हरियाणा विधानसभा चुनाव में JJP-ASP का गठबंधन, आजाद और चौटाला के साथ आने से बदला सियासी समीकरण

2019 के राज्य विधानसभा चुनाव में 10 सीटें हासिल करने वाली जेजेपी लोकसभा चुनाव में एक भी सीट हासिल नहीं कर सकी. 2019 के राज्य चुनाव में इसने किंगमेकर की भूमिका निभाई थी.
Haryana Assembly Election

आजाद और चौटाला की तस्वीर

Haryana Assembly Election: हरियाणा विधानसभा चुनाव में अब बस एक महीना ही बचा है, ऐसे में 90 सदस्यीय विधानसभा में जीत के लिए पार्टियां तरह-तरह के दांव-पेंच आजमा रही हैं. इस बीच, जननायक जनता पार्टी (JJP) के प्रमुख दुष्यंत चौटाला का मानना है कि बहुजन समाज पार्टी (BSP) की तुलना में आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आजाद बेहतर सहयोगी होंगे. हालांकि, अब दोनों पार्टी ने गठबंधन का ऐलान कर दिया है. सीट शेयरिंग का फॉर्मूला भी तय हो गया है. जेजेपी राज्य में 70 सीटों पर चुनाव लड़ेगी वहीं 20 सीटों पर आजाद समाज पार्टी चुनाव लड़ेगी.

ANI से बातचीत में पूर्व उपमुख्यमंत्री ने कहा, “बीएसपी नहीं बल्कि आजाद समाज पार्टी बेहतर सहयोगी होगी. आजाद युवा हैं, मैदान में काम करते हैं, उनके पास अच्छी टीम है और उनमें कांशीराम जैसा करिश्मा है. मायावती में अब वह करिश्मा नहीं है.”

हरियाणा की राजनीति में नई है आजाद की पार्टी

बता दें कि जेजेपी का हरियाणा में यह दूसरा विधानसभा चुनाव है जबकि आजाद समाज पार्टी हरियाणा में पहली बार चुनाव लड़ रही है. जेजेपी का गठन 2018 में हुआ था और आजाद समाज पार्टी का गठन 2022 में हुआ था. 2019 के विधानसभा चुनाव में जेजेपी ने अकेले चुनाव लड़ा और 10 सीटों पर जीत हासिल की थी. हरियाणा की सियासत में आजाद समाज पार्टी बिल्कुल ही नई है. हालांकि, चंद्रशेखर बिल्कुल भी नए नहीं हैं. उनकी लोकप्रियता सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक है. इस बार के लोकसभा चुनाव में उन्होंने नगीना से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की है.

लोकसभा चुनाव में दुष्यंत को लगा झटका

2019 के राज्य विधानसभा चुनाव में 10 सीटें हासिल करने वाली जेजेपी लोकसभा चुनाव में एक भी सीट हासिल नहीं कर सकी. 2019 के राज्य चुनाव में इसने किंगमेकर की भूमिका निभाई थी. जेजेपी ने भी इंडिया ब्लॉक में शामिल होने के अपने विकल्प खुले रखे हैं, बशर्ते पार्टी को उसका उचित सम्मान मिले. चौटाला ने कहा, “अगर उनके पास संख्या है और हमारी पार्टी को प्राथमिकता दी जाती है, तो क्यों नहीं.” इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) और बीएसपी के गठबंधन पर, चौथी पीढ़ी के नेता ने कहा कि इसका इन चुनावों पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा. उन्होंने तीसरी बार फिर से एक ऐसे चुनाव के लिए हाथ मिलाया है जो दोनों के लिए महत्वपूर्ण है.

2023 के विधानसभा चुनाव और फिर 2024 के लोकसभा चुनावों में हार के साथ बीएसपी सबसे निचले पायदान पर पहुंच गई है. पार्टी ने 543 में से 424 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसे केवल 2.04% वोट मिले. एक भी उम्मीदवार ने जीत हासिल नहीं की. जैसा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में देखा गया, जाट और दलित कांग्रेस के पीछे मजबूती से खड़े थे. इनेलो जिसका वोट बैंक मुख्य रूप से जाट है और बीएसपी को दलितों का समर्थन प्राप्त है. इनेलो का वोट शेयर 1.87% था, जबकि बीएसपी 1.28% वोट शेयर हासिल करने में सफल रही.

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दलित चेहरा बनकर उभरे हैं आजाद

दूसरी ओर, आजाद उत्तर प्रदेश में दलित चेहरा बनकर उभरे हैं. नगीना लोकसभा सीट जीतने के बाद वह उत्तर प्रदेश से एकमात्र दलित सांसद हैं. जेजेपी ने आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन में भी चुनाव लड़ा था, लेकिन उसे राज्य में उतनी ताकत नहीं दिख रही है. AAP अकेले ही राज्य में चुनाव लड़ रही है. मुकाबला मुख्य रूप से कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच है. 2019 में, भाजपा और जेजेपी ने मिलकर राज्य में सरकार बनाई, जब भगवा पार्टी बहुमत हासिल करने में विफल रही. दोनों की अपनी-अपनी पार्टी है और पूर्व उपमुख्यमंत्री ने स्पष्ट कर दिया है कि वह भाजपा के साथ गठबंधन नहीं करेंगे. कांग्रेस आम चुनावों में सफलता के साथ आगे बढ़ रही है और उसने राज्य की 10 में से पांच सीटें भी जीती हैं. कांग्रेस राज्य में भाजपा के 10 साल के शासन को उखाड़ फेंकने की योजना बना रही है.

अब जब चौटाला और आजाद एक साथ आ गए हैं कि तो राज्य की करीब 20 फीसदी दलित मतदाताओं पर इसका असर जरूर पड़ेगा. हालांकि, ये कहना भी अभी मुश्किल है कि आजाद की पार्टी हरियाणा में क्या करिश्मा दिखा पाएगी क्योंकि वह राज्य की राजनीति में बिल्कुल ही नए हैं.

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