीन कैटेगरी में देखता है. इसके तहत 12 साल से कम उम्र की बच्ची के मामलों में कम से कम 20 साल की जेल या फिर फांसी का प्रावधान है. वहीं, 16 साल से कम उम्र की लड़की के साथ रेप की स्थिति में कम से कम 20 साल की सजा या फिर उम्रकैद का प्रावधान है. वहीं, 18 साल से कम उम्र की लड़की के साथ बलात्कार की स्थिति में उम्रकैद और मौत की सजा का प्रावधान है. पश्चिम बंगाल की सरकार ने नए कानून में इन सभी मामलों में एक ही सजा का प्रावधान किया है. जो उम्रकैद और फांसी तक जाती है. वहीं, भारतीय न्याय संहिता से बहुत पहले 2013 में (निर्भया रेप एंड मर्डर के ठीक बाद) नाबालिगों से रेप को लेकर पॉक्सो कानून लाया गया था जिसके तहत फौरन गिरफ्तारी का प्रावधान था.
मौत की सजा का विरोध!
दोषियों को मौत की सजा देने का विरोध भी होता है. सुप्रीम कोर्ट ने भी कई फैसलों में माना है कि मौत की सजा केवल ‘रेयरेस्ट ऑफ द रेयर’ मामलों ही दी जानी चाहिए. 1980 में बचन सिंह बनाम पंजाब सरकार मामले में फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि उम्रकैद नियम है, जबकि सजा-ए-मौत अपवाद है.
अब तक कितने रेपिस्टों को फांसी?
पिछले 20 साल के आंकड़े देखें तो रेप और मर्डर के पांच दोषियों को ही फांसी हुई है. 14 अगस्त 2004 को धनंजय चटर्जी को फांसी पर चढ़ाया गया था. उसे 1990 में 14 साल की बच्ची से दुष्कर्म और उसके बाद हत्या के मामले में फांसी की सजा मिली थी. उसके बाद 20 मार्च 2020 को निर्भया के चार दोषियों को फांसी मिली थी. 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में चलती बस में एक युवती के साथ दुष्कर्म हुआ था. बाद में उसकी मौत हो गई. उसे निर्भया नाम दिया गया. निर्भया कांड के 6 दोषी थे, जिनमें एक नाबालिग था. नाबालिग 3 साल की सजा काटकर छूट गया. एक दोषी ने आत्महत्या कर ली. बाकी 4 दोषी मुकेश सिंह, विनय शर्मा, अक्षय ठाकुर और पवन गुप्ता ने अपनी फांसी रुकवाने के लिए सारी तरकीब आजमा लीं, लेकिन टाल नहीं सके. मार्च 2020 में चारों को तिहाड़ जेल में फांसी पर लटका दिया.
बता दें कि कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में ट्रेनी महिला डॉक्टर के साथ रेप और हत्या की घटना ने देशभर के लोगों में आक्रोश भर दिया है. जगह-जगह जूनियर डॉक्टरों ने प्रदर्शन भी किया. मामला फिलहाल सीबीआई के हाथ में है. अब बंगाल की ममता सरकार का दावा है कि बलात्कार विरोधी इस कानून से पीड़िता को जल्द से जल्द न्याय मिलेगा. इस कानून का उद्देश्य सख्त सजा लागू करके, ऐसे मामलों में जांच को सरल बनाकर महिलाओं और बच्चों के लिए सुरक्षित वातावरण बनाना है.